एस.पी.सक्सेना/रांची (झारखंड)। स्थानीय नियोजन नीति एवं भाषा विवाद को लेकर आदिवासी-मूलवासी संगठनों का जनाक्रोश महारैली रांची में आयोजित की गयी है। यह निर्णय 11 फरवरी को आदिवासी-मूलवासी संगठनों की संयुक्त मोर्चा कोर कमेटी की बैठक में लिया गया।
बैठक की अध्यक्षता करते हुए शिक्षाविद डॉ करमा उरांव ने कहा कि वर्तमान राज्य की हेमंत सोरेन सरकार अब तक स्थानीय एवं नियोजन नीति बनाने की दिशा में एक कदम भी नही उठा पाई है। यह राज्य की संपूर्ण आदिवासी एवं मूलवासी सामाजिकता का दुर्भाग्य है।
नियोजन नीति के आलोक में जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा को सशक्तिकरण एवं उपयोगी बनाने के बजाय बिहार राज्य की मूल भाषा मैथिली, भोजपुरी, अंगिका एवं मगही को शामिल कर अनावश्यक विवाद एवं वर्ग सघर्ष की स्थिति पैदा की गयी है।
जब कि इन भाषाओं की उपयोगिता राजकीय काम काज में बिहार राज्य में भी नही है। उक्त नियमावली से इन भाषाओं को सरकार अविलंब विलोपित करे।
उन्होंने कहा कि राज्य (State) में शिक्षित बेरोजगार रोजी रोटी एवं नियोजन के लिए दर दर ठोकर खा रहे हैं। अत्यंत दु:खद बात है कि विभिन्न राजकीय संवर्गीय पदों की ढाई लाख पद रिक्त है। सरकार की टाल मटोल नीति के कारण नियुक्ति प्रक्रिया बाधित है।
इसे दुरुस्त किया जाय। इसलिए इन तमाम मुद़दों को लेकर 12 मार्च को रांची में विराट आदिवासी मूलवासी आक्रोश रैली आयोजित होगा। जिसमें राज्य के कोने कोने से सभी जिलों से राजधानी में हजारों हजार की संख्या में लोग जुटेंगे।
कोर कमेटी की बैठक में उक्त आक्रोश रैली के निमित्त विभिन्न समितियां यथा वित्तीय प्रबंधन समिति, प्रचार-प्रसार एवं बैठकों के आयोजन समिति आदि का गठन किया गया।
बैठक में अंतु तिर्की, शिवा कच्छप, संजय तिर्की, सुनील सिंह, आजम अहमद, प्रवीण देवघरिया, बलकू उरांव, नौशाद खान, नन्हे कच्छप, शिव प्रसाद साहू, रामपदो महतो, दिनेश उरांव, बहूरा उरांव, देवसहाय मुंडा, विभय नाथ शाहदेव, माधो कच्छप आदि उपस्थित थे।
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