ममता सिन्हा/तेनुघाट(बोकारो)। ईश्वर ने जिसे न तो सुनने और न बोलने की क्षमता दिया। किंतु उसके अन्दर जज्बा अगर है तो वह अपना और अपने परिवार का जीवन का भरण-पोषण के लिए किसी न किसी तरह रास्ता बना लेता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है तेनुघाट (Tenughat) के उपेंद्र ठाकुर (Upendra thakur) ने। वह न सुन सकता है और ना ही बोल सकता है। मगर अपने तथा अपने परिवार के जीवन के लिए किसी के सामने मोहताज नहीं है।
जानकारी के अनुसार उपेन्दर ना सिर्फ अपना बल्कि अपने परिवार का भी भरण पोषण का उपाय करता है। उपेंद्र ठाकुर जिसकी उम्र लगभग 32 वर्ष की है। वह पिछले लगभग 15 वर्षों से तेनुघाट नवोदय विद्यालय मोड़ के पास पहाड़ी शिव मंदिर के नजदीक सैलून चला रहा है। सैलून के जरिए अपने परिवार का जीविकोपार्जन करता है। मालूम हो कि उपेन्द्र हजारीबाग का रहने वाला है। उसके पिता अमिरक ठाकुर नवोदय विद्यालय में काम करते हैं। वह अपने पिता के साथ नवोदय विद्यालय में ही रहता है। मगर वह अपने, अपनी पत्नी विमली देवी, पुत्र सागर कुमार एवं पुत्री सामानी कुमारी के लिए किसी का मोहताज नहीं बना। न हीं वह सरकार के मदद की आस लगाए है। बल्कि वह सैलून खोलकर अपना और अपने परिवार का जीविकोपार्जन चला रहा है।
आज के समय में लोगों द्वारा सरकार के उपर हमेशा ही आरोप लगाया जाता है, कि सरकार उनके ऊपर ध्यान नहीं देती है। रोजगार की व्यवस्था नहीं है। वह भूखों मर रहे हैं। उपेंद्र की जोश व उत्साह को देखकर कहीं ना कहीं सरकारी व्यवस्था के सहारे बैठी जनता भी अपनी जीविकोपार्जन की व्यवस्था कर सकते हैं। जिससे पूरा समाज उनके भी हौसले और जज्बे को सलाम करने को मजबूर होगा। उपेंद्र द्वारा किए गए कार्यों को देख कर उसके हौसले उन जज्बे के बारे में चारों ओर चर्चा होती है कि वह मूकबधिर होते हुए भी किसी के आगे झुका नहीं। खुद अपने पैरों पर खड़ा होकर लोगों को यह दिखा दिया कि अगर आप खुद आत्मनिर्भर एवं विश्वास के साथ आगे बढ़ने को तैयार रहेंगे तो पूरा ज़माना आपका साथ देगा। “मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया है” इस कहावत को उपेन्द्र ने चरितार्थ कर दिखाया है। आज वह मुकबधिर होकर भी किसी के आगे हाथ फैलाने को मोहताज नहीं। बल्कि अपना और अपने परिवार का भरण पोषण अपने मेहनत से कर रहा है।
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