दोनों सलामत रहे बढ़ता रहेगा दहेज-विकास सिंह

एस.पी.सक्सेना/ बोकारो। लाशों का सौदा और उसके सौदागर सब जगह भरे पड़े हैं। ऐसे में मानव मूल्यों की आज कोई अहमियत शेष नहीं रह जाता है। इस परिस्थति में सत्ता के शिखर पर बैठे सत्तासीनों को झंकझोरना जरुरी हो गया है। आज झारखंड के प्रखर राजनीतिक विश्लेषक विकास सिंह का विषय इसी पर आधारित है। प्रस्तुत है विकास सिंह का व्यंग्यात्मक लेख:-

जबसे दिल्ली में जानवरों की सरकार बनी है, मैं कोशिश करते आ रहा हूँ कि इनकी भाषा सीख लूँ। इधर कुछ-कुछ समझने लगा हूँ। पिछले हफ्ते गर्दभ जी मिल गये। बड़ी अकड़ में दुलत्ती झाड़ते राग ‘मियां की तोड़ी’ गाते जा रहे थे। मैं पूछ बैठा कि इतने शान से कहाँ जा रहे हैं श्रीमन्? गर्दभ जी ने मुझे हिकारत की नजर से देखते हुये कहा कि तुम्हें पता नहीं हमारे प्रधानमंत्री हम हीं से प्रेरणा लेते हैं, इसलिये प्रधानमंत्री निवास जा रहा हूँ। बहुत दिनों से गया नहीं इसलिये इधर प्रधानमंत्री कोई महान काम नहीं कर पा रहे हैं। मैंने इन्हें बधाई और शुभकामना देकर रास्ता बदल दिया।

आगे बढा़ तो थोड़ी थकान का अनुभव होने लगा। सामने एक बरगद का पेड़ दिख गया। सोंचा थोड़ा सुस्ता लूँ। बरगद की छाँव में गमछा बिछाया और लेट गया। सोंचा कि एक झपकी ले लूँ लेकिन पेड़ के उपर से कुछ वार्तालाप की आवाज आने लगी। बड़े मनोरंजक विषय पर दो गिद्ध आपस में चर्चा कर रहे थे। शायद शादी-ब्याह का मामला था। वर(लड़के) का गिद्ध पिता कह रहा था कि दहेज में उसे 500 मनुष्यों की लाशें चाहिए। कन्या का पिता गिद्धराज खानदानी था।

उसे अपने परदादा की सुनाई कहानी याद आ गई कि कैसे मुहम्मद शाह रँगीला के समय नादिर शाह का दिल्ली पर हमला हुआ था। तब दिल्ली लाशों से पट गई थी। जिधर देखो लाशें हीं लाशें। बहुत बड़ा महोत्सव हुआ था। ठीक वैसा हीं समय आ गया है। यह कहकर गिद्धराज वर के पिता को आश्वस्त कर रहा था कि वह चिंता ना करे और ईश्वर मोदी-शाह को लँबी उम्र दे। ये दोनों अगर दिल्ली की तख्त पर विराजमान रहे तो 500 क्या 50000 लाशें भी वह दहेज में दे सकता है। बातों में दम था। वर का पिता खुशी-खुशी शादी के लिये राज़ी हो गया। फिर दोनों गिद्द मोदी-शाह की लँबी उम्र और सेहत के लिये शैम्पेन की बोतल खोलकर एक-दूसरे को चियर्स करने लगे। और शादी पक्की हो गयी।

 372 total views,  1 views today

You May Also Like