आनंद मिश्र
जब आप और हम लॉकडाउन के दौरान अपने-अपने घरों में बंद थे तो हजारों बेसहारा, गरीबों, बेघरों, ज़रूरतमंदों, दिहाड़ी पर काम करने वाला मजदूरों, टैक्सी और रिक्शाचालकों आदि को भुखमरी और जानलेवा परेशानियों से बचाने हेतु कुछ गिने चुने समाज सेवी और संस्थायें दिन रात उनकी सेवा में लगे थे। भाजपा नेेता संजय पांडे (Sanjay Pandey) उन्हीं में से एक ऐसे ही सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं जिन्होंने इस मुश्किल घड़ी में ऐसे लोगों को जरूरत के अनुसार उनकी मदद कर मानवता की सेवा की। फिलहाल बीजेपी महाराष्ट्र के स्टेट सेक्रेटरी श्री पांडे पहले भारतीय जनता युवा मोर्चा के नेशनल वाइस प्रेसिडेंट भी रह चुके हैं। कन्स्ट्रक्शन व्ययवसाय से जुड़े श्री पांडे ने वाटर कंजर्वेशन की दिशा में अपने एनजीओ नानाजी देशमुख प्रतिष्ठान की तरफ से सूखा प्रभावित वर्धा जिले 4 सालों तक लगातार सराहनीय कार्य कर लोगों का दिल जीतने का काम किया है। हमारे संवाददाता आनंद मिश्र ने श्री पांडे से उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों पर बातचीत की। प्रस्तुत है मुख्य अंश:
सवाल: लॉकडाउन के दिनों में आपने क्या-क्या सामाजिक कार्य किए?
जवाब: जैसे ही लॉकडाउन शुरू लगा कुछ समय बाद और हमने और हमारी टीम ने पाया कि रोज कमाने और खाने वाले मजदूर, ऑटो-टैक्सी ड्राइवर, सड़कों पर रहने वाले बेघर लोगों के समक्ष दो वक्त की रोटी का संकट खड़ा हो गया है। मैंने अपने संसाधनों को इकट्ठा कर इन सभी लोगों को चिन्हित किया और सुबह शाम दोनों वक्त खाना देना शुरू किया। इसी के तहत कम से कम 5000 टैक्सी और ऑटो रिक्शा ड्राइवरों को 15 दिन का राशन किट दिया गया और दिहाड़ी मजदूरों को 20 दिन तक चल सकने वाले राशन बांटे गए। होम्योपैथी दवा आर्सेनिक एल्बम 30, जिसे कोरोना रोकने में कारगर पाई गई है, उसकी 18,000 शीशियाँ बांटी गई।
सवाल: और क्या क्या किया आपने और आपकी टीम ने?
जवाब: इसके अतिरिक्त हमारी टीम ने वर्धा जिले के आरवी तालुका में 13,000 आदिवासियों को 20 दिन का राशन किट वितरित किया। मुंबई तथा अन्य स्टेशनों से छूटने वाले श्रमिक मजदूर स्पेशल ट्रेनों से जा रहे यात्रियों के लिए करीब 3 हजार फूड पैकेट और पानी के बोतल वितरित किए।
सवाल: आत्मनिर्भर कर्ज महिला सहाय योजना को कैसा रिस्पॉन्स मिला है?
जवाब: आत्मनिर्भर कर्ज सहाय्य योजना को हमने 5000 महिलाओं को सहायता देने के लिए लांच किया है और अभी तक 350 लोगों के लोन की फाइल प्रोसेस हो रही है। हमारे नेता देवेन्द्र फडणवीस जी द्वारा लॉन्च इस योजना के तहत जनकल्याण सहकारी बैंक लिमिटेड, नानाजी देशमुख प्रतिष्ठान और रवींद्र जोशी मेडिकल फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से कोरोना के कारण वित्तीय संकट में फंसे जरूरतमंद महिलाओं को 15 महीने के लिए 10,000 रुपये का लोन रियायती इंटेरेस्ट रेट पर प्रदान किया जा रहा है। इसके तहत, जनकल्याण सहकारी बैंक लिमिटेड 8 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से यह लोन प्रदान करेगा। बैंक के साथ हुए समझौते के अनुसार, नानाजी देशमुख प्रतिष्ठान और रवींद्र जोशी मेडिकल फाउंडेशन ब्याज का 4% भुगतान करेंगे। सो, संबंधित महिलाओं को केवल 4 % ब्याज देना होगा। इसके अलावा कर्ज लेने के बाद पहले तीन महीने लोन की किस्तें भरने में छूट दी गई हैं। चौथे महीने से लोन चुकाना होगा और मासिक किस्त केवल 888 रुपये होगी। इसमें परिवार का कोई भी व्यक्ति ऋण के लिए गारंटर हो सकता है। हमारी कोशिश है कि पीएम के आवाहन के बाद लोगो आत्म निर्भर बनाने के लिए अपने स्तर से हर संभव योगदान दें।
सवाल: महामारी से निपटने के लिए उद्धव सरकार के कामकाज को आप किस तरह देखते हैं?
जवाब: सीधे-सीधे कहा जाए तो तीन पहियों के सहारे चल रही यह सरकार हर तरह से हर मोर्चे पर बुरी तरह फेल हो गई है। इसके पास ना तो कोई प्लानिंग है और ना ही कोई विजन है। कोरोना के कुप्रबंधन से महाराष्ट्र, जिसे हम देश के लिए रीड की हड्डी समझते हैं, अब वह घायल हो चुकी है जिसे उबरने में काफी वक्त लगेगा। उद्धव ठाकरे के पास प्रशासनिक कुशलता की कमी है और इसलिए उनका ब्यूरोक्रेट्स पर बहुत कम पकड़ है। महाराष्ट्र की जनता ने देवेंद्र फडणवीस जी को मुख्यमंत्री बनाने का जनादेश दिया था उसका अपमान करना अब उद्धव ठाकरे को उल्टा पड़ रहा है। आज हर कोई यही कह रहा है कि अगर उद्धव ठाकरे की जगह देवेंद्र फडणवीसजी मुख्यमंत्री होते तो महाराष्ट्र में कोरोना कब का कंट्रोल में आ गया होता।
सवाल: लेकिन यह भी सच है कि लॉकडाउन कोरोना के प्रसार को नहीं रोक पाया..
जवाब: कोविड का डायनामिक्स नया है, इसके बारे में कोई पूर्व जानकारी या अनुभव नहीं है। और लॉकडाउन कोई उपाय नहीं था। लॉकडाउन तो इस महामारी से लड़ने के लिए संसाधन जुटाने मसलन, मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने, पीपीई किट तैयार करने, हॉस्पिटल में बेड मुहैया कराने के लिए खरीदा गया वक्त था। परंतु महाराष्ट्र की दिशाहीन सरकार इस वक्त को भुनाने में बुरी तरह से फेल हो गई। डॉक्टरों को किट देना तो छोड़िए उनका वेतन तक समय पर नहीं मिल पा रहा है। यहाँ तक कि कोरोना मृतकों के लिए खरीदे गए बैग में कितने बड़े पैमाने पर घोटाला किया गया है, जिसके बारे में किसी से जवाब देते नहीं बन रहा है। शवों के बैग खरीदने के नाम पर भी लूट मची है।
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