जेनेरिक दवाईयों की पहचान क्या?

मुंबई में फैला अप्रमाणित डॉक्टरों का जाल

संवाददाता/ मुंबई। जेनेरिक और ब्रांडेड दोनों दवाईयों की अपनी अलग-अलग पहचान नहीं होने के कारण मरीज या दवा के खरीददार मेडिकल स्टोर्स वालों के हाथों ठगे जा रहे हैं। इन दिनों मेडिकल स्टोर्स वाले डॉक्टरों द्वारा लिखी गई दवाईयों के बजाए उससे मिलती -जुलती दवाईयां बेचने पर अधिक जोर देते हैं। क्योंकि मिलती – जुलती जेनेरिक दवाईयों (Generic medicine) की एमआरपी पर तीन से चार गुणा अधिक प्रिंट होता है। इसकी जानकारी केंद्र एवं राज्य के फूड एन्ड ड्रग्स विभाग (Food and drug department) को है। इसके बाद भी जेनेरिक और ब्रांडेड दोनों दवाईयों की अलग-अलग पहचान क्यों नहीं दी जाती? ताकि लोगों को ठगी से बचाया जा सके।

एफडीए की लापरवाहियों का शिकार होती राज्य की जनता

गौरतलब है कि एफडीए (FDA) की लापरवाहियों के कारण मुंबई सहित राज्य के लगभग सभी मेडिकल स्टोर्स, हॉस्पिटल और नर्सिंग होम आदि में चल रहे दवाखाना वाले बेलगाम हो गए हैं। इन मेडिकल्स स्टोर्स में ब्रांडेड कंपनियों की दवाईयों कि जगह मरीजों को अधिक से अधिक जेनेरिक दवाईयां देकर तीन से चार गुणा रकम वसूली जा रही है। इतना ही नहीं मुंबई की झोपड़पट्टीयों में मेडिकल्स स्टोर्स में फार्मासिस्ट की जगह कम वेतन वाले युवकों को बहाल किया जाता है। जो कि खतरे की घंटी है। यही कारण है कि मेडिकल स्टोर्स वाले मालामाल हो रहे हैं और मरीज कंगाल?

इस कड़ी में दिलचस्प बात यह है कि इन दिनों हॉस्पिटल, नर्सिंग होम और क्लिनिक के संचालक डॉक्टर भी इन दिनों दवाईयां बेच रहे हैं। दरअसल दवा कंपनियों के मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव अपनी गुणकारी दवाईयों का प्रचार -प्रसार करने के बाद कई दवाईयों का नमुना डॉक्टरों को दे देते हैं। उन दवाइयों को अधिकांश डॉक्टर बेच देते हैं। बता दें कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल के नियमानुसार आपरेशन थियेटर या कैजुअल्टी में चंद खास दवाईयों को ही रखने का आदेश है। इ

सकी जांच की जिम्मेदारी फ़ूड एन्ड ड्रग्स विभाग का होता है। लेकिन जांच नहीं होने के कारण ऑपरेशन थियेटर में बची हुई दवाईयों में भी डॉक्टर व अन्य स्टॉफ के बीच बंदर बांट होती है। इन मुद्दों पर फ़ूड एन्ड ड्रग्स विभाग मौन है। हाल ही में इस तरह के कई मामलों में देश के कई हॉस्पिटलों के लाइसेंस रद्द हुए हैं। इसके अलावा लगभग दो दर्जन हॉस्पिटल जांच के दायरे में हैं। कयास लगाया जा रहा है कि महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल के सुस्त रवैये के कारण राज्य के गरीबों को कहीं डॉक्टरों द्वारा तो कहीं मेडिकल्स स्टोर्स वालों द्वारा लूटा जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल द्वारा प्रमाणित डॉक्टरों को मुंबई सहित राज्य के किसी भी शहर में प्रैक्टिस (अभ्यास) करने की अनुमति दी जाती है। लेकिन यहां बड़ी संख्या में अप्रमाणित बी यू एम एस, बी एच एम एस, बी ए एम एस और फर्जी डॉक्टर शहर की झोपड़पट्टियों में गरीब जनता को कभी जेनरीक तो कभी ब्रांडेड दवाईयों के नाम पर लूट रहें हैं। इस मुद्दे पर महाराष्ट्र के खाद्य एवं औषधी प्रशासन की आयुक्त डॉ. पल्लवी दराडे से संपर्क करने की कोशिश की गई, इसके लिए उन्हें एसएमएस भी किया गया लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया।


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