राकेश दुबे/ मुंबई।
मुंबा देवी की नगरी मुंबई से डर? सपनों की नगरी मुंबई से डर? यह मैं क्या लिख रहा हूं? दिन – रात दौड़ने और कभी न थमने वाली मुंबई से डर? हर जाति, हर धर्म और हर प्रांत के लोगों को अपने आंचल की छांव में हमेशा सुख देने वाली मुंबई से डर? सबको रोजगार, मान, सम्मान, शोहरत और दौलत देने वाली मुंबई से डर? अरे रे रे यह क्या हो गया है मुझे? ये कैसी बात कर रहा हूं मैं? नहीं जनाब, मुझे कुछ नहीं हुआ, मैं कोई ऐसी – वैसी बात नहीं कर रहा। जो कह रहा हूं, पूरी सच्चाई कह रहा हूं। मुंबई से डर एक हकीकत है और यह हकीकत है कोरोना संक्रमण (Coronavirus) के डर की, जिस वायरस से आज पूरी दुनिया डरी हुई है।
मायानगरी मुंबई (Mumbai) अब यहां के लोगों को डराने लगी है। यहां रह रहा प्रत्येक व्यक्ति डरा हुआ है। वह कब, कहां और कैसे कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाएगा, उसे भी नहीं पता? उसे डर है मुंबई में कोरोना के बढ़ते संक्रमण का। क्योंकि कोरोना वायरस मुंबई में ही सबसे ज्यादा बढ़ रहा है। मुंबई का कोई भी ऐसा इलाका नहीं है, जहां कोरोना की पहुंच न हो। फिर वह झुग्गी – झोपड़ियां हों, चॉल हों, वाड़ियां हो, इमारते हों, हाउसिंग कॉम्प्लेक्स हों या फिर गगनचुंबी इमारतें ही क्यों न हों। हर जगह पहुंच चुका है कोरोना।
अब तो अस्पताल, पुलिस स्टेशन, जेल, होटल, सरकारी और गैर सरकारी कार्यालय, कॉर्पोरेट हाउसेस और एयरपोर्ट तक सुरक्षित नहीं हैं कोरोना से। इस महामारी के चलते मुंबई में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है, दिनों दिन इसमें हजारों की संख्या में इजाफा भी हो रहा है। इस बीमारी से मरने वालों की संख्या भी यहां सबसे अधिक है। इसीलिए यहां के लोग डरे हुए हैं। लोगों को लगता है कि मुंबई में रुके रहे तो क्या भरोसा कब कोरोना की चपेट में आ जाएं? न जाने वह कब हमें पकड़ ले? बेहतर है कहीं और चला जाए। इसी कहीं और के चले चलने के भरोसे पर लोग अपने मूल गांव की ओर, अपने वतन की ओर और अपने फार्म हाउस की ओर जाने लगे हैं। और जाने वालों की संख्या कम नहीं, बल्कि बहुत ज्यादा है।
एक तरफ कोरोना का जानलेवा संक्रमण और दूसरी ओर उद्योग धंधों का बंद होना। इससे आम ही नहीं खास आदमी भी पिस कर रह गया है। व्यापार ठप है, किसी भी तरह की व्यावसायिक गतिविधियां शुरू नहीं हो पा रही हैं। यदि कोई एक व्यवसाय शुरू भी हो रहा है तो उससे जुड़ा दूसरा व्यवसाय करने वाले लोग काम पर नहीं आ रहे हैं। मजदूर लाखों की तादाद में मुंबई से पहले ही जा चुके हैं। अब तक तो मजदूर और झुग्गी – झोपड़ियों में रहने वाले लोग मुंबई से पलायन कर रहे थे, मगर अब हालात यह है कि बड़े – बड़े और धनाढ्य लोग पलायन करने लगे हैं। कोरोना अब बड़े लोगों को भी डराने लगा।
लॉकडाउन के चलते धंधा – व्यवसाय में मंदी और अब अनलॉक में उद्योग धंधों पर लगी अघोषित तालाबंदी ने मुंबई से व्यवसायी और उद्योगपतियों तक का मोह भंग कर दिया है। अब इमारतों, हाउसिंग कॉम्प्लेक्सों और गगनचुंबी इमारतों में रहने वाले बड़े लोग भी मुंबई छोड़कर जाने लगे हैं। मुंबई में लॉकडाउन से जहां एक ओर सभी व्यवसाय लगभग चौपट हो गए हैं तो दूसरी ओर अनलॉक के बावजूद कामकाज न होने के कारण लोगों का यहां से बाहर निकल जाने का सिलसिला अब चल पड़ा है।
