एस.पी.सक्सेना/ बोकारो। अपनी बेवाक राय से सबको निरूत्तर करनेवाले क्षेत्र के समाजसेवक एवं राजनीतिक विश्लेषक विकास सिंह ने हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों बाढ़ से त्रस्त लोगों के दर्द पीड़ा को सामने रखकर सरकारी स्तर पर किए जा रहे उपायों के बीच हिंदू आस्था के प्रतीक भगवान श्रीराम से गुहार लगाई है।
वकौल विकास सिंह हे रामजी ! रामराम !! खुश तो बहुते होंगे आप कि अरबों की लागत सें आपका भब्य रहाईस बन रहा है। मुँह में पानी भरके ताक भी रहे होंगे कि कब मोदीजी जोगीजी आयें और घी के लडुवन के भोग लगाएं। बड़े कठकरेज बाप हैं आप !
हम आप हीं के सँतान हैं। बिहार, बँगाल, उड़ीसा और असम के बाढ़ से डूबने से बचने के लिये अपनी झोपड़ियों के उपर आश्रय लिए लोग !! आप इधर काहें ताकियेगा। आप तो रेशमी कुरते पर पसमीना के शाल ओढ़े मोटे मोटे सेठों पर अपनी ईनायत बरसाईयेगा। हमलोग गरीब मजदूर हैं। हाड़तोड़ मेहनत करते हैं। आपको खोजने किसी मँदिर में नहीं जाते। अपने हृदय में बसाए हुए हैं।
जब मन करता है थोड़ा सा गर्दन झुकाकर आपका दर्शन कर लेते हैं ..लेकिन आप तो उन लोगों के वश में हैं जो हृदय में रावण को बिठाकर घर से कोसों दूर आपको ईंट और कँक्रीट के घर में कैद करना चाह रहे हैं। क्या आप कोई हाड़मांस के शरीर हैं जो आपको सोनेचांदी का महल चाहिए? आप तो सत्कर्म, सँस्कार और सद्बुद्धि के प्रतीक हैं।
आपको तो अपने व्यवहार में बसाने की कोशिश होनी चाहिए थी,लेकिन ये समझायेगा कौन? आप त्रेता में भी मारीच के रामराम कहने पर पीछे पीछे दौड़ गये थे। आज भी रामनामी ओढ़े मारीचों के चक्कर में फँस गये हैं। उस समय समुझे थे सीता हरण के बाद। इस बार भी समुझियेगा शील, सँस्कार और मर्यादा के अपहरण के बाद।
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