लॉक डाउन का असर: भूखमरी के कगार पर कर्मचारी
मुश्ताक खान/ मुंबई। महामारी और बेरोजगारी के इस दौर में सरकार की दोहरी नीतियो के शिकार एनटीसी के करीब 7500 कर्मचारियों की नौकरी दांव पर लगी है। इतना ही नहीं वेतन का इंतजार कर रहे कर्मचारियों की दशा अब बद से बत्तर हो गई है। ऐसा आरोप एनटीसी ऐसोसिएशियन के अध्यक्ष हरेंद्र कोसिया ने कॉरपोरेशन के सीएमडी निहार रंजन दश पर लगाया है।
गौरतलब है कि COVID-19 की महामारी के साथ-साथ देश में बेरोजगारों का आंकड़ा भी तेजी से बढ़ा है। ताजा वाक्य नेशनल टेक्सटाइल कॉरपोरेशन (NTC) का है यहां भी करीब 7500 मजदूरों की नौकरी खतरे में है। अनुसूचित जाति जनजाति ऐसोसिएशियन के अध्यक्ष हरेंद्र कोसिया ने बताया की सरकारी स्वामित्व वाली एनटीसी ने मई और जून माह से देश भर के अपने कामगारों और कर्मचारियों को वेतन देना बंद कर दिया है। जिसके कारण मजदूर भुखमरी के कगार पर है। इसके अलावा एनटीसी द्वारा अभी तक कोई स्पष्टीकरण या अधिसूचना जारी नहीं किया गया। ऐसे में यहां के कर्मचारी पशोपेश में हैं।
मौजूदा लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के कारण एनटीसी के कर्मचारी अपना विरोध प्रदर्शन नहीं कर सकते और न ही सड़क पर आ सकते हैं। अध्यक्ष हरेंद्र कोसिया ने बताया कि उनके एसोसिएशन की तरफ से पीएमओ, लेबर मिनिस्ट्री और एनटीसी के सीएमडी को इस बाबत 24 जून को पत्र लिखकर तुरंत वेतन रिलीज करने की मांग की गई थी। यहां सीएमडी निहार रंजन दश द्वारा मजदूरों के मौलिक अधिकारों को कुचलने की कोशिश की जा रही है।
इतना ही नही सी एमडी ने लेबर लॉ को तक पर रख कर अपनी मनमानी पर उतर आएं हैं। वहीं 24 जून के पत्र के जवाब में लेबर मिनिस्ट्री ने कहा है कि इसे संबंधित डिपार्टमेंट को फॉरवर्ड कर दिया गया है, कृपया आप उनसे संपर्क करें। लेकिन एनटीसी की तरफ से अभी भी इन्हें किसी भी प्रकार की कोई सैलरी नहीं मिली है।जिसके कारण कर्मचारी भूखों मरने को मजबूर हैं।
सूत्रों के अनुसार एनटीसी को हर साल अपने कर्मचारियों और अधिकारियों के वेतन पर 350 करोड रुपए खर्च करने पड़ते हैं। इसके 300 मैनेजमेंट 7200 कर्मचारियों की हालत काफी खराब हो चली है। यहां तक कि जब मार्च में लॉकडाउन लगा था उस महीने में भी कर्मचारियों के वेतन में 25 से 40 प्रतिशत की भारी कटौती की गई थी।
सरकार के इस कदम को अमानवीय करार देते हुए कोसिया ने कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार की मंशा यही है कि एनटीसी को बंद कर दिया जाए और इनके कामगारों को उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ दिया जाए।
कोसिया ने याद दिलाया कि एनटीसी का 1983 में इसीलिए टेकओवर किया गया था कि इसमें काम कर रहे कर्मचारियों और कामगारों की सामाजिक और मानसिक सुरक्षा का ख्याल रखा जा सके। गौरतलब है कि इस मिल के आम कामगारों को 15000 रुपये तक मासिक वेतन मिलती थी।
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