विश्व रेडियो दिवस पर याद आई पुरानी बातें

प्रहरी संवाददाता/पेटरवार (बोकारो)। बीते 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस था। इसमें आकाशवाणी की विभिन्न कार्यक्रमों को सुनने की पुरानी यादें ताजा हुई है।

यूं तो वर्तमान परिस्थिति में टीवी सहित मनोरंजन के विभिन्न साधनों के बावजूद अभी भी रेडियो कार्यक्रम बंद नहीं हुए, बल्कि प्रसारण के तौर तरीकों में आशातीत परिवर्तन अवश्य लाए गये हैं। विश्वभर में अभी भी रेडियो के श्रोता मौजूद हैं और कार्यक्रमों को सुन रहे हैं।

पांच दशक पूर्व राज्य स्तरीय कार्यक्रमों के अलावे ‘श्रीलंका ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन की हिंदी सर्विस काफी लोकप्रिय रहा था। पूरे देश भर में विभिन्न राज्यों के अनेकों शहरों, कस्बे, गांव, गली, मुहल्ले में रेडियो श्रोता संघ का गठन हुआ और श्रोता समूह इसमें जुड़ते गए।

रेडियो सिलोन से फरमाइसी पसंदीदा गाने सुनते रहे। फरमाईसी हिंदी कार्यक्रमो में ‘आप ही के गीत, जाने पहचाने गीत, भूले बिसरे गीत आदि शामिल है। अन्य साप्ताहिक कार्यक्रम जैसे हरेक बुधवार को रात आठ बजे से नौ बजे तक एक घंटे का कार्यक्रम ‘बिनाका गीत माला’ (बाद में सिबाका गीत माला) में 16 हिट गाने बजते थे।

उद्घोषक अमीन सियानी ने अपनी मधुर व सुरीली आवाज द्वारा प्रस्तुति को काफी लोकप्रिय बना दिया था। अतिरिक्त साप्ताहिक कार्यक्रमों में जब आप गा उठे, महफीले मुसायरा, हफ्ते के श्रोता, भाव गीत, दृश्य गीत, शीर्षक गीत आदि कार्यक्रमों में सभी खुद बड़ी चाव से भाग लेते रहे। यहां के पूर्व उद्घोषक दलबीर सिंह परमार, मनोहर महाजन, आदि।

पद्मिनी परेरा, रिपुसुदन कुमार एलाहावादी, तब्बसूम आदि नाम खासा चर्चित रहा। जिस तरह मेघदूत रेडियो लिस्नर्स क्लब,फुसरो(बेरमो)में संचालित रहा, उसी तरह देश के विभिन्न शहरों में जैसे धनबाद, झरिया, रांची, गिरिडीह, बेरमो, रामगढ़ कैंट, नया जालना, बिजयवाडा, नांदेर, खगड़िया, मुरादाबाद, बिजनौर, आदि।

भाटापाड़ा, झुमरी तिलैया आदि सैकड़ों, हजारों शहरों के श्रोता संघ से जुड़े श्रोता नित्य अपनी फरमाइसी गाने सुना करते थे। साथ ही देश भर के समाचारों से भी लोग अवगत हुआ करते थे। रेडियो में फरमाइस लिखकर लिफाफे में पता लिखकर 2.70 पैसे का पोस्टल स्टांप चिपकाकर ‘बाय एयर मेल’ में भेजना पड़ता था।

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