सुधीर किशन/ दिल्ली। सांसद सुशील कुमार सिंह ने सदन में शून्य काल के दौरान सरकार से आग्रह किया है कि देश एवं विदेश के विभिन्न भागों में बोले जाने वाली मगही भाषा को संविधान के 8वीं अनुसूची में जोड़ने की कृपा की जाये। चूंकि मौजूदा समय में इस भाषा के लगभग 18 मिलियन वक्ता हैं, और वक्ताओं की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। इसे बिहार के 8 जिलों और झारखंड के 3 जिलों में भी बोला जाता है।
बिहार औरंगाबाद के सांसद सुशील कुमार सिंह ने शून्य काल के दौरान सदन में बताया की मगही भाषा को मगधी भाषा के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने बताया कि मगधी भाषा ही मगही के नाम से प्रचलित हुआ। उन्होंने सरकार से अपील की है कि मगधी भाषा भारत और नेपाल के कई हिस्सों में बोला जाता है। इस लिहाज से संविधान के 8वीं अनुसूची में जोड़ने की कृपा की जाये।
सांसद सिंह ने इस भाषा के इतिहास को दोहराते हुए कहा कि वर्ष 1961 के जनगणना में मगधी को हिंदी के अंतर्गत कानूनी रूप से अंगीकार किया गया था। ग्रामरियन कच्छयानों ने मगधी भाषा के महत्व को लिखा है कि यह भाषा सभी भाषाओं का बुनियाद है। ब्राह्मणों और अन्य लोग कल्प के शुरुआत में इस भाषा को बोलते थे और सर्वोच्च एवं पूज्य भगवान बुद्ध भी मगही भाषा बोलते थे।
मगही नाम प्रत्यक्ष रूप से विश्व मगही का जन्मसिद्ध है। वर्तमान मगही भाषा का विकास कब हुआ, अज्ञात है, परंतु भाषा विशेषज्ञों ने मगही भाषा का विकास 8 से 11 वीं सेंचुरी मानते हैं। शिंशुंगवंश ने मगध वंश को स्थापित किया। मगध वंश का शासन 684 BC से 320 BC तक का भारत में उल्लेख है, जिसका वर्ण रामायण और महाभारत में भी है।
मगध के गुप्त वंश और मौर्य वंश के द्वारा भारत के प्राचीन इतिहास को स्थापित करने के लिए विभिन्न भाषाओं का विकास किया। मगध साम्राज्य के अंतर्गत ही अधिकांश लोगों द्वारा मगही भाषा का प्रयोग किया जाता है। सांसद सिंह ने शून्य काल के अंत में खुद ही मगही भाषा में सरकार से विनती ही है।
उन्होंने कहा रउआ से विनती करब कि मगध के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विश्व में मगही भाषा के प्रचलन को देखते हुए मगही भाषा को संविधान के 8वीं अनुसूची में जोड़े के कृपा करल जाय ई उपकार खातिर हम पूरा मगहिया समाज राऊर आजीवन आभारी रहम।
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