मुश्ताक खान /हथुआ (बिहार)। शिक्षक दिवस के अवसर पर हथुआ महाराज बहादुर मृगेंद्र प्रताप साही ने हथुआ पैलेस के इम्पेरियल पब्लिक स्कूल में छात्रों से रूबरू हुए। इस मौके पर उन्होंने छात्रों को प्रोत्साहित करते हुए शिक्षक और छात्रों के बीच के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के अवसर पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन 16 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किये गये थे।
महाराज बहादुर मृगेंद्र प्रताप साही ने हथुआ पैलेस के इम्पेरियल पब्लिक स्कूल के छात्रों से रूबरू होते हुए कहा की भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने 40 वर्षों तक शिक्षक के रूप में काम किया। इस दौरान उन्होंने हमेशा अपने विद्यार्थियों को समझने की कोशिश की और हमेशा उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
उन्होंने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जहां गुरुओं को माता-पिता का दर्जा दिया जाता है। यह हमारे देश की प्राचीन परंपरा है और आज भी हमारे अंदर बरकरार है। इस परंपरा के साथ हर साल 5 सितंबर को ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। महाराज ने कहा कि भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडू में हुआ था।
डॉ. राधाकृष्णन पढ़ने-लिखने के शौकीन थे। उन्होंने एक शिक्षक के तौर पर ना केवल अपना विषय पढ़ाते थे बल्कि उसके अलावा उन्हें किताबें पढ़ना भी काफी पसंद था। वो हमेशा कुछ-न-कुछ पढ़ते रहते थे और लोगों को भी पढ़ने के लिए उत्साहित करते थे। उनका मानना था कि किताबें पढ़ने से हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची खुशी मिलती है। उन्होंने अपने जीवन काल में 10 से ज्यादा किताबें लिखीं। किताबों के बारे में उनका कहना था, ”किताबें वह माध्यम है जिनके द्वारा हम दो संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं। फिलॉसफी उनका पसंदीदा विषय था।
उन्होंने अपना एम. ए भी फिलॉसफी में ही किया था। उन्होंने इंडियन फिलॉसफी नाम से एक किताब भी लिखी थी, जबकि उनकी पहली किताब का नाम द फिलॉसफी ऑफ रवींद्रनाथ टैगोर था। डॉ. राधाकृष्णन को धर्म और अध्यात्म से गहरा लगाव था। वो इस पर काफी अध्ययन भी करते थे और इस विषय पर काफी कुछ लिखा भी है। रिलीजन एंड सोसाइटी, द प्रिंसिपल उपनिषद्स, द हिन्दू व्यू ऑफ लाइफ जैसी कई किताबें उन्होंने धर्म और अध्यात्म को ही केंद्र में रखकर लिखा है।
उनका मानना था कि धर्म के बिना आदमी उस घोड़े की तरह है जिसमें पकड़ने के लिए लगाम न हो। उनका जन्म हिंदू परिवार में हुआ था। धर्म में उनका गहरा विश्वास था और इसके साथ ही वे वैज्ञानिक सोच रखते थे। अभिव्यक्ति की आजादी का समर्थन करने वाले डॉ. राधाकृष्णन का कहना था, ”कोई भी आजादी तब तक सच्ची नहीं होती, जब तक उसे विचार की आजादी प्राप्त न हो। किसी भी धार्मिक विश्वास या राजनीतिक सिद्धांत को सत्य की खोज में बाधा नहीं देनी चाहिए।
उपलब्धियों से भरा पड़ा था जीवन
डॉ. राधाकृष्णन न केवल भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे बल्कि वो देश के पहले उपराष्ट्रपति भी थे। राधाकृष्णन को देश की सर्वोच्च उपाधि भारतरत्न से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें साहित्य में नोबेल पुरस्कार के लिए 16 बार और नोबेल शांति पुरस्कार के लिए 11 बार नामित किया गया था। वो आंध्र विश्वविद्यालय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर भी रह चुके थे।
राजनीतिक व्यवित न होते हुए भी वो संविधान सभा के सदस्य बने थे। इन तमाम उपलब्धियों वाले इस व्यक्तित्व ने 17 अप्रैल 1975 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। भारतरत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी सीख आज भी हमारे साथ है। वह कहते थे, ”मृत्यु कभी भी एक अंत या बाधा नहीं है बल्कि एक नए कदम की शुरुआत है।
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