अधिकार के लिए ‘मृतका’ काट रही है चक्कर

संतोष कुमार झा/ मुजफ्फरपुर (बिहार)। मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) जिला के हद में मुशहरी प्रखंड के चतुरी पुनास की दिव्यांग गीता महज चुनाव आयोग की मतदाता सूची में ‘जिंदा’ है। जीवन में उसकी भूमिका सरकार चुनने तक सीमित है। सरकारी योजनाओं का लाभ उठाते समय सिस्टम उसे मृत बता देता है। पिछले चार साल से चीख-चीखकर खुद के जिंदा होने का सबूत दे रही है, लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मृत घोषित कर दी गई है। इस कारण वह नौकरी में आरक्षण के लाभ, प्रधानमंत्री आवास योजना में प्राथमिकता, राशन कार्ड में अपने हिस्से के अनाज के अलावा विकलांगता पेंशन से भी महरूम कर दी गई है।

दिव्यांग गीता को खुद के मृत होने का पता वर्ष 2016 में तब चला, जब सामाजिक सुरक्षा कोषांग ने उसे मृत बताकर उसका पेंशन स्वीकार नहीं किया। स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त गीता को दबंगों ने अपने वार्ड में आंगनबाड़ी सेविका के पद से डरा-धमका कर बाहर कर दिया था। दबंगों के आगे झुकते हुए उसे अपना आवेदन ही वापस लेना पड़ा। इसके बाद प्रधानमंत्री आवास योजना में भी उसे विकलांगता के बावजूद प्राथमिकता नहीं मिली।

क्योंकि भले ही वह अपने घर परिवार के बीच साबूत जिंदा थी, लेकिन दबंगों ने उसके हिस्से का लाभ झपटने के लिए उसे कागजी तौर पर मृत घोषित कर दिया। पति मजदूरी करता है। दो बच्चे का परिवार चलाना मुश्किल था, लिहाजा राशन कार्ड बनवाया। चूंकि गीता सरकारी रिकार्ड में मृत है, इसलिए राशन कार्ड में उसके पति अरविंद कुमार व दो नाबालिग बच्चों के नाम तो हैं, लेकिन उसका नाम गायब हो गया।

गीता सरकारी रिकार्ड में कहीं जिंदा है, तो केवल दो जगह। एक तो चुनाव आयोग की मतदाता सूची में, जहां उसका नाम क्रम संख्या 803 पर दर्ज है। दूसरा कागजात उसके पास आधार कार्ड है। मतदाता सूची में नाम होने की वजह से एकमात्र अधिकार मतदान का उपयोग हर बार करती है। बाकी अधिकार मानो सिस्टम की भेंट चढ़ गया हैं।

दिव्यांग गीता ने शादी के बाद ग्रेजुएशन किया। पति अरविंद ने मजदूरी कर इसलिए पढ़ाया कि एक तो वह पिछड़ा वर्ग से आता है, दूसरे दिव्यांगता के आरक्षण का भी लाभ मिल जाएगा। पेट काटकर की गई उसकी पढ़ाई समाज के ठेकेदारों के आगे बेकार हो गई। ठेकेदारों ने ऐसी साजिश रची कि वह आंगनबाड़ी सेविका, प्रधानमंत्री आवास, पर्याप्त राशन व विकलांगता पेंशन पाने की दौड़ से ही बाहर हो गई। वर्ष 2016 में उसे मृत बताकर उसका पेंशन स्वीकृत नहीं किया गया।

आश्चर्य उसे मृत घोषित करने वाले दस्तावेज की नकल तक नहीं दी गई। केवल पेंशन योजना में उसकी अस्वीकृति कारण मृत बताए गए प्रमाण की छायाप्रति थमा दी गई। इसके बाद से वह पंचायत के मुखिया, प्रखंड विकास पदाधिकारी से लेकर कलेक्ट्रेट के चक्कर लगा रही है। चीख-चीखकर बता रही है कि वह जिंदा है, लेकिन सिस्टम मानने को तैयार नहीं।

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