कौन समझेगा थानेदार का दर्द

एस.पी.सक्सेना/ बोकारो। ड्यूटी में सदैव तत्पर रहने वाले बोकारो जिला के हद में एक थाना में सेवारत थानेदार के दर्द को आज कोई भी सुननेवाला नही है। इस थानेदारी के कारण उसका परिवार उससे दूर होता जा रहा है। ऐसे में उक्त थानेदार के दर्द को सुनेगा कौन? समझेगा कौन और दूर करेगा कौन?

अपने कार्यालय कक्ष में आंसू बहाते उक्त थानेदार ने बताया कि आज उसका परिवार उससे दूर होता जा रहा है। छुट्टी मांगने पर वरीय अधिकारी उसकी मजबूरी को नजरअंदाज करते हुये उसके सर्विस में स्टेग करने की बात करते हैं। थानेदार के अनुसार उसकी धर्मपत्नी के शरीर में खून की कमी है।

शरीर में हीमोग्लोबिन नही बन रहा है। छुट्टी नही मिलने के कारण वह अपनी पत्नी का किसी अच्छा अस्पताल में इलाज नही करा पा रहा है। जबकि उसके कार्यस्थल से लगभग 250 किमी की दूरी पर उसका परिवार रह रहा है। ऐसे में वह करे तो क्या करे? उसके दर्द को सुनने व समझने वाला कोई नही है। ऐसे में उसे अपने कार्यालय में बैठकर आसूं बहाने के सिवा कोई विकल्प शेष नही रह गया है।

थानेदार से बातचीत के दौरान वहां मौजूद दो स्थानीय धन बांकुरों ने थानेदार की मदद के लिये हाथ बढ़ाया लेकिन उक्त थानेदार ने मदद लेने से मन कर दिया। कहीं उन धन बांकुरों की मंशा उक्त थानेदार की जमीर खरीदने की तो नही थी? अथवा स्वतः मानवीय संवेदना। यह समझ से परे है। लेकिन इतना तो सत्य है कि वरीय अधिकारियो की उपेक्षा के कारण आज उसका परिवार टूटने के कगार पर है।

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