नाना पुराण निगमागम सम्मत है रामचरित मानस-जगद्गुरु गुप्तेश्वर महाराज

नौ दिवसीय श्रीहरिहरात्मक महायज्ञ विधिवत शुरु, हजारों श्रद्धालुओं ने की परिक्रमा

प्रहरी संवाददाता/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला प्रांगण में आयोजित नौ दिवसीय श्रीहरिहरात्मक महायज्ञ 26 फरवरी को विधि विधान के साथ आरंभ हो गया।

अनंत विभूषित जगद्गुरु रामानुजाचार्य गोविंदाचार्य स्वामी गुप्तेश्वर जी महाराज के मार्गदर्शन में आचार्य चंद्र प्रकाश त्रिपाठी, हरिहरनाथ मंदिर के मुख्य अर्चक आचार्य सुशील चंद्र शास्त्री, आचार्य पवन शास्त्री एवं वाराणसी से आए वैदिक विद्वानों ने विधिवत पंचांग पूजन, मंडप प्रवेश, मंडप पूजन, अरणि मंथन का मांगलिक कार्य संपन्न कराया। इसके साथ ही हजारों की संख्या में स्त्री पुरुषों ने यज्ञ मंडप की परिक्रमा की।

इस मौके पर यज्ञ स्थल पर बने मुख्य सांस्कृतिक मंच पर बाबा हरिहरनाथ मंदिर न्यास के अध्यक्ष जगद्गुरु रामानुजाचार्य गोविंदाचार्य स्वामी गुप्तेश्वर जी महाराज ने यज्ञ के प्रथम दिन श्रीराम कथा का विषय प्रवेश कराते हुए रामचरित मानस की महिमा का सांगोपांग वर्णन किया। उन्होंने कहा कि रामचरित मानस नाना पुराण निगमागम सम्मत है। इसमें श्रीराम की दिव्य कथा है जो साक्षात ब्रह्म की कथा है। इस कथा के पाठ और श्रवण से सभी प्रकार की विपदाओं व संकटों का शमन हो जाता है।

गुप्तेश्वर जी महाराज ने कहा कि सर्वप्रथम जीव के कल्याण के लिए भगवान शिव ने मानस की रचना की। कहा कि मानस ब्रह्म विद्या का विज्ञान है। गोस्वामी तुलसी दास ने भगवान शिव की कृपा से उसी परमानंद के विज्ञान को राम चरित मानस के रुप में उल्लेखित (लिपिबद्ध) किया है। उन्होंने प्रवचन के दौरान प्रसंगवश महाभारत का जिक्र करते हुए कहा कि साधक अर्जुन की शंका के निवारण के लिए भगवान श्रीकृष्ण के मुखारविंद से गीता जी उद्भूत हुई।

उन्होंने कहा कि जब युद्ध के मैदान में अपने सामने खड़े अपने ही कुटुंबों को अर्जुन ने देखा तो मोह में पड़ गए। उसी मोह के निवारण के लिए श्रीकृष्ण के मुख से गीता का उपदेश हुआ। यहां अर्जुन प्रारंभिक स्तर के साधक के रुप में हैं। उन्होंने कहा कि सिद्ध पुरुषों को भी कभी कभी भ्रम हो जाता है। सो अर्जुन को भी भ्रम हो गया था। श्रृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी ,नारद जी, काकभुशुंडी भी भ्रम में पड़े थे।

सती की शंका ऊंचाई की थी। शती की शंका थी कि निर्गुण निराकार परमब्रह्म सगुण कैसे हो सकता है? भगवान शिव ने सती की शंका समाधान के लिए मानस की रचना की। तुलसी जी ने उनकी कृपा से मानस का प्रकाशन किया। राम चरित मानस का प्रकाशन अवधपुरी में हुई।

उन्होंने कहा कि जब तक तमोगुण का प्रभाव है तब तक सच्चिदानंद की अनुभूति नहीं होगी और जबतक अनुभूति नहीं होगी तब तक बाहरी ज्ञान नहीं होगा। इस अवसर पर संध्याकालीन बेला में गायिका ऋचा चौबे ने अपनी कर्णप्रिय कंठ स्वर से भक्ति गीतों को प्रस्तुत कर उपस्थित श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया।

 

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