साभार/मुंबई। वॉट्सऐप में फॉर्वर्ड किया गया एक मजाक मुंबई के एक स्कूल के प्रिंसिपल को भारी पड़ रहा है। उसी स्कूल के एक चपरासी की शिकायत पर प्रिंसिपल के खिलाफ अनुसूचित जाति और जनजाति ऐक्ट के तहत शिकायत दर्ज हो चुकी है।
याचिका खारिज करने की मांग
प्रिंसिपल ने बॉम्बे हाई कोर्ट में एक याचिका दायर करके अपने विरुद्ध दायर याचिका को खारिज करने की मांग की है। न्यायाधीश प्रकाश नाईक और न्यायाधीश एससी धर्माधिकारी ने पिछले सप्ताह पूछा था कि क्या इस मजाक को फॉर्वर्ड करने के लिए प्रिंसिपल बिना किसी शर्त के चपरासी से माफी मांगने को तैयार है? 20 अप्रैल को प्रिंसिपल को अपनी राय कोर्ट को देनी है। उसी दिन दोनों पक्षों को सुनने के बाद ही कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा।
दोनों वॉट्सऐप ग्रुप में
गौरतलब है कि इस स्कूल का प्रिंसिपल और चपरासी, दोनों ही इस वॉट्सऐप ग्रुप में हैं। फॉर्वर्ड किया गया मजाक आरक्षण के मार्फत नौकरी पाने से संबंधित था। वॅाट्सऐप पर यह मजाक पढ़ने के बाद चपरासी आहत हुआ। उसने पुलिस में प्रिंसिपल के विरुद्ध आईपीसी की धारा 153ए के तहत एफआईआर दर्ज कराई। धारा 153ए धर्म, जाति, समुदाय और भाषा या अन्य किसी तरह से अनेक समुदायों में दुश्मनी फैलाने से संबंधित है। चपरासी ने अपनी शिकायत में यह भी कहा कि प्रिंसिपल के इस आचरण से एससी-एसटी ऐक्ट की धाराओं का उल्लंघन होता है।
वकील की दलील
प्रिंसिपल के वकील उमेश मनकापुरे ने तर्क दिया कि इस मामले में एससी-एसटी ऐक्ट लागू नहीं होता। क्योंकि इस मामले में जाति के नाम पर किसी को अपमानित करने या उत्पीड़ित करने का उद्देश्य था ही नहीं। साथ ही, वॉट्सऐप पर ग्रुप के किसी सदस्य को मेसेज फॉर्वर्ड करने पर आईपीसी की धारा 153-ए लागू नहीं की जा सकती। वकील ने यह दलील दी कि एफआईआर दोनों ही आधार पर अपराध सूचित नहीं करती।
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