एस.पी.सक्सेना/ बोकारो। बंटवारा हमेशा दुख:दायी होता है। चाहे वह भाई-भाई, परिवार, समाज या देश का हीं क्यों न हुआ हो। यह जानते हुए भी हम हमेशा बंटवारे के पक्षधर रहते है। सवाल उठता है कि बंटवारे का सही न्यायकर्ता कौन है भगवान या इंसान? इसका व्यंगात्मक व्याख्या कर रहे हैं राजनीतिक विश्लेषक विकास सिंह।
मैने देखा चार लड़के एक बोरी में भरके कुछ ला रहे हैं। वे मेरे पास आये, एक लड़के ने कहा, अंकल ! हम लोग आप हीं के पास जा रहे थे, थोड़ी मदद कर दीजिये…
मैंने कहा – ” बताओ ! क्या करना है? बच्चे बोले – ” अँकल , हमलोग आम तोड़ कर ला रहे हैं.. हमलोगों के बीच इसका बंटवारा कर दीजिये ..”
मैंने कहा – ” लाओ कर देता हूँ।”
मैने लड़को से पूछा ..बंटवारा किस तरह करना है ..भगवान की तरह या इंसान की तरह? लड़को ने कहा…भगवान की तरह! मैने कहा – “ठीक है, भगवान की तरह हीं करता हूँ ..”
मैने दो आम निकाले और राम को दे दिये ..फिर चार निकाले और राम को हीं दे दिये। फिर एक निकाला और मोहन को दे दिया …फिर मैने चार निकाले और राम की तरफ बढ़ाया लेकिन उसका हांथ भरा हुआ था। मैने कहा कुरते का दामन फैलाओ और बोरी का सारा आम उसमे डाल दिया। लल्लू और भोलू को एक आम भी नहीं मिला।
अच्छा बच्चो मै चलता हूँ ..बहुत अच्छा बँटवारा हो गया …और मै चल दिया। बच्चे भागते हुये पीछे आये। अँकल ये आपने क्या कर दिया ..आपने तो सब गड़बड़ कर दिया ..बराबर बाँटना था न!
तुम्हीं लोगो ने कहा था न ..भगवान की तरह बाँटो, अगर बराबर बाँटना था तो कहना चाहिये था न किं इँसान की तरह बाँटो ..! मैने सीधा सा जवाब दे दिया।
नोट :- जिन महाशयों को राजनीतिक विश्लेषक विकास सिंह के लेखो पर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया वयक्त करना हो तो कृपया उनके whatsapp नंबर 094315 06556 पर दें।
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