हथुआ के शाही परिवार ने मनाई विजयदशमी

जनता से रू-ब-रू हुए महाराज और महारानी

धनंजय प्रताप सिंह/ हथुआ (बिहार)। प्राचीन परंपराओं को बरकरार रखते हुए महाराज बहादूर मृगेंद्र प्रताप साही (Maharaj Bahadur Mrigendra Pratap Sahi) के नेतृत्व में हथुआ पैलेस (Hathwa palace) से भव्य दशहरा चक्कर निकाली गई। हजारों के हजुम में दशहरा चक्कर पहले गोपाल मंदिर (Gopal Temple) पहुंचा जहां विधिवत रूप से पूजा अर्चना की गई। इसके बाद हथुआ (Hathwa) का भ्रमण करने के बाद महाराज ने अपने लाव लशकर के साथ थावे स्थित दुर्गा मंदिर में माता के दर्शन किये।

गौरतलब है कि करीब 300 साल अपनी पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए हथुआ के राज परिवार (Hathwa Raj Family) आज भी दशहरा के पावन अवसर पर अपने राजसी अंदाज में दशहरा चक्कर का आयोजन किया। राजतंत्र के दौर में लगने वाले मवेशी मेला में राजस्थान, पंजाब, गुजरात के अलावा विदेशों से भी व्यापारी आते थे जिसमें काबुल  के उत्तम नस्ल का घोड़ा, आसाम से हाथी और राजस्थान के दुधारू पशु इस मेला के आकर्षण का केंद्र थे।

इस मेले में दूरदराज दराज से आए व्यापारियों के कुशल क्षेम तथा उनके सुविधाओं को देखने के लिए विजय दशमी के दिन हथुआ राज (Hathwa Raj) के तत्कालीन महाराजा अपने लाव लश्कर के साथ हथुआ बाजार (Hathwa Bazar) होते हुए अपने राज्य क्षेत्र के आम जनता को दर्शन देते थे। क्षेत्र की तमाम जनता सड़क के किनारे कतारबद्ध तरीके से खड़े होकर अपने महाराजा का दर्शन करते थे। कालांतर में यह परंपरा धीरे- धीरे बंद हो गई।

लेकिन पिछले एक दशक से हथुआ राज के वर्तमान महाराज बहादुर मृगेंद्र प्रताप साही (Maharaj Bahadur Mrigendra Pratap Sahi) एवं महारानी पूनम साही (Maharani Punam Sahi) ने इस परंपरा को जीवंत करते हुए दशहरा चक्कर का आयोजन पुनः चालू किया है। इस मौके पर हथुआ राज के कारिंदों के अलावा और स्थानीय लोग भी चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

बता दें कि स्वर्गीय महाराज बहादूर गोपेश्वर प्रताप साही (Late Maharaj Bahadur Gopeshwar Pratap Sahi) ने अपने जीवन काल में अंतिम दशहरा चक्कर 1953 में किया था। उनके बाद वर्ष 2009 से राज बहादूर मृगेंद्र प्रताप साही व महारानी पूनम साहिबा पिता के कार्यो को आगे बढ़ा रहें हैं। दशहरा चक्कर में दर्जनों हाथी, घोड़े और ऊंटों को सजाया जाता है। इस अवसर पर स्वच्छ भारत अभियान को भी ध्यान में रखा गया था।

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