हे वत्स नेता नाम के प्राणी सबसे घातक होते हैं- विकास सिंह

एस.पी.सक्सेना/ बोकारो। अपनी बेवाक राय के कारण क्षेत्र के समाजसेवक एवं राजनीतिक विश्लेषक विकास सिंह ने हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों को वेवाकी से प्रस्तुत किया है। सिंह इसबार देशवासियों को नेता रूपी घातक प्राणी से दूर रहने की सलाह दे रहे हैं।

प्रस्तुत है राजनीतिक विश्लेषक सिंह की जुबानी मॉर्निंग वाक से लौटते समय भगवान बुद्ध के आश्रम में कुछ कोलाहल दिखा। उत्सुकता वश अँदर चला गया। देखा कि आश्रम के सामने चाय की दुकान चलानेवाला रामलाल भगवान बुद्ध से बाहर जाने की अनुमति और आशीर्वाद माँग रहा है।
भगवान बुद्ध “वत्स ! क्या तकलीफ़ है। हमलोगों को छोड़कर क्यों जाना चाहते हो?

रामलाल “प्रभु ! चाय का धंधा मंदा चल रहा है। दूध -चीनी -चायपत्ती सबका दाम बढ़ गया है लेकिन कोई दाम बढाने को तैयार नहीं। भगवान बुद्ध कोई बात नहीं मैं सबको बोल दूँगा कि लागत मूल्य के हिसाब से दाम देना ही होगा नहीं तो रामलाल घाटे का बिजनेस क्यों करेगा? प्रभु हम भक्तों को बोले थे। भक्तगण अब चाय छोड़कर गौमूत्र पान कर रहे हैं ।

प्रातःकाल गौशालाओं के सामने लँबी लाईन लगती है गौमूत्र पान के लिये। चाय अब कोई नहीं पी रहा है प्रभु दुकान बंद हो गयी है। ” तो फिर आगे की योजना ? ” भगवान बुद्ध उवाच।” प्रभु आजकल जनसेवा का धंधा बड़ा चोखा चल रहा है। सोंच रहा हूँ मैं अब जनसेवा के धंधे में हाथ आजमाऊँ।” प्रभु उवाच ” विचार तो बड़े उत्तम हैं रामलाल लेकिन तू इस धँधे में ठीक से निबाह कर सकेगा या नहीं इस आशंका से चिंतित हूँ। “

” देव ! आप तो हम जैसों के लिये आशादीप हो। ऐसा बचन बोलकर हमें हतोत्साहित ना करें प्लीज।”
” हे वत्स ! तुम जिन लोगों के बीच जा रहे हो उन्हें ‘ नेता ‘ नाम के प्राणी से एलर्जी है। क्योंकि नेता नामक प्राणी पृथ्वी पर सबसे घातक माने जाते हैं। इसलिये वे तेरे प्रति कठोर होंगे। तेरी हँसी उड़ायेंगे।” बुद्ध ने जनता के मानस की झाँकी दिखाते हुये कहा। “प्रभो ! यदि वे लोग मेरी हँसी हीं उड़ायेंगे तब तो मैं उन्हें भला हीं कहूँगा, क्योंकि वे कम से कम मेरा घेराव तो नहीं करेंगे।”
” मान लो वे लोग तेरा घेराव हीं कर दें तब? “
“तब भी गुरूदेव वे लोग अच्छे हीं कहे जायेंगे। वे मेरे साथ मारपीट तो नहीं करेंगे।”
“तेरे साथ मारपीट करें तब?”
“तब भी तात ! मैं उनलोगों को साधु हीं गिनूँगा वे मेरा अँग भँग तो नहीं करेंगे।”
“अरे मूर्ख ! यदि तेरा अँग भँग कर दें तब? क्योंकि आक्रोश जनता का विशिष्ट गुण है।”
“फिर भी उन्हें भला हीं कहूँगा क्योंकि मेरा सिर तो नहीं फोड़ेंगे ! “
“एक बात गाँठ बाँध ले वत्स। जनता बड़ी अच्छी निशानेबाज होती है। ये निशानेबाज पत्थर से तेरा सिर अवश्य फोड़े़गे।”
“फिर भी उन्हें अच्छा हीं कहूँगा। कम से कम उन्होंनें मुझे मष्तिष्क विहीन तो नहीं किया। मेरा दिमाग तो नहीं ले गये।”

“क्रोधित लोगों का क्या ठिकाना वत्स। मान लो वे तुम्हारा दिमाग निकाल कर ले गये तब? “तब तो देव उन परम कृपालु लोगों का चरणामृत पान करूँगा। क्यों? भगवान बुद्ध ने बड़े आश्चर्य से पूछा। क्योंकि इन जनता को बिना ‘ दिमाग ‘ के हीं नेता की आवश्यकता है। पहले के नेताओं को इसीलिए हटाया गया था कि उन लोगों के पास ‘दिमाग’ था।

रामलाल का उत्तर सुनकर भगवान बुद्ध बड़े प्रसन्न हुये। आँखों में हर्षाश्रु आ गये। बुद्ध ने कहा” जाओ बेटा,अवश्य जाओ। तुम निस्चय हीं मेरे नाम को रौशन करोगे।” कालाँतर में रामलाल ‘ प्रधान ‘ गति को प्राप्त हुआ और अपने हास्यपूर्ण वचनों से सबका मनोरंजन करने लगा। जैसे रामलाल के दिन बहुरै वैसे हीं सब बिना दिमाग वाले नेताओं के दिन बहुरै!

 430 total views,  1 views today

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *