मुंबई। इस्लामिक कैलेंडर के 8 मोहर्रम (Muharram) को हजरत सैय्यद जलालुद्दीन शाह कादरी (Hazrat sayyed Jalaluddin Shah Qadri) के दरगाह शरीफ पर बड़े पैमाने पर लोगों ने अपनी हाजरी दर्ज कराई। इस मौके पर कर्बला के शहीदों को याद किया गया व पंजतन पाक की बारगाह में लोगों ने अकीदत पेश की। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक एक से दस मोहर्रम, इन दस दिनों की बड़ी फजीलतें हैं। मुहर्रम इस्लामिक वर्ष यानी हिजरी सन् का पहला महीना है। इसे मुस्लिम समाज के लोग त्यौहार के रूप में मनाते हैं। इस माह को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया गया है।
इस दिन गडकरी वाले बाबा के नाम से मशहूर हजरत सैय्यद जलालुद्दीन शाह कादरी के दरगाह शरीफ पर भी काफी भीड़ देखी गई। इस दिन इमाम हुसैन की कर्बला के जंग में शहादत हुई थी। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक सन् 680 में इसी माह में इराक के कर्बला नामक शहर में इस्लामिक के लिए जंग हुआ था, जो पैगंबर हजरत मुहम्म्द सल्ललाहो अलैही वसल्लम के नाती व इब्न ज़ाद के बीच हुआ। सही मायनों में इस जंग में जीत हजरत इमाम हुसैन की हुई। इस जंग में उनके छः महीने की उम्र के पुत्र हजरत अली असगर भी शामिल थे।
इस जंग के बाद से दुनिया के ना सिर्फ मुसलमान बल्कि दूसरी कौमों के लोग भी इस महीने में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का गम मनाकर उन्हें याद करते हैं। आशूरे के दिन यानी 10 मुहर्रम को एक ऐसी घटना हुई थी, जिसका विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इराक स्थित कर्बला में हुई यह घटना दरअसल सत्य के लिए जान न्यौछावर कर देने की जिंदा मिसाल है। इस घटना में हजरत मुहम्मद के नवासे (नाती) हजरत हुसैन को शहीद कर दिया गया था।
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