मुंबई। पता नहीं किसकी नजर लगी है मुंबई को कि एक के बाद एक आगजनी के भयानक हादसों ने मायानगरी में मौत का तांडव मचा रखा है। और पता नहीं कैसी नजर लगी है मनपा और फायर ब्रिगेड को कि आग बुझाकर जान-माल की हानि रोकने में यह लगातार फिसड्डी साबित होती जा रही है।
शुरुआत करते हैं 18 दिसंबर की अलसुबह के हादसे से। इस दिन भोर में सीकानाका में एक फरसाण बनाने वाली फैक्ट्री में आग लगने से 12 कामगार जिंदा जलकर मर गए। जबकि यह फरसाण की फैक्ट्री फायर ब्रिगेड के दफ्तर से बहुत ज्यादा दूर नहीं थी और स्थानीय लोगों का आरोप है कि अगर फायर ब्रिगेड दल समय रहते पहूंच गया होता तो उसमें कईयों की जान बच गई होती। मामले की रिपोर्ट आई तो पता चला कि आग शॉट सर्किट की वजह से लगी थी।
बहरहाल बात आई की गई हो गई। फिर बारी आई कमला मिल में लगी आग की जिसमें 28 तारीख की रात को प्रचंड आग ने ऐसा तांडव मचाया कि 14 लोगों की आग की लपट और धुएं से दम घुटकर मौत हो गई। आग लगने के पीछे की वजह यह थी कि मिल में होटल और पबों में जमकर अवैध बांधकाम किया गया था।
और यहां तक कि पूरे शेड, छज्जा और टॉयलेट तक भी अवैध बनाए गए थे। कई कार्यकर्ताओं की चिट्ठी और शिकायती पत्र दिए जाने के बावजूद मनपा के बाबुओं के कान पर जूँ तक नहीं रेंगी और रिश्वत खाकर सब कुछ होता देखते रहे। उनकी नींद तब टूटी जब 14 लोगों की जान चली गई।
यूं तो दबाव में और आनन फानन में सरकार ने जांच का आदेश दे दिया और उस पर ताबड़तोड़ काम भी होने लगा, परंतु कार्यकर्ताओं ने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि मनपा के अधिकारियों की लापरवाही और रिश्वतखोरी की जाँच खुद उसी विभाग का अधिकारी कैसे कर सकता है। यह तो हितों के टकराव का सीधा-सीधा मामला है और मनपा कमीश्नर अजोय मेहता यह कभी नहीं चाहेंगे कि उनके अधिकारी पर किसी तरह की आंच आए क्योंकि अगर ऐसा होता है तो इसकी लपेट में वह खुद कभी भी आ जाएंगे।
आगजनी के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए अब बात करते हैं दे दिन पहले मरोल में लगी उस भयानक आग की जिसमें एक ही परिवार के चार लोग मौत के मुंह में समा गए। जी हां, समय था रात के करीब 2 बजे जब कपासी परिवार के फ्लैट में आग लगी। आसपास के लोग बताते हैं कि फायर ब्रिगेड की गाड़ी पहूंचने में 40 मिनट का समय लगा जबकि मरोल का फायर स्टेशन महज 10 मिनट की दूरी पर है। फायर ब्रिगेड के लोग जब तक घटनास्थल पर पहूंचकर जान बचाते तब तक 4 लोगों की दम घुटने से मौत हो चुकी थी।
15 दिन में 3 भयानक हादसे और 30 लोगों की असमय और दर्दनाक मौत ने सिस्टम को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। आखिर कौन सी ऐसी वजहें हैं जिससे आग लगने की घटनाओं में इतना इजाफा हुआ है और इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला यक्ष प्रश्न यह है कि आग पर समय रहते काबू पाने में हमारी पूरी मशीनरी फेल क्यों हो रही है? क्यों आखिर इतनी जिंदगियों को बेमौत आग के हवाले करने में हमारा सिस्टम अहम रोल अदा कर रहा है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मनपा प्रशासन ने अभी अपने ताजा फैसले में सभी होटलों में एक सिक्योरिटी चेक करने का सर्कुलर इश्यू किया है। इसमें कहा गया है कि होटलों, पबों और बारों में आग के सुरक्षा मानकों का अनुपालन होना बहुत जरुरी है अन्यथा उनका लाइसेंस निरस्त कर दिया जाएगा।
पर जैसा कि सर्व विदित है मनपा के ऐसे सर्कुलरों का बहुत ही कम असर अतीत में देखा गया है, क्योंकि अपने किसी भी आदेश या सर्कुलर का मनपा अनुपालन करवाने में पूरी तरह से नाकामयाब रही है। मनपा की इस नाकामयाबी और लगातार हो रहे अग्निकांड पर सामाजिक एवं आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली का कहना है कि उपरोक्त हादसों में मनपा और मनपा के फायर ब्रिगेड और पुलिस सहित अबकारी विभाग पूरी तरह से जिम्मेदार है। अगर इन विभागों ने समय पर कर्रावाई की होती तो शायद इन घटनाओं को टाला जा सकता था।
वहीं हाल के दिनों मनपा की लापरवाहियों का शिकार हुई दूरदर्शन की पूर्व एंकर कंचन रजतनाथ के पुत्र राजशी नाथ को अपनी मां के खोने का गम है। उन्होंने मनपा के अधिकारियों को याद दिलाने की कोशिश की है कि सरकार उन्हें वेतन देती है, तो वे अपने फर्ज से गद्दारी क्यों करते हैं। उनका कहना है कि मनपा के अधिकारी व कर्मचारी वसूली वाले स्थानों पर समय से पहुंचते हैं। जबकि काम करने की नौबत आती है तो वे अपना पल्ला झाड़ते नजर आते हैं। इतना ही नहीं काम वाले स्थानों पर वे अकसर देर से ही पहुंचते हैं।
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