खाने की बर्बादी रोककर एयरपोर्ट ने बचाए 1.2 करोड़

साभार/ मुंबई। मुंबई एयरपोर्ट के लाउंज, कैफे और फूड आउटलेट में रखीं डस्टबिन का निरीक्षण करके करोड़ो रुपयों के साथ खाना भी बर्बाद होने से बचा लिया गया। दरअसल पिछले साल एक फूड ऐंड बेवरेज फर्म के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर (सीओओ) मुंबई एयरपोर्ट में मौजूद थे। उनकी फ्लाइट लेट हो गई थी तो वहां एयरपोर्ट परिसर में स्थित जीवीके लाउंज में गए।

उनकी नजर लाउंज के डस्टबिन में पड़ी तो उन्होंने हाथों में ग्लव्स पहनकर उसे खंगालना शुरू किया। डस्टबिन का निरीक्षण करते हुए उन्हें अक्सर यात्रा करने वाले पैसेंजर की खाने की अनोखी आदत का पता चला, जो अपनी लेट नाइट इंटरनैशनल फ्लाइट में सवार होने से पहले फ्री लाउंज बफे का आनंद लेते हैं। इसके बाद इस फर्म ने कई महीनों तक खाने की बर्बादी को रोकने के लिए लाउंज में खाने सर्व करने के तरीके में बदलाव किया। एक साल बाद बदलाव के नतीजे सामने आए और अकेले डेजर्ट सेक्शन से ही 1.2 करोड़ रुपये तक की बचत हो गई।

इस अप्रैल से फर्म ने अपने क्वॉर्टरली फीचर में ‘डस्टबिन विश्लेषण’ को भी शामिल कर लिया और साल भर में 4 से 5 करोड़ तक की बचत का लक्ष्य बनाया। इस फर्म के देश के 19 शहरों में 280 फूड आउटलेट हैं। ट्रैवल फूड सर्विस (टीएफएस) के सीओओ और बिजनस हेड गौरव दीवान ने बताया, ‘जीवीके लाउंज में मौजूद डस्टबिन में ज्यादातर बचे हुए डेजर्ट आइटम ही थे। उस रात को डिनर बफे में 15 डेजर्ट ऑफर किए गए थे। प्रत्येक यात्री ने दो, तीन और यहां तक कि 4 -4 आइटम प्लेट में सर्व किए और मुश्किल से 1-2 चम्मच खाकर बाकी बचा हुआ फेंक दिया।’

उन्होंने 3 दिन के सर्वे का ऑर्डर दिया। लाउंज के यात्रियों से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि समस्या खाने के टेस्ट में नहीं बल्कि उसकी मात्रा में है। इसके बाद किचन टीम ने अपने मेन्यू को दोबारा इंट्रोड्यूज किया जिसमें छोटे साइज में डेजर्ट ऑफर किए, जैसे- टिनी कप केप्स, मैक्रून और डोनेट्स वगैरह।

गौरव ने बताया, ‘पहले हम लाउंज में 15 डेजर्ट ऑफर करते थे। अब हम 18 ऑफर करते हैं लेकिन कम मात्रा में। हमारे डस्टबिन में खाने की बर्बादी भी कम दिखती है। साथ ही डेजर्ट की लागत भी कम हो गई। हमने एक साल में मुंबई एयरपोर्ट में डेजर्ट कैटिगरी में 5 लाउंज से करीब 1.2 करोड़ रुपये की बचत की।’

वह आगे कहते हैं, ‘अब, यह एक धर्म बन गया है। हमारा लक्ष्य इस तरह करीब 4 से 5 करोड़ रुपये की सालाना बचत करना है।’ गौरव बताते हैं, ‘डस्टबिन खंगालने पर यह भी पता चला था कि 80 फीसदी सैंडविच जो उन्होंने उस दिन बेची थी वह ग्रिल की हुई थीं। इसके उपाय में स्टाफ ने पैकेजिंग हटाकर सैंडविच को ग्रिल किया और इसे प्लेट में सर्व किया। इसक तरह हमने पैकेजिंग को हटा दिया।’ अब टीएफएस द्वारा चलाए जा रहे सभी कॉफी शॉप में सैंडविच और रोल टेंपरेचर कंट्रोल कैबिनेट में सैंस प्लास्टिक में रैप किए जाते हैं।

उन्होंने बताया, ‘सैंडविच को बटरपेपर में लपेटा जाता है। ये बटरपेपर बायो-डिग्रेडेबल होते हैं। पहले सैंडविच पैकेजिंग की कीमत करीब 7 रुपये होती थी। हम एक साल में 10 लाख सैंडविच बेचते हैं। इस तरह हमने 70 लाख रुपये पैकेजिंग में बचाए। बटरपेपर की कीमत 25 पैसा है।’




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