एफडीए और एमएमसीबी मौन
संवाददाता/ मुंबई। हाल के दिनों में हॉस्पिटल, नर्सिंग होम और क्लिनिक के संचालक और डॉक्टर दवाईयां बेच रहे हैं। दरअसल दवा कंपनियों द्वारा प्रचार-प्रसार व उसकी गुणवत्ता का नमूना डॉक्टरों के पास आता है। उन दवाइयों को अधिकांश डॉक्टर बेच देते हैं। जबकि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (Medical council of India) और महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल (Maharashtra Medical council) के नियमानुसार ऑपरेशन थियेटर या कैजुअल्टी में चंद खास दवाईयों को ही रखने का आदेश है। इसकी जांच की जिम्मेदारी फूड एंड ड्रग्स विभाग (Food and drug department) की है। लेकिन जांच नहीं होने के कारण ऑपरेशन थियेटर में बची दवाईयों को बेच दिया जाता है। इन मुद्दों पर फूड एंड ड्रग्स विभाग क्यों मौन है।
विभागीय लापरवाहियों का शिकार होती राज्य की जनता
खबर के मुताबिक इस तरह के मामलों में देश के कई हॉस्पिटलों के लाइसेंस रद्द हुए हैं। इसके अलावा लगभग दो दर्जन हॉस्पिटल जांच के दायरे में हैं। कयास लगाया जा रहा है कि महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल और फूड एंड ड्रग्स विभाग के सुस्त रवैये के कारण राज्य के गरीबों को कहीं डॉक्टरों द्वारा तो कहीं मेडिकल स्टोर्स वालों द्वारा लूटा जा रहा है। इस कड़ी में दिलचस्प बात यह है कि महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल द्वारा प्रमाणित डॉक्टरों को मुंबई सहित राज्य के किसी भी शहर में प्रैक्टिस (अभ्यास) करने की अनुमति दी जाती है। लेकिन यहां बड़ी संख्या में अप्रमाणित बी यू एम एस, बी एच एम एस, बी ए एम एस और फर्जी डॉक्टर शहर की झोपड़पट्टियों में गरीब जनता को कभी जेनेरिक तो कभी ब्रांडेड दवाईयों के नाम पर लूट रहें हैं। इस मुद्दे पर महाराष्ट्र के खाद्य एवं औषधि प्रशासन की आयुक्त डॉ. पल्लवी दराडे से संपर्क करने की कोशिश की गई, इसके लिए उन्हें एसएमएस भी किया गया लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया।
ब्रांडेड के नाम पर जेनेरिक झोल
जेनेरिक (Generic) और ब्रांडेड दोनों दवाईयों की अपनी अलग-अलग पहचान नहीं होने के कारण मरीज या दवा के खरीदार मेडिकल स्टोर्स वालों के हाथों ठगे जा रहे हैं। इन दिनों मेडिकल स्टोर्स वाले डॉक्टरों द्वारा लिखी गई दवाईयों के बजाय उससे मिलती -जुलती दवाइयां बेचने पर अधिक जोर देते हैं। क्योंकि मिलती -जुलती जेनेरिक दवाईयों (Generic medicines) की एमआरपी पर तीन से चार गुणा अधिक प्रिंट होता है। इसकी जानकारी केंद्र एवं राज्य के फूड एंड ड्रग्स विभाग को है। इसके बाद भी जेनेरिक और ब्रांडेड दोनों दवाईयों की अलग-अलग पहचान क्यों नहीं दी जाती? ताकि लोगों को ठगी से बचाया जा सके।
गौरतलब है कि एफडीए की लापरवाहियों के कारण मुंबई सहित राज्य के लगभग सभी मेडिकल स्टोर्स, हॉस्पिटल और नर्सिंग होम आदि में चल रहे दवाखाना वाले बेलगाम हो गए हैं। इन मेडिकल स्टोर्स में ब्रांडेड कंपनियों की दवाईयों कि जगह मरीजों को अधिक से अधिक जेनेरिक दवाईयां देकर तीन से चार गुणा रकम वसूली जा रही है। इतना ही नहीं मुंबई की झोपड़पट्टीयों में मेडिकल स्टोर्स में फार्मासिस्ट की जगह कम वेतन वाले युवकों को बहाल किया जाता है। जो कि खतरे की घंटी है। यही कारण है कि मेडिकल स्टोर्स वाले मालामाल हो रहे हैं और मरीज कंगाल?
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