मुंबई। चार साल पहले तक महाराष्ट्र की राजनीति में सक्रिय दो प्रमुख गठबंधनों में विखंडन हुआ था। उसके बाद राज्य में हुए सत्ता परिवर्तन ने सारे समीकरण बदल कर रख दिए हैं। सत्ता से बाहर कांग्रेस और राकांपा एक बार फिर साथ आने को बेताब हैं। वहीं गठबंधन टूटने के बाद भी भाजपा के साथ सत्ता में शामिल शिवसेना ने ‘स्वबल’ पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर रखा है। कहते हैं कि सत्ता जोड़ती है, लेकिन शिवसेना-भाजपा जैसे 25 साल पुराने ‘दोस्तों’ के मामले में यह बात गलत साबित हो रही है।
मंगलवार को कांग्रेस-राकांपा नेताओं की बैठक हुई। विधानसभा में नेता विपक्ष राधाकृष्ण विखे पाटील के सरकारी बंगले पर हुई इस बैठक में दोनों पार्टियों के प्रदेश के बड़े नेता मौजूद थे। बैठक के अजेंडा में तीन मुख्य मुद्दे थे। पहला मुद्दा था 22 फरवरी से शुरू होने जा रहे राज्य विधानमंडल के बजट सत्र में विपक्ष की रणनीति तय करना, दूसरा मुद्दा था महाराष्ट्र में लोकसभा की दो सीटों के लिए होने वाले उप चुनाव और आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए गठबंधन के मुद्दे पर चर्चा कर सहमति बनाना।
बैठक में राकांपा की तरफ से प्रदेशाध्यक्ष सुनील तटकरे, अजित पवार, जयंत पाटील, दिलीप वलसे पाटील और कांग्रेस की तरफ से प्रदेशाध्यक्ष अशोक चव्हाण, नेता विपक्ष राधाकृष्ण विखे-पाटील, पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और पूर्व मंत्री नसीम खान जैसे दिग्गज नेते उपस्थित थे। बैठक की खास बात यह रही कि 2014 में ‘हाथ’ और ‘घड़ी’ का साथ छूटने से जो कटुता पैदा हुई थी, वह पूरी तरह गायब थी। सभी नेता 2019 में साथ मिलकर चुनाव लड़ने को तैयार थे। हालांकि यह शुरुआती सहमति है, असली चुनौती तो तब पैदा होगी चुनावों का ऐलान होगा और सीटों के बंटवारे को लेकर सौदेबाजी शुरू होगी।
मंगलवार को हुई बैठक में दोनों पार्टी के प्रदेश नेताओं की सहमति के बाद अब इस पर दोनों पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व की मुहर लगनी बाकी है। हालांकि कांग्रेस नेतृत्व और शरद पवार पहले से ही विपक्षी ‘एकता’ को मजबूत करने में जुटे हैं। सभी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को एकजुट करने के बारे में चर्चा हुई। भविष्य में एक साथ मिलकर कैसे काम करना है इस पर चर्चा हुई। दोनों तरफ की कटुता अब समाप्त हो गई है।
282 total views, 1 views today