मिलेगा जेम्स वॉट पुरस्कार
प्रहरी संवाददाता/मुजफ्फरपुर (बिहार)। ऊंची सोच और चाह कुछ अलग करने की। तभी तो, मेडिकल में चयन के बाद भी बिहार के दरभंगा की बेटी मधु माधवी (Madhu Madhavi) ने पकड़ी इंजीनियरिंग की राह। वर्ष 2020 के ‘जेम्स वॉट’ पुरस्कार (‘James Watt’ Award) के लिए मधु को चुना गया है। उन्हें यह अवार्ड इस साल अक्टूबर में लंदन में दिया जाएगा। देश-दुनिया में आज उनकी चर्चा हो रही है।
ब्रिटेन के व्यापार, ऊर्जा एवं पर्यावरण नीति विभाग में इसी साल से सीनियर पॉलिसी ऑफिसर के रूप में कार्यरत मधु ने कैंब्रिज ओपन यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर डॉक्टरल ट्रेनिंग के अंतर्गत ‘वैश्विक भौगोलिक संदर्भ में ऊर्जा संचालन’ विषय पर शोध किया। उनका शोध पत्र ‘कोल इन द ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी, ए क्लाइमेट ऑफ चेंज एंड अनसर्टेंटी’ लंदन के एनर्जी नामक प्रसिद्ध रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुआ। इस शोध पत्र के लिए आइसीई पब्लिशिंग हाउस लंदन ने उनका चुनाव जेम्स वॉट पुरस्कार के लिए किया है।
आइसीई पब्लिशिंग हाउस प्रतिवर्ष किसी एक उत्कृष्ट रिसर्चर को पुरस्कृत करता है। 38 वर्षीय मधु दरभंगा (Darbhanga) जिले के हद में हायाघाट प्रखंड के विशनपुर गांव निवासी व पूर्व विधान पार्षद प्रो. विनोद कुमार चौधरी तथा प्रो. सरोज चौधरी की बड़ी पुत्री हैं। वह शुरू से ही मेधावी थीं। 12वीं तक की शिक्षा जिले में ही हुई। इसके बाद उनका चयन मेडिकल में हो गया। कर्नाटक में दाखिला मिल रहा था। लेकिन, वह इंजीनियर बनना चाहती थीं। इसके कारण नोएडा के जेपी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रवेश ले लिया।
वर्ष 2006 में वहां से बॉयोटेक्नोलॉजी में बीटेक कर पहली नौकरी एचसीएल में रिसर्च एनालिस्ट के रूप में एक वर्ष तक कीं। इसके बाद नई दिल्ली स्थित द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट में 2012 तक काम किया। जून 2012 में शादी के बाद लंदन चली गईं। वहां आगे की पढ़ाई शुरू की। वर्ष 2015 में किंग्स कॉलेज, लंदन से पब्लिक पॉलिसी में एमए किया। मधु का बचपन राजनीतिक परिवेश में बीता। दादा स्व. उमाकांत चौधरी समता पार्टी के संस्थापक सदस्य थे। पिता प्रो. विनोद कुमार चौधरी ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष से सेवानिवृत्त हुए।
माता प्रो. सरोज चौधरी भी स्थानीय एमके कॉलेज में समाजशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष हैं। मधु की छोटी बहन पुष्पम प्रिया चौधरी इन दिनों बिहार की राजनीति में उतरने की तैयारी कर रही हैं।पुष्पम कुछ माह पूर्व बिहार की राजनीति में उस वक्त चर्चा में आईं, जब उन्होंने पीपुल्स पार्टी के बैनर तले अपने आप को बिहार के मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में पेश किया। पुष्पम वर्तमान में पूरे बिहार में घूम-घूमकर यहां की गरीबी, अशिक्षा सहित अन्य कई बिंदुओं को देख रही हैं। पिता और दादा ने जिन सिद्धांतों पर चलकर राजनीति की पुष्पम उससे अलग रास्ते पर चलती दिख रही हैं।
वर्ष 2019 में ब्रिटेन की नागरिकता पाने वाली मधु के पिता कहते हैं कि उन्हें अपनी बेटी पर नाज है। शिक्षक के साथ राजनीति में रहने के कारण उन्हें ज्यादा वक्त नहीं मिलता था। बच्चों की परवरिश व पढ़ाई-लिखाई की जिम्मेवारी मां के कंधों पर थी। मधु की मां ने बताया कि बेटी की इस सफलता से वे गदगद हैं। मधु को पढ़ाई के अलावा खाना बनाने और बैडमिंटन खेलने का शौक है। जब कभी घर आती है तो किचेन में अपना समय व्यतीत करती है। घर के अन्य कामों में भी सहयोग करती है।
रोज पब्लिक स्कूल दरभंगा की निदेशक डॉ. अनुपमा झा कहती हैं कि मधु प्रारंभिक शिक्षा के दिनों में भी सदा अपनी कक्षा में अगली बेंच पर बैठना पसंद करती थी। जगह नहीं मिलने पर कई बार वर्ग शिक्षकों से शिकायत भी करती थी। शिक्षकों के प्रश्नों का त्वरित उत्तर देना उसकी प्रवृति में शामिल था। गलत शिकायत वह सुनना नहीं चाहती थी। मैंने उसे कई बार प्रोत्साहित किया। वह क्लास मॉनीटर भी रही। वह साहसिक निर्णय लेना जानती थी। उसकी सफलता से स्कूल का भी नाम रोशन हुआ है। हमें उस पर गर्व है।
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष डॉ. नीलमणी मुखर्जी कहते हैं कि मेधा जहां भी रहती है, वहां अपनी चमक बिखेरती है। मधु मेधावी छात्राओं में एक थी। वह क्षेत्र, प्रदेश और देश की सीमा लांघकर विदेश में अपनी चमक बिखेर रही है। हमें अभिमान होता है जब अपनी माटी की कोई बेटी प्रतिभा की बदौलत कहीं सम्मानित होती है। वह क्षेत्र की अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणा का काम करेगी।
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