साभार/ नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के बागी नेता यशवंत सिन्हा ने मंगलवार को राष्ट्रीय मंच को घोषणा की। उन्होंने कहा कि हम किसानों के मुद्दों को लेकर आंदोलन करेंगे और उसके साथ दूसरे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार की ग़लत नीतियों को उजागर करेंगे। उन्होंने कहा कि हम सब यहां महत्वपूर्ण कार्यक्रम के लिए आए हैं। उन्होंने कहा कि मैं घोषणा करता हूं कि राष्ट्रमंच का सबसे बड़ा मुद्दा किसानों का होगा। एनपीएस को ही देख लीजिए। नोटबंदी को मैं आर्थिक सुधार मानता हूं, फिर बुरी तरह लागू की गई जीएसटी उससे छोटे उद्योग मर गए।
बेरोज़गारी का क्या हाल है, भूख और कुपोषण के चलते बच्चों का भविष्य ख़तरे में है। आंतरिक सुरक्षा को देख लीजिए ऐसे लगता है कि भीड़ ही न्याय करेगी और जब जाति और धर्म पर भीड़ तंत्र आती है तो उसकों संभालना सबसे मुश्किल है। उन्होंने कहा कि बताया जाता है कि हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि विदेश नीति है, पर डोकलाम को ही देख लीजिए। खबरों को माने तो जो चीन 10% था वो 90 % हो गया है। अब कोई 56 इंच की छाती को नहीं पूछता।
यशवंत सिन्हा के राष्ट्रीय मंच में शत्रुघ्न सिन्हा, दिनेश त्रिवेदी(टीएमसी), माजिद मेमन, संजय सिंह(आप), सुरेश मेहता (पूर्व मुख्यमंत्री गुजरात), हरमोहन धवन(पूर्व केंद्रीय मंत्री), सोमपाल शास्त्री(कृषि अर्थशास्त्र), पवन वर्मा(जेडीयू), शाहिद सिद्दीक़ी, मोहम्मद अदीब, जयंत चैधरी(आरएलडी), उदय नारायण चौधरी(बिहार), नरेंद्र सिंह(बिहार), प्रवीण सिंह (गुजरात के पूर्व मंत्री), आशुतोष (आप) और घनश्याम तिवारी (सपा) शामिल हुए हैं। यशवंत सिन्हा ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि हम सब अचानक साथ नहीं आए हैं। हम सब कई महीनों से संपर्क में थे और हमें देश की वर्तमान स्थिति पर चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि हमें लगा कि देश की जनता के लिए एक आंदोलन करने की ज़रूरत है और हम वैचारिक रूप से एक दूसरे से जुड़े हैं।
उन्होंने कहा कि हम बापू की समाधि पर गए तो लगा कि बापू का सरकारीकरण हो गया है। हमें अंदर नहीं जाने दिया फिर काफी मानमुनाव्वल के बाद हमें और मीडिया को अंदर जाने दिया गया। उन्होंने कहा कि 70 साल पहले आज के दिन उस महामानव ने देश के लिए अपना बलिदान दिया था। वर्तमान स्थिति में भी देश उन्हीं समस्याओं से ग्रस्त है। अगर आज हम नहीं खड़े हुए तो बापू का बलिदान व्यर्थ जाएगा।
बीजेपी के बागी नेता ने कहा कि हर साल बजट पेश होता पर देश को रूचि नहीं रही क्योंकि डिलिवरी नहीं हो रही। 70 साल से जो प्रजातंत्र कायम है हमें लगता है कि प्रजातंत्र और उसकी संस्थाएं ख़तरे में पड़ गई हैं। उन्होंने कहा कि आज और कल पार्लियामेंट में छुट्टी है। कुल चार ही कामकाज के दिन हैं जिनमें राष्ट्रपति और बजट पर चर्चा होगी। उन्होंने कहा कि पहले नौ कामकाज के दिन होते थे। वो क्या कहते हैं कि क्या पहनेंगे क्या निचोड़ेंगे। शीतशत्र भी छोटा कर दिया गया। ये क्या संसद की गरिमा है।
यशवंत सिन्हा ने कहा कि न्यायालय में क्या हो रहा है अब लीपापोती की जा रही है। आरोप क्या था कि कुछ केस को प्रफ़र्ड बेंच पर भेजा जा रहा था। क्या देश की जनता को जानने का हक़ नहीं है? मीडिया एक प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ है, उसका हाल आप देख ही रहे हैं। जो जांच एजेंसियां हैं सीबीआई, इनकम टैक्स आदि को किसलिए इस्तेमाल किया जा रहा है। औद्योगिक विकास कम है और हमें देश के 60 करोड़ किसानों की फिक्र है। राज्य और केंद्र सरकारों ने किसान को भीखमंगा बना दिया है। किसान को एमएसपी नहीं मिल रही है। ये कभी मुद्दा नहीं बनता है।
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