एस.पी.सक्सेना/ बोकारो। लगभग दो दशक बाद पहली बार कुछ ऐसा नजारा दिखा जिसे शब्दो में बयां करना मुश्किल सा जान पड़ता है। मन को प्रफुल्लित करने वाला दृश्य था वह, जब सैकड़ों की संख्या में छोटी चिड़ियाँ घरों के छतो, बिजली तार और आसपास के वृक्ष पर बैठकर संध्या समय में कोलाहल करने लगा। मानो चारो तरफ दिपक जल उठा हो और फिजा में संगीतमय ध्वनि तरंग फैल गया हो।
एक समय वह था जब देश में मोबाइल युग का आरंभ नहीं हुआ था। लोग बाग घरों के बाहर रेडियो (ट्रांजिस्टर) अथवा कुछेक अपने घरों में टेलिविजन देखकर समय बिताया करते थे। तब हमें जहां एक ओर पारिवारिक माहौल का एहसास होता था तो दूसरी ओर हमारी देश की संस्कृति का एहसास होता था। तब के समय में संध्या समय छोटी चिड़ियों की चहचहाती कोलाहल वातावरण में मानो संगीत घोल रहा हो। अब तो ऐसा दृश्य सपना सा लगने लगा है।
मोबाइल काल (जब से देश में मोबाइल का प्रचलन बढ़ा) में लोग सिमटकर स्वयं में रह गए हैं। एक दूसरे से दुरियां बढता चला गया। मोबाइल रेडिएशन के प्रभाव के कारण या तो वैसी छोटी चिड़ियों की कमी अथवा उनका पलायन हो गया। अब उसकी जगह गाड़ियों का होर्न, घरघराहट ने ले लिया। जिसके कारण चिड़ियों का कोलाहल वृक्षों और घरों के छतों से गायब हो गया।
वैश्विक महामारी कोरोना ने जहां लोगों की रफ्तार पर एक तरह से ब्रेक लगा दिया है। मशीनों, वाहनों के रफ्तार में कमी आ गयी है। जिससे एक ओर जहां वायु प्रदूषण में कमी आयी है वही दूसरी ओर ट्राई की सख्ती के कारण कस्वाई क्षेत्रों में मोबाइल रेडिएशन में कमी देखी जा रही है। परिणामस्वरूप इधर कुछ दिनों से वातावरण में एक अजीब सा परिवर्तन देखने को मिल रहा है।
बोकारो जिला के हद में बेरमो प्रखंड के गायत्री कॉलोनी कथारा (Gayatri Colony Kathara) में 30 जुलाई की संध्या समय लगभग दो दशक बाद सैकड़ों की संख्या में पहली बार सैकड़ो की संख्या में छोटी चिड़ियों को देख प्रफुल्लित दिखे। जब छोटी चिड़ियों का झुंड घरों के छतों, बिजली तार और वृक्षों पर कौतूहल करने में व्यस्त था।
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