छठमय हुईं रांची की गलियां-चौबारा

रांची। नहाय-खाय के साथ लोक आस्‍था का महापर्व छठ रविवार से शुरू हो गया। सोमवार को व्रती भगवान भाष्‍कर को ध्‍यान कर खरना करेंगी। शाम में प्रसाद का भोग लगाकर वे खुद ग्रहण करेंगी और परिवार के साथ ही पास-पड़ोस को भी प्रसाद बांटा जाएगा। शुद्धता के इस पावन पर्व को लेकर एक तरफ राजधानी में जहां हर तरफ रौनक का बसेरा है। वहीं दूसरी तरफ हर गलियां-चौबारा सजावट से निखर उठी हैं। पूरा माहौल छठमय हो गया है।

झारखंड के मुख्‍यमंत्री रघुवर दास ने भी छठ पर्व के दूसरे दिन खरना पर छठव्रतियों को शुभकामनाएं दी हैं। सीएम ने अपने ट्वीट के जरिये ईश्‍वर से छठव्रतियों की मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना की।

छठ सूर्योपासना का अनुपम लोकपर्व है। पूर्वी भारत के बहुत बड़े भाग में इसे धूमधाम से मनाया जाता है। वस्तुत: सूर्य की सृष्टि और पालन शक्ति के कारण सूर्योपासना सभ्यता के विकास के साथ ही विभिन्न स्थानों व संस्कृति में अलग-अलग रूप में प्रारंभ हो गई। हां भारत में सूर्योपासना को विशेष महत्व मिला, यहां इसे सर्जक, पालक के साथ ही आरोग्य और अक्षय ऊर्जा का स्रोत माना गया।

ऋगवेद में पहली बार देवता के रूप में सूर्य की वंदना की गई। इसमें सैकड़ों ऋचाओं में सूर्य की महिमा और वंदना की गई है। इसके बाद अन्य वेदों के साथ ही उपनिषद आदि वैदिक ग्रंथों में इसकी चर्चा प्रमुखता से हुई। निरुक्त के रचियता यास्क ने भी द्युस्थानीय देवताओं में सूर्य को पहले स्थान पर रखा है। उत्तर वैदिक काल के अंतिम कालखंड में सूर्य के मानवीय रूप की कल्पना होने लगी। इसने कालांतर में सूर्य की मूर्ति पूजा का रूप ले लिया। पौराणिक काल आते-आते सूर्य पूजा और प्रचलित हो गई। कई स्थानों पर सूर्य देव के मंदिर भी बने।

पौराणिक काल से सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाता है। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई गई। ऋषि-मुनियों ने अपने अनुसंधान के क्रम में किसी खास दिन इसका प्रभाव विशेष पाया। संभवत: यही छठ पर्व (सूर्य षष्ठी) के उद्भव की बेला रही हो।

सूर्य की आरोग्य क्षमता के विषय में प्रसिद्ध आख्यान भी हैं। पुराणों के अनुसार भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ हो गया, तो इसके लिए विशेष सूर्योपासना की गई, जिसके लिए विशेष रूप से शाक्य द्वीप से ब्राह्मणों को बुलाया गया। सूर्योपासना से शाम्ब स्वस्थ हुए। सूर्य और इसकी उपासना की विशेष चर्चा विष्णु पुराण, भगवत पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण आदि में विस्तार से किया गया है।

घाट पर इन बातों का रखें ख्याल

  • व्रतियों को हर संभव मदद पहुंचाने का प्रयास करें
  • घाट पर स्वच्छता बनाये रखने का प्रयास करें, गंदगी न फैलाएं
  • घाट में प्रवेश से पहले पानी की गहराई का थाह ले लें।
  • घाट पर आतिशबाजी न करें, राकेट का इस्तेमाल तो हर्गिज न करें
  • घाट की पवित्रता बनाये रखने के लिए जुता-चप्पल दूर रखें
  • मार्ग पर वाहन खड़ा न करें, पड़ाव के लिए निश्चित स्थान न हो तो खुद ही घाट से दूर वाहन खड़ा करें
  • प्रशासन या सेवा शिविर के लोगों के निर्देश का पालन करें
  • अर्घ्‍य देने के बाद स्वेच्छा से दूसरे श्रद्धालुओं के लिए स्थान छोड़ दें
  • किसी अफवाह पर ध्यान न दें, न ही अफवाह फैलाएं
  • बच्चों का खास ख्याल रखें, घाट पर उन्हें किसी के निगरानी में ही छोडें
  • घाट व मार्ग पर की गई लाइटिंग से छेड़छाड़ न करें
  • यदि घाट के आस-पास रहते हों तो गंदा पानी व कूड़ा इधर-उधर न फेकें

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