गणतंत्र की जननी वैशाली के क्रांति वीर बसावन सिंह एक परिचय
गंगोत्री प्रसाद सिंह/ वैशाली (बिहार)। बिहार राज्य की राजधानी पटना (Patna) से महज 20 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है वैशाली जिला मुख्यालय हाजीपुर। यहां से मात्र सात किमी दूर जमालपुर गांव की धरती पर 23 मार्च 1909 को एक साधारण किसान परिवार में जन्मे स्वतंत्रता आन्दोलन के वीर सपूत बसावन सिंह को कौन नहीं जानता।
जमालपुर निवासी अदम्य साहसी वीर स्वतंत्रता सेनानी बसावन बाबू के पिता का नाम चुल्हाई सिंह माता दौलत देवी। बसावन बाबू अपने माता पिता के एक मात्र संतान थे। मात्र आठ वर्ष की उम्र में ही उनके पिता का देहांत हो गया। पहली पत्नी से एक पुत्र महेश प्रसाद सिंह साइंस कॉलेज मुजफ्फरपुर के प्रोफेसर अरुण कुमार जो 1977 में लालगंज विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। दूसरी पत्नी कमला सिन्हा पूर्व विदेश राज्य मंत्री रह चुकी हैं। उनकी तीन पुत्रीयां है।
गणतंत्र की जननी वैशाली जो भगवान महावीर की जन्म भूमि और भगवान बुद्ध की कर्मभूमि के साथ ही दानवीर बाबू लंगट सिंह, महान क्रांतिकारी ओर साम्यवादी नेता बाबू किशोरी प्रसन्न सिंह, अमर शहीद बैकुंठ शुक्ल, शेरे बिहार बाबू योगेंद शुक्ल और क्रांति वीर बाबू बसावन सिंह की जन्म भूमि के रूप में जानी जाती है। वचपन में ही पिता की मृत्यु के बाद बसावन बाबू का लालन पालन उनकी माँ ने किया। इनको कोई दूसरा भाई या बहन नही था। बसावन बाबू वचपन से ही कुशाग्र बुद्धि थे। इन्हें प्राईमरी स्कूल से ही वजीफा मिलता था।
सन 1920 में महात्मा गांधी के हाजीपुर आगमन पर उनको देखने बसावन बाबू पैदल घर से हजीपुर गये और इसके बाद इनके मन में देश की आजादी की बात बैठ गई। हजीपुर उन दिनों देश के क्रांतिकारी आंदोलन का गढ़ था। तब क्रांतिकारी योगेंद शुक्ल, किशोरी बाबू के सम्पर्क में आ गए। 1926 में मैट्रिक पास करने के बाद इन्होंने मुजफ्फरपुर के भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज (अब लँगट सिंह कॉलेज) में इंटरमीडिएट में दाखिला लिया लेकिन कॉलेज से इनको क्रांतिकारियों से सम्पर्क की वजह से निकाल दिया गया।
1926 में ही बसावन बाबू 18 वर्ष की उम्र में योगेंद शुक्ल के हिंदुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिक आर्मी में शामिल हो गये जहाँ इनका सम्पर्क चन्द्रशेखर आजाद और भगत सिंह से हुआ। बसावन बाबू ने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग छेड़ दिया। काकोरी कांड, लाहौर षड्यंत्र केश, तिरहुत षड्यंत्र केस में इनका नाम आया।
वर्ष 1929 में बसावन बाबू लाहौर षड्यंत्र केश में गिरफ्तार हुए। जिसमें भगत सिंह सहित तीन साथियों को फांसी की सजा हुई और बसावन बाबू साक्ष्य के अभाव में रिहा हुए लेकिन काकोरी कांड और तिरहुत षड्यंत्र केस में इन्हें गिरफ्तार कर 1 जून 1930 को पटना के बांकीपुर जेल में रखा गया जहाँ से बसावन बाबू तीसरे दिन ही जेल की दीवार फांदकर फरार हो गए। बाद में पुनः गिरफ्तार हुए और इन्हें गया केंद्रीय जेल में रखा गया जहाँ से 1936 में रिहा हुए।
जेल से निकलने के बाद बसावन बाबू कांग्रेस पार्टी से जुड़े जहाँ उनका सम्पर्क रामबृक्ष बेनीपुरी, जयप्रकाश नारायण और नेताजी शुभाष चन्द्र बोष से हुआ। 1936 में रामबृक्ष बेनीपुरी के साथ मिलकर कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी का गठन किया जिसके अध्य्क्ष बसावन बाबू हुए। शुभाष चन्द्र बोष के साथ बसावन बाबू मजदूर आंदोलन से जुड़े। रेलवे कर्मचारी यूनियन के ये उपाध्यक्ष थे। इन्होंने जपला सीमेंट फैक्ट्री और डालमियानगर मिल मजदूरों को संगठित कर हिन्द मजदूर सभा का अखिल भारतीय संगठन खरा किया। आजादी के बाद 1948 में इन्होंने प्रजा सोसलिस्ट पार्टी की स्थापना की। बसावन बाबू आजादी के आंदोलन में अपना अमूल्य जीवन का 15 बर्ष अंग्रेजो की जेल में बिताया।
प्रथम चुनाव 1952 से 1962 तक बसावन बाबू डेहरी से विधानसभा के सदस्य और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहें। 1967 में बिहार में बनी मिली जुली सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। 1975 में आपात काल के विरोध में भूमिगत होकर आंदोलन चलाते रहे और इनपर दबाव देने के लिये कांग्रेसी सरकार ने इनकी धर्मपत्नी कमला सिंहा को मीसा के अंदर नजरबंद कर दिया। 1977 के विधानसभा चुनाव में बसावन बाबू डेहरी से बिधायक चुने गए।
आजादी के आंदोलन के दौरान बसावन बाबू की भेंट कमला सिन्हा से कलकत्ता में हुई। श्याम प्रसाद मुखर्जी की भतीजी कमला सिन्हा भी बसावन बाबू के साथ मजदूर आंदोलन में जुड़ गई और उनके साथ डेहरी आश्रम में रहने लगी। जहां बसावन बाबू ने कमल से शादी की जिससे तीन लड़की हुई। बसावन बाबू की 7 अप्रैल 1989 को मृत्यु होने के बाद कमला सिन्हा ने मजदूर आंदोलन को जिंदा रखा। कमला सिन्हा 2 बार राज्य सभा की संसद बनी। गुजराल मंत्रीमंडल में ये विदेश राज्य मंत्री रही। वैशाली जिले से कमला सिंहा का काफी लगाव रहा। अपने सांसद मद से हजीपुर में बसावन सिंह इनडोर स्टेडियम के अलावे बसौली स्थित भुइयाँ स्थान का जीर्णोद्धार सहित बहुत से स्कूल और सामुदायिक भवन का निर्माण कार्य करवाया। आज बसावन बाबू ओर कमला सिन्हा दोनों इस दुनिया में नही हैं लेकिन उनका कर्म सदा अमर रहेगा।
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