मुंबई। वाशीनाका के मनीष विजय सोसायटी में दशा माता की पूजा का भव्य आयोजन मारवाड़ी समाज की सुहागन महिलाओं द्वारा किया गया। इस पूजा में समाज की महिलाओं ने देश, दुनियां में सुख-शांति और स्मृद्धि के लिए प्राथनाएं की। इस अवसर पर आयोध्यानगर, अशोकनगर, पटेलनगर, शंकर देवल और भारतनगर में रहने वाली समाज की महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।
वाशीनाका की चंद्रा पारस मल कोठारी के अनुसार दशा माता की पूजा राजस्थान के मारवाड़ी समाज की महिलाओं के प्रमुख पर्वो में से एक है, जो होली के दूसरे दिन से लगातार दस दिनों तक चलता है। इस पूजा में सिर्फ सुहागन महिलाएं ही हिस्सा लेती हैं। बताया जाता है कि सुहागन महिलाओं द्वारा अपने परिवार की प्रतिकूल दशा को सुधारने के लिए दशा भगवती या दशा माता की पूजा करने की मान्यता है।
वहीं लक्ष्मी देवी ने बताया कि इसे नौ देवी और नौ ग्रहों को प्रसन्न करने का व्रत-अनुष्टान भी माना जाता है। दशमी पर व्रत के दिन महिलाएं एक समय का उपवास रखती हैं। इस दौरान महिलाएं मुख्य रूप से नमक का सेवन नहीं करती है। पीपल के वृक्ष की पूजा करने से इस व्रत को पीपलदशा भी कहा जाता है। इस दिन महिलाएं सूत का कच्चा धागा पेड़ के तने में लपेट कर उसकी परिक्रमा भी करती हैं। मान्यताओं के अनुसार दशामाता भाग्य विधाता हैं। इस व्रत के जरीये महिलाएं कामना करती हैं कि उनके घर-परिवार की उत्तर दशा सुधरे और संकट से मुक्ति मिले तथा परिवार सुखी रहे।
वहीं देवी बाई का कहना है कि दशा माता स्वरूपा देवी की आराधना से मनुष्य की दशाएं अच्छा फल देने लगती हैं। इस पूजा में कच्चे सूत के नवधागों से एक गंडा बनाया जाता है। पीपल के पेड़ के पास अथवा देवालय में पान के ऊपर दशामाता का आह्वान किया जाता है। दशामाता की पूजा, हवन करके इस गंडे को गले में धारण किया जाता है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में मारवाड़ी समाज की महिलाएं उपस्थित थी।
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