अब बेजुबानों की जुबान बनीं एडवोकेट आभा सिंह

“रणसमर फाउंडेशन” ने लॉकडाउन में किया सामाजिक काम

आनंद मिश्र/मुंबई। “जहां रहता है लुटाता है वहीं रोशनी.. किसी चिराग का कोई अपना मकां नहीं होता” यह लाइन जानी मानी मानवाधिकार कार्यकर्ता एडवोकेट आभा सिंह (Abha Singh) पर सटीक बैठती है। जब तक वह डाक विभाग में बतौर तेजतर्रार सीनियर ब्यूरोक्रेट तैनात थीं, उन्होंने अपने कामकाज से सिस्टम में कई आमूलचूल परिवर्तन किए।

बाद में इस ठाट-बाट वाली सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर श्रीमती सिंह समाज सेवा के क्षेत्र में कूद गई और वकालत की डिग्री लेकर कमजोर और बेजुबानों की आवाज बनीं हुई हैं। आज उनकी हर बात को काफी सीरीयसली लिया जाता है और उनका एक एक स्टेटमेंट प्रशासनिक मशीनरी के लिए काफी मायने रखता है।

सुशांत सिंह की रहस्यमई मौत के प्रकरण पर अभी हाल ही में उनका यूट्यूब पोस्ट इतना पॉपुलर हुआ कि उसे 3 दिन से कम समय में 19 लाख से ज्यादा व्यूज मिल चुके हैं और लगातार लोग उनके समर्थन में आगे आ रहे हैं।

समाजसेवी श्रीमती सिंह ने लॉकडाउन के दौरान अपने एनजीओ “रणसमर फाउंडेशन” के द्वारा मजदूरों, जरूरतमंदों को राशन पहुंचाकर उन्हें मौत के मुंह में जाने से बचाया। इससे पहले उन्होनें चीन को कोरोनावायरस का जनक बताते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ में उसे कसूरवार ठहराने का बीड़ा उठाया और संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरल को पत्र भी लिखा। फायरब्रांड ऐक्टिविस्ट श्रीमती सिंह का मानना है कि आज जब चीन रोजाना भारत को बॉर्डर पर अपनी अकड़ दिखा रहा है, तो ऐसे समय में हमारे देश को चीन के खिलाफ और आक्रामक रुख अख्तियार करना चाहिए। उनसे इन्हीं सभी मुद्दों पर हमारे संवाददाता आनंद मिश्र ने बात की। प्रस्तुत है मुख्य अंश:

Abha Singh

सवाल: लॉकडाउन के दिनों में आपके एनजीओ ने क्या-क्या सामाजिक कार्य किए?
जवाब: लॉकडाउन अचानक थोप दिया गया था और उससे चारों तरफ अफरा-तफरी मच गई थी। रोज खाने कमाने वाले लोगों के ऊपर तो जैसे आफत टूट पड़ी थी। बेसहारा और दिहाड़ी मजदूर भुखमरी के कगार पर आ गए थे। तब मैंने और मेरी टीम ने सुनिश्चित किया कि कोई भूखा न मरे। कुछ इसी तरह की आफत का शिकार बना मेरे पड़ोस का एरिया वर्ली कोलीवाडा जो कोरोना हॉटस्पॉट में तब्दील हो गया था और पूरी तरह से सील कर दिया गया। जब मुझे पता चला कि कई लोग यहां भूखे अपने घरों में कैद हैं तो मैंने अपनी “रणसमर फाउंडेशन” की टीम के अलावा मेरी बेटी ईशा सिंह और बेटे आदित्य को साथ में लिया और लोगों के बीच जाकर राशन किट बांटना शुरू किया। जब पता चला कि इस एरिया में बच्चों को बिस्कुट नहीं मिल रहा है तो मैंने व्यक्तिगत स्तर पर पार्ले कंपनी के अधिकारियों से बात की और उस एरिया में 3000 पारले बिस्कुट का पैकेट बँटवाया। इसके अलावा जब पता चला कि चर्नी रोड के पास फुटपाथ पर रहने वाले कई लोग कई दिनों से भूखे पड़े हैं तो मैंने अपनी टीम के साथ खुद जाकर उन्हें एक महीने का राशन दिया। इस दरमियान, जगह जगह बैठे पुलिस वालों को हैंड सैनिटाइजर भी बांटा।

सवाल: और क्या-क्या किया आपने ?
जवाब: इन्हीं लॉकडाउन के दौरान मैंने यह नोटिस किया कि हालांकि पुलिस के कर्मचारियों ने लोगो की सेवा में अपना काफी योगदान दिया परंतु प्रशासनिक स्तर पर कई ऐसे निर्णय लिए गए जिससे अपना लोकतंत्र, एक पुलिस तंत्र के रूप में दिखने लगा था।

सो लॉकडाउन के दौरान मैंने यूट्यूब पर अपना चैनल पीपल्स लायर (People’s Lawyer) शुरू किया जो आज बेजुबानों की आवाज बन चुकी है। इसके जरिए हम पीड़ित या शोषित व्यक्तियों, जिसके मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है, उनके मामलों को कानूनी नजरिए से हाईलाइट कर रहे हैं। मैंने यह भी नोटिस किया कि वर्क फ्रॉम होम कल्चर घर की महिलाओं, चाहे वह कामकाजी महिला हो या हाउसवाइफ हो, उनके समक्ष ज्यादा चुनौतियां लेकर आया है।

