प्रहरी संवाददाता/पेटरवार (बोकारो)। आज की माताएं लक्ष्मण जैसा आज्ञाकारी पुत्र की अभिलाषा तो अवश्य रखती हैं, पर सुमित्रा जैसी मां बनने से परहेज रखतीं हैं। वे सीता जैसी बहु चाहती,पर कौशल्या नही बनना चाहती। ऐसे में उनकी अभिलाषा कैसे पूरी होगी।
उक्त बातें वाराणसी से पधारी मानस विदुषी रुचि शुक्ला ने कही। वे पेटरवार प्रखंड के हद में चलकरी स्थित श्रीहनुमान मंदिर में आयोजित श्रीरामचरित मानस नवाह परायण महायज्ञ के सप्तम दिवस बीते 16 मई की रात संगीतमय प्रवचन के दौरान कही।
प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि माता सुमित्रा में श्रीराम-सीता वन-गमन के समय पुत्र लक्ष्मण से कहा था कि बेटा राम-सीता को तुम वन में इतनी सेवा करना कि उन्हें चौदह वर्षों तक अवध की याद न आने पाए।
यह भी कही कि तुम्हारी ऐसी सेवा से हमे भी पुत्रवती होने का सौभाग्य सार्थक हो जाएगा। सुमित्रा माता ने ही लक्ष्मण को श्रीराम के परम भक्त बनने के लिए पांच वस्तुओं के त्याग का मंत्र दिया था। वहीं से लक्ष्मण दृढ़ प्रतिज्ञ हुए। वास्तव में मानस का यह प्रसंग मानव समाज के लिए प्रेरणा श्रोत है।
कथा वाचन के दौरान व्यास अनिल पाठक ‘वाचस्पति’ ने अपने सहयोगियों के साथ संगीतमय मैथिली भजन प्रस्तुत किए। वाराणसी के मानस मर्मज्ञ राकेश पांडेय, अयोध्या के महंत (यज्ञ के संस्थापक) रामकिशोर शरण ने भी रामायण के कई प्रसंगों की व्याख्या की। इस दौरान दर्शक दीर्घा में महिला, पुरुष श्रद्धालु ध्यानपूर्वक कथा श्रवण कर रहे थे। समिति के तमाम पदाधिकारी भी इस दौरान सक्रिय दिखे।
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