मसूर दाल पर भी बनी महापुरुषों की तस्वीरें
जितेश बोरकर / जितेन्द्र कुमार शाह (खड़गपुर)। डिजिटल वर्ल्ड में लुप्त होती माइक्रो आर्ट (Micro art) को मेदिनीपुर (Midnapore) जिला के विमान अदक नामक (Viman Adak) युवक ने आधुनिकता के इस युग में भी जीवित रखा है। अदक अपने माइक्रो आर्ट के जरीये मक्का (भुट्टा) का दाना, मसूर दाल और सरसो के दानों पर मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, चर्च और महापुरूषों की छवि बनाने में महारत हासिल है। माइक्रो आर्ट पर मजबूत पकड़ रखने वाले अदक को अब तक कोई मंच या गौड फादर नहीं मिला वरना इसका नाम भी लिम्का बुक या गिनिज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉड में दर्ज होता!
पश्चिमी बंगाल के मेदिनीपुर जिला में स्थित घाटाल महकमा के नाढाजल इलाके के रहने वाले विमान अदक की नजर व हाथों में चौंकाने वाली कला है। डिजिटल वर्ल्ड से लुप्त होते माइक्रो आर्ट को बचाने के लिए अदक ने मुफ्त में प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया है। मौजूदा दौर में इंटरनेट पर वीडियो गेम से लेकर दुनियां की सारी सुविधाएं मौजूद हैं। इस दौर में शिक्षित व अशिक्षित भी मोबाइल फोन पर वीडियो गेम व अन्य तरह के खेल व संसाधनों में लिप्त हैं।
भागती दौड़ती जिदगी में किसी के पास उतना समय नहीं है कि माइक्रो आर्ट पर ध्यान दे। लेकिन दुनिया से लुप्त होती इस कला को बचाए रखने के लिए बंगाल के अदक ने बड़ी कुर्बानी दी है। अदक ने इस दौर के युवक व बच्चों मोबाईल गेम आदि से दूर रहने की सलाह दी है। इस लिए अदक ने मुफ्त में माइक्रो आर्ट की तालीम देना शुरू कर दिया। गौरतलब है की 28 वर्षीय विमान अदक मेदनीपुर के नाढाजल स्थित राज कालेज इलाके के निवासी हैं। उसके पिता का नाम मोहन चन्द्र अदक और माता का नाम संध्या अदक हैं। विमान के पिता पेशे से फार्मेसिस्ट और माता ग्रहणी हैं। विमान ने राज कालेज से स्नातक और पांशकुडा के बनमाली कालेज से बी पी एड की डिग्री हासिल की है।
विमान अदक को कक्षा दो मे पढ़ते समय माइक्रो आर्ट की तरफ झुकाव हुआ। उसने माइक्रो आर्ट के जरिये मक्का (भुट्टा) का दाना चौक और स्लेट पेंसिल, सरसो और मसूर की दाल पर महापुरुष की तस्वीरें बनाई है। अदक ने अपने अभ्यास के दौरान सबसे पहले राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी (महात्मा गांधी) की छवि को हुबहू बनाया था।
इसके बाद उसने कविगुरु रविन्द्र नाथ टैगोर, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, खुदीराम बोस, भगतसिंह, जवाहरलाल नेहरू, चन्द्रशेखर आजाद, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की तस्वीरें बनाई। इसके अलावा अदक ने एपीजे अब्दुल कलाम, मंदिर मस्जिद ग्रामीण परिवेश को भी अपनी कला से तराशा। हाल के दिनों में वह करीब 550 बच्चों को मुफ्त में माइक्रो आर्ट की ट्रेनिग दे रहा है। अदक को अगर किसी बच्चे के अभिभावक खुशी से जीविका चलाने के लिए मदद के तौर पर देते हैं तो वह स्वीकार कर लेता है।
आर्थिक तौर पर कमजोर अदक का मानना है कि काश उसके पास भी दौलत होती तो वह इस काम को और आगे बढ़ाने के लिए किसी महानगर में जाकर माइक्रो आर्ट से सबंधित और भी ट्रेनिंग लेता। चूंकि बड़े संस्थानों में और भी सुविधाएं होती हैं। एक सवाल के जवाब में अदक ने बताया की माइक्रो आर्ट की कला मैंने आनंदपुर मे रहने वाले अपने गुरु दिलीप चाबड़ी से सीखी हैं। अदक का कहना है कि इस कला में भारतीय बच्चों और नव युवकों की रूची नहीं है। इन्हीं कारणों से माइक्रो आर्ट लुप्त होती जा रही है। ऐसे में अगर सरकार सहयोग दे तो इसे भारतीय सांस्कृतिक का हिस्सा बनाया जा सकता है। हालांकि मैंने इसे बरकरार रखने के लिए युवकों और बच्चों को मुफ्त में ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया है।
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