वक्त-बेवक्त (Odd hours) में उनको कॉल आते हैं जिससे महिलाओं मानसिक शांति और पर्सनल लाइफ डिस्टर्ब हो रही है। इस मद्देनजर मैंने आगामी 9 जुलाई को मैंने राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्यों को वेबिनार में आमंत्रित किया है ताकि वे इस नए परिप्रेक्ष्य में अपने विचार प्रस्तुत कर सकें और सरकार से कुछ नई गाइडलाइन जारी करने को कहें।

सवाल: पीपल्स लायर के हालिया में पोस्ट में आपने सुशांत सिंह की रहस्यमय मौत को प्रेरित आत्महत्या क्यूँ बताया है ?
जवाब: तमाम हालत इसी ओर इशारा करते हैं कि सुशांत सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या एक प्रेरित या उकसावे की आत्महत्या है और इसलिए मैंने पुलिस से डिमांड की है कि आईपीसी की धारा 306 के तहत इसकी छानबीन की जाए।

इसके अलावा मैंने बॉलीवुड के काले सच जैसे कि यहां किसी आउटसाइडर को काम नहीं मिलता, उसके खिलाफ लॉबिंग चलती है, आदि को गिनाकर बॉलीवुड में पसरी सभी गंदगी को दूर करने की आवाज उठाई है। मैंने यह भी कहा है कि सुशांत सिंह का बलिदान बेकार नहीं जाना चाहिए और कोई दूसरा सुशांत सिंह ना बने, इसके लिए जो जिम्मेदार हैं उन्हें सजा मिलनी चाहिए।

अब वक्त आ गया है कि हजारों लाखों करोड़ की इंडस्ट्री वाले इस फिल्म उद्योग को भी रेगुलेट किया जाए इसके लिए भी एक गाइडलाइन जारी किया जाए। आपको बात दूँ कि इस विडिओ को तीन दिन से कम समय में 19 लाख लोग देख चुके हैं और हजारों लोगों ने अपने कॉमेंट्स के जरिए मेरी मेरा समर्थन किया है।

सवाल: आपने UNO को पिछले महीने एक चिट्ठी लिखी थी कृपया उसके बारे में बताएं।

जवाब: जी हां मैंने यूएन के सेक्रेटरी जनरल को चिट्ठी लिखी थी जिसमें मैंने कई साक्ष्य भी दिए हैं। पहले तो चीन ने इस घातक महामारी को दबाने का प्रयास किया और फिर बाद में (वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन) WHO की तरफ से भी इसके बारे में अलर्ट जारी करने में पूरे 3 महीने की देरी की गई और इसी के चलते एक शहर से फैला हुआ वायरस आज पूरी दुनिया के लिए काल का रूप बन चुका है और अर्थव्ययवस्थाएं तबाह हो रही हैं। मैंने अपने पत्र में चीन के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है।

सवाल: तो क्या कोई जवाब आया ?
जवाब: जी हां। मुझे सेक्रेटरी जनरल के ऑफिस से जवाब आया कि आप यह मुद्दा अपने देश की तरफ से या प्रधानमंत्री ऑफिस की तरफ से उठाइए। इसके बाद मैंने प्रधानमंत्री मोदीजी को दो बार चिट्ठियां लिखी है और उनसे चीन के बारे में सख्त कदम उठाने का आग्रह किया है। आज जब चीन ने बॉर्डर पर तनाव खड़ा किया है, ऐसे में हमें चीन के खिलाफ और भी आक्रामक हो जाना चाहिए।

इसके अलावा मैंने व्यक्तिगत स्तर पर जिनेवा स्थित हुमन राइट काउंसिल के ऑफिस ऑफ कमिश्नर को पत्र लिखकर उनसे चीन पर मुआवजा ठोकने की बात कही है क्योंकि चीन से ही फैले वायरस के चलते ना सिर्फ भारत में बल्कि पूरे विश्व में हाहाकार मचा हुआ है और लोग पलायन कर रहे हैं और अपनी जान गंवा रहे हैं।

सवाल: आपने हाथ से मैला ढोने के सिस्टम के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की है। कृपया उसके बारे में बताएं।
जवाब: मामले की हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही है। मेरी याचिका में मैंने हाथ से मैला या सीवर साफ करने (Manual Scavenging) की कुप्रथा को अस्पृश्यता और अमानवीय प्रथा करार दिया है और इसे संविधान के आर्टिकल 17 का उल्लंघन भी बताया है। मैंने हाथ से मैला ढोने वाले की असामयिक मौत के लिए उन्हें स्थानीय प्रशासन से 10 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग उठाई है।

सीवर में गिरकर जान गँवा चुके मृतकों की पत्नियों ने लॉकडाउन के दौरान मुझे फोन कर कहा कि वे भूखों मर रहे हैं। ऐसे में मेरी बेटी ईशा सिंह ने अपनी जेब से उनकी आर्थिक मदद की।

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