मुंबई। आधुनिक युग में परिवहन के नए-नए संसाधनों का उपयोग हो रहा है। भारत में पहली बुलेट ट्रेन चलाने की तैयारियां चल रहीं हैं, ऐसे में दो शहरों की दूरी घटाने के लिए परिवहन के अत्याधुनिक साधनों की तलाश हो रही है। ऐसी ही एक नई तकनीकि है हाइपर लूप, जिसमें 1150 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से सफर करना मुमकिन है। इस तकनीकि की संभावनाएं भारत में भी तलाशी जा रही है।
बुधवार को महाराष्ट्र सरकार और अमेरिकी कंपनी वर्जिन हाइपरलूप वन ने एक करार किया। इस करार के तहत वर्जिन हाइपरलूप मुंबई-पुणे के बीच हाइपरलूप परियोजना की संभावना को तलाशने के लिए सर्वे करेगा। महाराष्ट्र के अलावा कर्नाटक में भी हाइपरलूप तकनीक की स्टडी होने वाली है।
महाराष्ट्र सरकार की इकाई पुणे मेट्रपालिटन रीजन डिवेलपमेंट अथॉरिटी (पीएमआरडीए) और वर्जिन हाइपरलूप के बीच बुधवार शाम को करार किया गया। इस दौरान राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मौजूद थे। पीएमआरडीए मुंबई-पुणे रूट पर हाइपरलूप तकनीकि का उपयोग और आर्थिक प्रभाव का अध्ययन करेगी। हाइपरलूप एक ट्यूब ट्रांसपॉर्ट तकनीकि है। ट्यूब यानी एक पाइपलाइन में ही कोच पटरियों के ऊपर तैरते रहते हैं। मुंबई-पुणे हाईवे पर ट्रैफिक जाम लगने की महीने भर में दर्जनों खबरें आती हैं।
जानकारों के मुताबिक दोनों शहरों के बीच व्यापारिक संबंध भी हैं, ऐसे में राज्य की प्रगति के लिए आर्थिक योगदान हवाई संबंध अच्छे होने चाहिए। फिलहाल, अंधेरी-सांताक्रुज स्थित एयरपोर्ट और पुणे एयरपोर्ट की दूरी करने के लिए कम से कम 6-7 घंटे लगते हैं। अब नवी मुंबई में नया हवाईअड्डा प्रस्तावित है और वहां से पुणे नए पुरंदर हवाईअड्डे की दूरी को यदि हाइपरलूप के जरिए कम किया जाए, तो सफर में लगने वाला समय कुछ चर्चगेट से दादर तक लोकल ट्रेन से तय किए गए जितना होगा।
इस कंपनी के अधिकारी निक अर्ले ने एमओयू पर हस्ताक्षर करने के दौरान कहा, ‘डिजिटल इंडिया परियोजना को गति देने के लिए परिवहन की भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी। वर्जिन हाइपरलूप वन इसमें अहम रोल अदा करेगी।’ उन्होंने कहा कि जिस तरह से भारत में 3जी और 4जी तकनीक को विस्तार मिला है उसी तरह से परिवहन के क्षेत्र में भी नई तकनीक की अपार संभावनाएं हैं। भारत में फिलहाल परिवहन के क्षेत्र में कईं चुनौतियां हैं। सड़क परिवहन मंत्रालय के अनुसार, देश का 65 फीसदी माल भीड़-भाड़ वाले रोड नेटवर्क पर ढोया जा रहा है।
यदि 300 प्रतिघंटा की रफ्तार से 22 मिनट में माल वहन करने की तकनीक का उपयोग किया जाए, तो आर्थिक क्षेत्र में निश्चित तौर पर गति मिलेगी। हाइपरलूप (मध्यपूर्व और भारत) के प्रबंध निदेशक हर्ज धालिवाल के अनुसार, ‘इस तकनीकि के प्राथमिक अध्ययन से राज्य सरकारों को पता चल जाएगा कि नागरिकों को एक स्वच्छ, सुरक्षित एवं तेज गति के परिवहन का उपयोग किस तरह से सार्थक परिणाम ला सकता है।’
बुलेट से दोगुनी रफ्तार से चलने वाली इस तकनीकि में दो तकनीकों को उपयोग होता है, जिनमें निश्चित संख्या में यात्री होते हैं। इसे वैक्यूम ट्यूब सिस्टम लगभग 700 मील प्रति घंटा की रफ्तार से चुंबकीय शक्ति से दौड़ाया जाता है। यदि यात्रा के दौरान बिजली से संपर्क टूट जाता भी है, तो कैप्सूल की धीरे-धीरे गति कम होगी और यह ट्यूब में सतह को बिना किसी क्षति से छू लेगी।
एक सर्वे के मुताबिक, भारत में इस परियोजना को 38 महीने में अंतिम स्वरूप दिया जा सकता है। बिजली के अलावा इसमें सौर और पवन ऊर्जा का भी उपयोग हो सकता है। अमेरिकी स्टार्टअप कंपनी का दावा है कि इस ट्रेन में यात्रा का खर्च हवाई सफर के मुकाबले आधा होगा। अनुमान के मुताबिक, कंपनी 500 किलोमीटर के लिए 30 डॉलर यानी 2000 रुपये तक चार्ज कर सकती है। वहीं एक हाइपरलूप ट्रेन में एक दिन में करीब 1 लाख 44 हजार लोग यात्रा कर सकेंगे।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि हाइपरलूप तकनीकी को आर्थिक रूप से समर्थ बनाने के लिए उस स्थान में ट्रैफिक का घनत्व बहुत ज्यादा होना आवश्यक है। मुंबई और पुणे देश के सबसे आबादी वाले सात शहरों में से एक हैं। इन दोनों शहरों के बीच हाइपरलूप तकनीक का बेहतर उपयोग हो सकता है। इसमें 800 इंजिनियर दुनियाभर से शामिल हैं जबकि इनमें से 25 भारतीय हैं।
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