एस.पी.सक्सेना/ बोकारो। झारखंड (Jharkhand) के राजनीतिक विश्लेषक विकास सिंह कहते हैं कि कौन कहता है समाज में भले लोगों की कमी हो गई है। मेरा तो दिनभर भले लोगों से हीं पाला पड़ता है। सिंह के अनुसार मेरे पास के शहर में एक गर्भवती महिला को अस्पताल में भर्ती नहीं मिली और वह महिला ईलाज के अभाव में मर गई। एक भले आदमी से मैंने चर्चा की तो बोले.. भगवान की मर्जी। उसकी इतनी हीं आयु लिखी थी। मैंने प्रतिवाद किया कि अगर उसे सही ईलाज मिल जाता तो शायद आपके भगवान उसे बचा लेते। वो मुझसे नाराज हो गये। बोले कि आप गलत आदमी हैं। आपसे बात करना पाप है।
एक नौजवान लड़का मोटरसाइकिल से दुर्घटनाग्रस्त हो गया और अस्पताल जाते जाते अत्यधिक रक्तस्राव के कारण उसकी मौत हो गई। मेरे एक भले मित्र ने कहा कि आजकल लड़के लापरवाही से मोटरसाइकिल चलाते हैं। मैंने जवाब दिया कि सड़क पर अवस्थित गटर का ढक्कन खुला था इस वजह से दुर्घटना हुई है। अगर अस्पताल में खून चढ़ाने की व्यवस्था होती तो शायद यह लड़का बच जाता। वो मुझे बकवादी कहते हुये चले गये ।
इस साल हमारे प्रदेश में स्कूलों का रिजल्ट बड़ा निराशाजनक रहा। हमारे एक भले मित्र ने सर हिलाते हुये अफसोस जनक लहजे में कहा कि आजकल के बच्चे पढ़ते नहीं हैं। सिर्फ मोबाईल में व्यस्त रहते हैं। मैंने उन्हें बताया कि स्कूल में शिक्षकों की बहुत कमी है। पारा शिक्षकों के भरोसे स्कूल चल रहा है। उन्हें भी उचित पारिश्रमिक नहीं मिल रही है जिसके लिये अधिकतर समय आन्दोलन करते रहते हैं। सरकार उनकी बातों को गंभीरता से सुनने के बजाय लाठी मारती रहती है तो बच्चों की पढ़ाई कैसे हो। वो मुझसे नाराज हो गये और बच्चों को बिगाड़ने का आरोप लगाकर चले गये।
एक लड़की का सामूहिक बलात्कार हो गया। बलात्कारियों का संबंध सत्ताधारी पार्टी से था। पुलिस द्वारा एफआईआर लिखने के बदले बलात्कारियों से समझौता करने के लिये पीड़िता पर दबाव डाला जा रहा था। मैंने कुछ भले लोगों से चर्चा की कि हमलोगों को लड़की को मदद कर एफआईआर करवानी चाहिए। बस फिर क्या था। सब लोग लड़की को हीं दोषी ठहराते हुये यह कहते हुये समझौता कर लेने की सलाह देने लगे कि बदनामी तो लड़की की ही होगी। मैं अकेले थाने गया।
काफी हँगामे और एसपी से शिकायत करने के बाद एफआईआर दर्ज हुआ। मेरे भले मित्रों ने मुझसे दूरी बना ली। यह कहकर कि मैं बदमाश आदमी हूूँ। सब जगह हंगामा करते रहता हूँ ।
ऐसे हीं भले लोग समाज में भरे पड़े हैं जो व्यवस्था और सरकार की नाकामियों के खिलाफ़ आवाज उठाने के बदले हर घटना और दुर्घटना के प्रति भगवान की मर्जी या भुक्तभोगी को हीं जिम्मेदार बता अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। हमारे जैसे लोग सरकार, प्रशासन और समाज द्वारा ” फालतू में हंगामा करते रहते हैं ” का खिताब पाते हैं।
“सुखिया सब सँसार में खाये और सोये
दुखिया दास कबीर है जागे और रोये “
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