मुंबई। इच्छामृत्यु पर सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले के बाद भी नहीं बदला है 88 वर्षीय नारायण लावटे का संकल्प। पत्नी इरावती (78) भी उनके साथ प्राण त्यागने के अपने फैसले पर अटल हैं। इच्छामृत्यु पर देश की सर्वोच्च अदालत से आए फैसले से वे खुश नजर नहीं आए। दंपती का कहना है कि पैसिव नहीं, बल्कि ऐक्टिव यूथेनेशिया की जरूरत है।
बता दें कि पैसिव यूथेनेशिया के अंतर्गत बीमार पड़े मरीज के जिंदा रहने के लिए लगाए गए जीवन रक्षक सपोर्ट को हटा दिया जाता है, जबकि इसके विपरीत ऐक्टिव यूथेनेशिया के जरिए आमतौर पर चलते-फिरते मरीज को घातक दवाइयों की मदद से मौत दी जाती है। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को ‘पैसिव यूथेनेशिया’और ‘लिविंग बिल’ को मान्यता देते हुए अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। दोनों अधिक उम्र के बावजूद काफी स्वस्थ हैं और लाचार होने से पहले मौत चाहते हैं। पड़ोसियों ने बताया कि बुजुर्ग दंपती को कई बार समझाया गया, लेकिन वे मानने को तैयार नहीं हैं।
चर्नी रोड स्थित ठाकुरद्वार की लक्ष्मी चॉल में दोनों आज भी एक-दूसरे के बिना खाना नहीं खाते। अब इस संसार से साथ ही विदा होना चाहते हैं। इरावती लावटे नाराज हैं कि इस फैसले के अंतर्गत वसीयत पत्र लिखकर शर्तों के साथ इच्छामृत्यु देने की बात की गई है। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति बीमार है और वो बीमारी लाइलाज है, तो उस व्यक्ति पर यह निर्भर करता है कि आखिर उसे कब तक लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा जाए। इसके लिए उसे पहले ही पत्र लिखकर इसकी मांग करनी होगी। हालांकि, दंपती का कहना है कि इस स्थिति तक पहुंचने का हम इंतजार क्यों करें?
फिलहाल हमें किसी भी तरह की कोई शारीरिक दिक्कत नहीं। हमारे सभी अंग अच्छे से काम कर रहे हैं, लेकिन भविष्य में क्या होगा, हमें नहीं पता, इसलिए हमने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से इच्छा मृत्यु की मांग की है। गौरतलब है कि मरने के बाद दंपती अपने सभी अंग भी दान करना चाहते हैं। चॉल का कमरा धर्म, दर्शन, स्वास्थ्य और कानून की भारी-भरकम किताबों से पटा पड़ा है। भावुक पत्नी से हटकर नारायण लवटे के तर्क कानून के ठोस पाए पर रखे होते हैं। उन्होंने बताया कि किसी भी अनुरोध पर 90 दिन के भीतर संबंधित विभाग को प्रतिक्रिया देनी होती है।
31 मार्च को हमारे द्वारा की गई मांग की मियाद पूरी हो रही है। हमें फिलहाल अपनी मांग पर प्रतिक्रिया का इंतजार है। अगर 31 मार्च तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आती है, तो हम इस बारे में कानूनी लड़ाई लड़ेंगे। जनसंख्या बढ़ोतरी को सामाजिक अपराध मानने वाले इस दंपती ने संतान सुख के प्रलोभन से भी खुद को दूर रखा और यही कारण है कि वे अकेले पड़ गए हैं और मौत को गले लगाना चाहते हैं। वह भी कानूनी तरीके से और एक साथ।
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