एस.पी.सक्सेना/देवघर (झारखंड)। श्रद्धा और आस्था की नगरी देवघर के बैद्यनाथ धाम में देवो के देव महादेव के दर्शन व् पूजा अर्चना के लिये श्रावण मास में शिवभक्तों का तांता लगा है। झारखंड राज्य के बैद्यनाथ धाम में बाबा भोलेनाथ की पूजा अर्चना के लिये देश के विभिन्न राज्यो से लाखो की संख्या में श्रद्धालुओ का जत्था बोल बम के नारो से वातावरण को भक्तिमय करते हुये बिहार राज्य के सुल्तानगंज गंगा नदी से कांवर में गंगाजल भरकर 102 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर बाबाधाम में स्थित ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक करते हैं और बाबा भोलेनाथ से सुखमय जीवन बनाने की याचना करते हैं।
10 जुलाई 09 अगस्त तक चलनेवाले श्रावणी मेला महोत्सव का उद्घाटन बीते 9 जुलाई को राज्य के मुख्यमन्त्री रघुवर दास ने विधिवत बाबा भोलेनाथ के ज्योतिर्लिंग पर जलार्पण व् पूजा अर्चना कर किया। श्रावणी मेला के उद्घाटन के अवसर पर मुख्यमंत्री दास के साथ राज्य के पर्यटन, कला संस्कृति, खेल-कूद, युवा कार्य सह राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार मंत्री अमर कुमार बाऊरी, नगर विकास, आवास तथा परिवहन मंत्री सी.पी.सिंह, कृषि पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री रणधीर कुमार सिंह, गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे, दुमका सांसद शिबू सोरेन, देवघर विधायक नारायण दास, जरमुंडी विधायक बादल पत्रलेख, देवघर उपायुक्त राहुल कुमार सिंहा सहित दर्जनों गणमान्य उपस्थित थे।
प्राचीन काल से चली आ रही बाबाधाम के श्रावणी पूजा के संबंध में किवंदती ख़ास महत्व रखता है।पौराणिक कथा के अनुसार लंका राज्य का राजा अहंकारी, हठधर्मी के बावजूद बहुत बड़ा शिवभक्त भी था।रावण के हृदय में भगवान भोले शंकर को लंका में स्थापित करने का विचार आया। जिससे उसे शिव पूजन के लिये अपने राज्य से दूरस्थ न जाना पड़े। मन में यह विचार आते ही राजा रावण भगवान भोलेनाथ को लेने हिमालय पर्वत जा पहुंचा।
दंत कथा के अनुसार रावण की इच्छा की भनक मिलते ही स्वर्ग लोक में खलबली मच गया। तमाम देवी देवता सशंकित होकर रावण के अहं को तोड़ने के लिये देवराज इंद्र के नेतृत्व में भगवान ब्रह्नदेव और विष्णुदेव से रोकने की याचना करने लगे।
कथानुसार भगवान ब्रह्म और विष्णु के आग्रह पर बाबा भोलेनाथ ने देवताओ से कहा कि रावण उनका परम भक्त है इसलिये वे उसके आग्रह को ठुकरायेंगे नही।भोलेनाथ ने देवताओ को आश्वस्त किया कि वे कोई ऐसा उपाय करेंगे कि रावण उन्हें लंका ले जाने में असमर्थ हो जाये।भोलेनाथ के आश्वासन के बाद देवगण वापस लौट गए। इधर रावण हिमालय जाकर बाबा भोलेनाथ को लंका ले जाने की जिद्द करने लगा।
भोलेनाथ भला अपने सबसे बड़े भक्त के आग्रह को कैसे टालते। उन्होंने रावण के आग्रह को स्वीकार करते हुये शर्त रख दी कि उनके ज्योतिर्लिंग को बिना बीच में कहीं रखे उसे लंका ले जाना होगा अन्यथा वह जहाँ भी जमीन पर टिकायेगा ज्योतिर्लिंग वहीं स्थापित हो जायेगा। अपने अहं में मदहोस रावण ने भोलेनाथ के शर्त को सहर्ष स्वीकार कर लिया।
तब भगवान शिव ने हिमालय पर स्थापित 12 ज्योतिर्लिंगों में किसी एक ज्योतिर्लिंग को लेने की बात रावण से कही। भगवान शिवशंकर ने रावण से कहा कि सभी ज्योतिर्लिंग में वे समान रूप से वास करते हैं। अहंकारी रावण हिमालय से ज्योतिर्लिंग लेकर अपने राज्य लंका की तरफ चल दिया। इस बीच शिवलीला के कारण भोलेनाथ की जटा में से देवी गंगा निकलकर रावण के पेट में जाकर उथल पुथल मचाने लगी। जिससे रावण को जोर का लघुशंका लग गया।
रावण से जब रहा नही गया तब चरवाहा के वेश में भगवान विष्णु को जंगल में मवेसी चराते देख रावण ने चरवाहे को ज्योतिर्लिंग देते हुये जमीन पर नही रखने की हिदायत देते हुये लघुशंका करने चला गया।रावण को लघुशंका करने में काफी विलंब होता देख चरवाहा जिसका नाम बैजूनाथ था ने शिवलिंग को जमीन पर रखकर अंतर्ध्यान हो गया।
इधर रावण जब लघुशंका से लौटा तब चरवाहा का कोई अतापता नही पाकर शिवलिंग को जमीन पर रखा पाया। इससे गुस्साए रावण ने पहले तो उक्त ज्योतिर्लिंग को उठाने की काफी चेष्टा की परंतु जब वह इसमें असफल रहा तब गुस्से में उसने शिवलिंग पर जोर की लात मार दी।जिससे शिवलिंग जमीन में लगभग तीन फिट निचे धंस कर हल्का टेढ़ा हो गया।
प्रचलित कथा के अनुसार कालांतर में उक्त चरवाहा बालक प्रतिदिन गाय चराने के क्रम में भक्ति भाव से शिवलिंग के आसपास के जंगल की सफाई कर देता था। जिससे उक्त स्थल का नाम बैद्यनाथ धाम पड़ा।कई वर्षो बाद वासुकीनाथ की नजर उक्त ज्योतिर्लिंग पर पड़ा तब उसने यहां एक मंदिर स्थापित किया।तब से यहां श्रद्धालुगण प्रतिवर्ष श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को शिव ज्योतिर्लिंग पर गंगा नदी से जल लाकर जलाभिषेक करते है और भगवान शिव की पूजा अर्चना कर मन्नत मांगते हैं।
जानकारी के अनुसार अंग्रेजी शासनकाल के समय दरभंगा के राजा कामेश्वर प्रसाद शर्मा ने इस जगह की महत्ता को पहचाना और यहां आसपास कई मंदिरो की स्थापना की। जिससे इस जगह को देवघर भी कहा जाने लगा। दंत कथा के अनुसार रावण ने जिस जगह पर लघुशंका किया था वहां एक बड़ा तालाब बन गया जिसे शिवगंगा कहा जाता है।
शिवगंगा में स्नान करना लोग पूण्य मानते हैं। यहां वासुकी नामक युवक ने सर्वप्रथम श्रावण मास के सभी सोमवार को ज्योतिर्लिंग पर गंगाजल से जलाभिषेक के परंपरा की शुरुआत की थी इसलिये यहां से लगभग 35 किलोमीटर की दुरी पर वासुकीनाथ का मंदिर है। यहां भी श्रद्धालु बैद्यनाथधाम में जलार्पण करने के बाद जल अर्पण करते हैं।
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