विहंगम योग संयम, शांति और साधना का संयोग है-विज्ञानदेव

एस.पी.सक्सेना/ बोकारो। प्राणी नींद में सो जाते हैं प्राण कभी नहीं सोता है। प्राण का सीधा संबंध श्वांस वायु से जुड़ा है। विहंगम योग संयम, शांति और साधना का संयोग है। उक्त बातें विहंगम योग संत समाज के संत प्रवर विज्ञान देव जी महाराज ने बीते 21 जनवरी को कथारा आफिसर्स क्लब (Kathara Officers Club) में आयोजित मुर्ति संकल्प यात्रा कार्यक्रम में कही।

यहां संत प्रवर विज्ञान देव जी महाराज ने बेरमो कोयलांचल (Bermo Koylanchal) संत समाज द्वारा आयोजित संकल्प यात्रा को संबोधित करते हुए कहा कि सद्गुरू सदाफल देव की पावन मुर्ति के लिए वे सब संकल्पित हैं। उन्होंने कहा कि विहंगम योग संत समाज के संस्थापक सद्गुरू सदाफल देव जी महाराज की 120 फीट भव्य मुर्ति का निर्माण उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित उमराहां में होना है।

यह मुर्ति स्वर्वेद महामंदिर धाम में स्थापित होगा। संत प्रवर के अनुसार समय किसी की प्रतिक्षा नहीं करता है। सांसों का क्या भरोसा। कब कहां रूक जाएगा। सबसे पहले इश्वर है। वह परमात्मा है जो हमारे श्वासों का श्वांस, प्राणों का प्राण और हमारे आत्मा के भीतर स्थित है। जैसे दुध के भीतर मक्खन। प्राण हीं हमारी आयु, वायु और जीवन का प्रवाह है। 21600 बार चौबीसों घंटे शरीर में श्वांस प्रवाहित होता रहता है।

यहां विहंगम योग संदेश मासिक पत्रिका के संपादक एवं बोकारो स्टील प्लांट (Bokaro Steel Plant) के सेवानिवृत्त महाप्रबंधक सुखनंदन सिंह सदय ने कहा कि कथारा व् बोकारो थर्मल क्षेत्र में बर्ष 1977 से विहंगम योग का प्रचार प्रसार होता रहा है। उन्होंने कहा कि 17 दिसंबर 2004 को उमराहां में स्वर्वेद महामंदिर का शिलान्यास किया गया है। सदय के अनुसार सद्गुरू चरणों में संकल्प, भक्ति और सेवा से तृप्ति मिलती है। इसके चिंतन में हमारी संस्कृति है।

मौके पर मुख्य रूप से विहंगम योग संत समाज के प्रदेश संयोजक डॉ पंकज दुबे, राष्ट्रीय संत किशनलाल शर्मा, बेरमो कोयलांचल संयोजक नीलकंठ रविदास, वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता गिरजा शंकर पाण्डेय, महेंद्र कुमार विश्वकर्मा, प्यारेलाल यादव, राजकुमार लालदास, जानकी प्रसाद यादव, हरिहर प्रसाद गुप्ता, अजीत कुमार जायसवाल सहित सैकड़ों की संख्या में महिला पुरुष श्रद्धालूगण ने कथारा महाप्रबंधक कार्यालय के सामने से जुलूस की शक्ल में विहंगम योग संत समाज व् स्वर्वेद का नारा लगाते कार्यक्रम स्थल पर पहुंचकर संत प्रवर विज्ञान देव जी महाराज के अमृत वचन का श्रवण किया।

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