बहुविषयक अनुसंधान के लिए ओड़िशा अनुसंधान केंद्र का शुभारंभ

पीयूष पांडेय/बड़बिल (ओडिशा)। ओडिशा की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को गहराई से जानने और बहु-विषयक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए ओड़िशा अनुसंधान केंद्र (ओआरसी) अपनी तरह का एक अनोखा अनुसंधान संस्थान को यहां राज्य की राजधानी भुवनेश्वर में लॉन्च किया गया।

संस्थान की स्थापना भारतीय सामाजिक विज्ञान और अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर), शिक्षा मंत्रालय के भारतीय ज्ञान प्रणाली प्रभाग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जैसे प्रमुख संस्थानों के बीच सहयोग के रूप में की गई है।

इस अवसर पर बोलते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि इतिहास भविष्य के दर्पण के रूप में काम करता है। उचित शोध और तथ्यात्मक साक्ष्यों की कमी के कारण, ओडिशा का समृद्ध और गौरवशाली अतीत लोक कथाओं तक ही सीमित रह गया है।

उन्होंने कहा कि ओआरसी तथ्य आधारित साक्ष्यों के आधार पर ओडिशा के अतीत, वर्तमान और भविष्य पर एक अध्ययन करेगा। संस्थान 2036 और 2047 पर नजर रखते हुए राज्य और उसके रहिवासियों के विकास के लिए एक रोड मैप तैयार करेगा।

केंद्रीय मंत्री प्रधान ने कहा कि जब ओडिशा 100 साल का हो जाएगा और भारत आजादी के 100 साल पूरे कर लेगा। ओआरसी शहर में आईआईटी खड़गपुर के विस्तार परिसर से कार्य करेगा। सेंटर के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस एंड रिसर्च ने 15.75 करोड़ रुपये का फंड मंजूर किया है।

उन्होंने कहा कि कलिंग युद्ध से पहले ओडिशा समृद्ध था और बंदरगाह आधारित अर्थव्यवस्था थी। कोणार्क सूर्य मंदिर की दीवार की नक्काशी में दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका के साथ ओडिशा के मजबूत व्यापार संबंधों के कई सबूत हैं।

प्रधान ने कहा कि राज्य के समृद्ध इतिहास का अध्ययन आईआईटी और आईआईएम की विशेषज्ञता का उपयोग करके बहु-विषयक दृष्टिकोण के माध्यम से किया जाएगा। केंद्रीय शिक्षा सचिव संजय मूर्ति ने कहा कि ओआरसी ओडिशा क्षेत्र इसकी संस्कृति, इंजीनियरिंग, प्रबंधन के क्षेत्र में किसी भी शोधकर्ता के लिए वन-स्टॉप शॉप होगी।

यह देखने के लिए कि तीन सहस्राब्दियों में यह समाज कैसे विकसित हुआ है। इसका योगदान क्या है और आगे का रास्ता क्या है। उन्होंने कहा कि यह एक अनूठा प्रयोग है, जिसे हम करने का प्रयास कर रहे हैं। यह अपनी तरह का पहला संस्थान है।

ओआरसी में हमें जो सफलता मिलेगी, उसके आधार पर हम देखेंगे कि क्या देश के समृद्ध इतिहास और संस्कृति को पकड़ने के लिए इसे अन्य क्षेत्रों में भी दोहराया जा सकता है। यह भारतीय ज्ञान प्रणाली को आगे बढ़ाने की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप होगा।

भारतीय ज्ञान प्रणाली के राष्ट्रीय समन्वयक प्रोफेसर गंती सूर्यनारायण मूर्ति ने कहा कि वर्तमान में बहु-विषयक दृष्टिकोण के हिस्से के रूप में कई दिलचस्प शोध आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं। ऐसे सभी शोधों को ओआरसी में एक छतरी के नीचे लाया जाएगा।

यहां शोध के माध्यम से हम अतीत को वर्तमान और भविष्य से कैसे जोड़ेंगे, इस पर काम किया जाएगा। उन्होंने कहा कि शोधकर्ता इस पर काम करने जा रहे हैं कि कैसे ओड़िशा ने उत्तर और दक्षिण के बीच पुरानी जनजातीय और जगन्नाथ संस्कृति के मिश्रण पर पुल का काम किया।

वे यहां के रहिवासियों पर, प्रौद्योगिकी पर, शास्त्रों पर, आदिवासी संस्कृतियों पर और हम इससे कैसे सीख सकते हैं, इस पर काम करेंगे। कहा कि यह एक युवा केंद्रित केंद्र होगा, जहां प्राथमिक जोर यह सुनिश्चित करना है कि परंपरा और ज्ञान परंपरा इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाकर जीवित रहे। ओडिशा से संबंधित किसी भी चीज़ के लिए उक्त केंद्र में कोई भी विद्वान आ सकता है और ओडिशा पर शोध कर सकता है।

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