इसके पीछे का मुख्य कारण कोरोना संक्रमण का बढ़ता कहर और उद्योग धंधों का ठप पड़ना बताया जा रहा है। लॉकडाउन में यहां के मजदूर और गरीब वर्ग के लोग पहले ही पलायन कर चुके और अब अनलॉक में व्यापारी, प्रोफेशनल और बड़े – बड़े उद्योगपति शहर छोड़कर जाने लगे हैं। हवाई जहाज और रेलवे में हुई बुकिंग को देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। अनलॉक के बाद से मुंबई से बाहर जाने वाली फ्लाइट्स और रेल गाड़ियों की बुकिंग आगामी एक महीने तक फुल है। ट्रेनों में अगले 15 दिन तक वेटिंग चल रही है। जाने वालों में ज्यादातर उद्योगपति, व्यवसायी और प्रोफेशनल हैं, जो शहर छोड़कर जा रहे हैं। ये लोग कब तक वापस लौटेंगे, उन्हें भी नहीं पता। बसों से भी ये लोग मुंबई से बाहर जा रहे हैं और अपनी निजी गाड़ियों से भी।
मुंबई में कोरोना संक्रमण से हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं, यही कारण है कि प्रवासी श्रमिकों के बाद अब कारोबारी, नौकरीपेशा, अलग – अलग व्यवसाय – धंधों से जुड़े लोग और उद्योगपति पलायन कर रहे हैं। पिछले दिनों महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने दावा किया था कि रोज कम से कम 15 हजार मजदूर मुंबई वापस लौट रहे हैं। जबकि बाहर से आने वाली ट्रेनें लगभग खाली आ रही हैं। मुंबई की ओर आने वाली ट्रेनों में मात्र 25 प्रतिशत लोग यात्रा कर रहे हैं।
अब जब मुंबई में रोजगार देने वाले लोग ही यहां से पलायन कर रहे हैं, तो ऐसी स्थिति में मजदूर यहां आकर करेंगे क्या? उन्हें काम कहां मिलेगा? जानकार बताते हैं कि मुंबई ही नहीं पूरे देश में कोरोना से सितंबर या अक्तूबर तक ही छुटकारा मिल सकता है। ऐसे में अनिल देशमुख का दावा खोखला जान पड़ता है। काम ठप है, उद्योग – धंधे बंद हैं और कोरोना संक्रमण से मुंबई सबसे अधिक प्रभावित है। सरकार के पास कोरोना पर काबू पाने का कोई असरदार प्लान भी नहीं है। ऐसे में हालात जल्दी सुधरेंगे, इसके आसार नजर नहीं आते।
लोगों को अब अपने गांव खूब अच्छे लगने लगे हैं। ये वही गांव हैं, जहां छुट्टियों में या समय निकाल कर जाने वाले लोगों का पांच – दस दिन टिक पाना मुश्किल होता था, मगर वही लोग पिछले दो – तीन महीनों से वहीं रह रहे हैं। वहां की आबोहवा, वहां का पानी और वहां के खुलापन का महत्व अब लोगों की समझ में आ रहा है, खासकर उत्तर भारत में रहने वाले लोगों को। अब लोगों को लगता है कि मुंबई में रहने की बजाय यदि वे गांव में हैं तो ज्यादा सुरक्षित हैं। कम से कम कोरोना वायरस के संक्रमण से।
मुंबई में रहने और बाहर से यहां आने वाले लोगों को मुंबई अब अच्छी नहीं लग रही। क्योंकि मुंबई की चकाचौंध गायब है। यहां की गति एकदम से रुक गई है। चहल – पहल खो सी गई है। चारों ओर सन्नाटा सा पसरा है। हमेशा खिलखिलाती रहने वाली मुंबई मौन है। इन सबके बावजूद उम्मीद तो यही की जानी चाहिए कि आज भले ही मुंबई मौन है, उसकी हमेशा चलने और न थकने वाली गति रुक सी गई है, चहल – पहल खो गई है, चकाचौंध गायब है, मगर मुंबई में वह सुबह जरूर आएगी, जब फिर से एक बार वह दौड़ने के लिए उठ खड़ी होगी, अपनी पहले वाली उसी गति से दौड़ने के लिए और वह तेज रफ्तार से एक बार फिर चल पड़ेगी। एक नए उत्साह, नई ऊर्जा औऱ नई उमंग के साथ…।
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