विश्व पटल के सुनहरे पन्नों पर दर्ज है जीरादेई का इतिहास

हथुआ राज की स्थापना में नरवनी वंशजों की भूमिका

धनंजय प्रताप सिंह/ सिवान (बिहार)। देश में देवी देवताओं के अलावा महापुरुषों के लिए भी बिहार राज्य के सिवान जिला को जाना और पहचाना जाता है। यहां जीरादेई (Jeeradei) प्रखंड क्षेत्र के भरथुई गढ़, तीतिरा आदि स्थान विश्व पटल के सुनहरे पन्नों पर अंकित है। भगवान बुद्ध से लेकर देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) भी यहीं के थे। जीरादेई के भरथुई गढ़ में मंगलवार को क्षेत्रीय इतिहास विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि हथुआ राज (Hathwa Raj) के महाराज बहादुर मृगेन्द्र प्रताप साही (Maharaj Bahadur Mrigendra Pratap Sahi) ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। यहां उनका भव्य स्वागत किया गया। महाराज बहादुर ने देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद के पैतृक आवास में स्थित प्रतिमा पर माल्यार्पण किये, तत्पश्चात भरथुई गढ़ में आचार्य मिथिलेश पांडेय ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ उन्हें गढ़ देवी की पूजा अर्चना कराई। उसके बाद महाराजा ने क्षेत्रीय इतिहास विषय पर संगोष्ठी की अध्यक्षता की।

महाराज बहादुर ने कहा कि भरथुई गढ़ का इतिहास क्षेत्रीय नहीं है बल्कि राष्ट्रस्तरीय है। उन्होंने कहा कि इस गढ़ से हमारे राज घराने का आत्मीय लगाव है। इसी गढ़ के वीर योद्धा बाबू धज्जु सिंह ने हथुआ राज की स्थापना की तथा प्रथम राजा क्षत्रधारी शाही के अभिभावक के रूप में शासन में भागीदारी किये। महाराजा बहादुर ने बताया कि धज्जु बाबू 1764 में अवध के नबाब से लड़ाई कर हुस्से पुर राज की रक्षा किये तथा 1791 में हथुआ राज की स्थापना महत्वपूर्ण योगदान किये। उन्होंने कहा कि मैं भरथुई गढ़ की मिट्टी को नमन कर धन्य हो गया, क्योंकि हथुआ राज की महारानी इस गढ़ पर अनेक वर्षों रही तथा राजा महेश शाही का विवाह इसी गढ़ से संपन्न हुआ था।

महाराज बहादुर ने बताया कि देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद से तथा उनके पूर्वज से पारिवारिक लगाव था। उन्होंने बताया कि देशरत्न के पूर्वज चौधुर लाल हमारे राज के पटवारी थे। राजेन्द्र बाबू छात्र जीवन से लेकर राष्ट्रपति तक हमारे परिवार से जुड़े रहे। उन्होंने कहा तीतिरा का संबंध भगवान बुद्ध के जीवन काल से है तथा यहां प्राचीन नदी हिरण्यवती के जिसका उल्लेख बौद्ध साहित्य में है।

उन्होंने बताया कि हमारे पूर्वज मल्ल जाति से आते थे जो भगवान बुद्ध के परम अनुयायी थे। नरवनी वंश के वीर धज्जु बाबू के वंशज संजय सिंह ने कहा कि हमारे पूर्वज नरवर गढ़ से चार सौ वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में आये। उन्होंने बताया कि सबसे पहले हमारे पूर्वज वंशीधर राय चैनपुर के भूमिहारों के रियासत को आजाद कराये जो तोमर वंशियो के अधीन हो गया था। इस उपकार के बदले चैनपुर के जमींदार ने दो परगना आंदर तथा पचलख वंशीधर राय जी को दे दिया तब ग्राम असांव में उन्होंने गढ़ बनाया।

श्री सिंह ने बताया कि वंशीधर राय को नौ पुत्र थे। जो क्रमश: भरथुई गढ़, जमापुर, भरथुआ, चितउर, छितनपुर, लोहगांजर, नरेंद्र पुर, सरहरवा, सेलरापुर, विष्णु पूरा, मांझा, सुरवल, मुइया में बसे। उन्होंने बताया कि धज्जु बाबू के छोटे भाई वीरा राय के पोता दिर्ग राय को अंग्रेजों ने कालापानी की सजा दी थी। क्योंकि वे अपने जागीर का कर (टैक्स) नहीं देते थे तथा मैरवा में दर्जनों अंग्रेज फौज को मौत का घाट उतार दिए थे। उन्होंने बताया कि इसी वंश के वीर शहीद बाबू उमाकान्त सिंह 1942 के आंदोलन में पटना सचिवालय पर झंडा फहराने के क्रम में शहीद हो गये।

प्रो गिरीश सिंह ने बताया कि बाबू धज्जु सिंह के वंशज जीरादेई क्षेत्र के बारह गांवों में बसे हैं। जो स्वतंत्रता सेनानी, 1942 में शहादत, न्याययिक, प्रशासनिक, राजनीतिक, शिक्षा व सामाजिक कार्यों में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाये है। शोधार्थी कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि ऐतिहासिक, राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक, खेल एवं पुरातात्विक दृष्ठिकोण से जीरादेई क्षेत्र का क्षेत्रीय इतिहास देश के राष्ट्रीय इतिहास में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाता है।

सिंह ने कहा कि तीतिरा स्तूप की विगत वर्ष परीक्षण उत्खनन ने इस क्षेत्र के प्राचीनता की वैज्ञानिक पुष्ठि कर दी है तथा दर्जनों इतिहासकारों, पुरातत्वेत्ताओं ने इस क्षेत्र के इतिहास को राष्ट्रीय पन्ने में जगह दिया है। उन्होंने महाराज बहादुर का स्वागत करते हुए भगवान बुद्ध की प्रतिमा सप्रेम भेंट की। इस मौके पर रामदेव सिंह विचार मंच के अध्यक्ष अभिषेक कुमार सिंह, हथुआ राज के मैनेजर एस एन शाही, धनंजय सिंह, शम्भू प्रसाद, राजेश सिंह, राष्ट्र सृजन अभियान के राष्ट्रीय सचिव ललितेश्वर राय, अवध किशोर राय, अंकुर कुमार सिंह, गोलू सिंह, बीडीसी मृत्युंजय सिंह, राजनारायण सिंह, गिरीश सिंह, वृज किशोर सिंह, प्रमोद राय आदि उपस्थित थे।


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