श्रीमद्भागवत कथा एवं साप्ताहिक ज्ञान यज्ञ के आयोजन को लेकर बैठक
अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में हरिहरक्षेत्र सोनपुर के साधु गाछी स्थित श्रीगजेंद्र मोक्ष देवस्थानम दिव्यदेश पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने 12 जुलाई को पुरूषोत्तम मास के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण पुरुषोत्तम मास के स्वामी हैं। इन्हीं के वरदान से मलमास पुरुषोत्तम मास के पवित्र नाम से विभूषित हुआ।
उन्होंने कहा कि भले ही इस माह कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित है। परन्तु इस माह जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। यह माह धर्म-कर्म का कार्य करने में बहुत फलदायी है। इस माह भागवत कथा, श्रीराम कथा श्रवण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। धार्मिक तीर्थ स्थलों पर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी यहां नारायणी नदी किनारे श्रीगजेंद्र मोक्ष घाट पर अवस्थित देवस्थानम प्रांगण में आगामी 18 जुलाई से आरंभ हो रहे पुरुषोत्तम मास में श्रीमद्भागवत कथा व साप्ताहिक ज्ञान यज्ञ की तैयारी को लेकर आयोजित बैठक को संबोधित कर रहे थे।
इस मौके पर उन्होंने पुरुषोत्तम मास पर विशेष प्रकाश डालते हुए कहा कि हिंदू कैलेंडर में हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त महीना आता है, जिसे अधिमास कहा जाता है। इसी अधिमास को पुरूषोत्तम मास भी कहते हैं। वर्ष 2023 में अधि मास 18 जुलाई को प्रारंभ हो रहा है। यह आगामी 16 अगस्त को समाप्त होगा।
पुराणों में वर्णित है मलमास के पुरुषोत्तम मास बनने की गाथा
स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने कहा कि पुराणों में अधिमास अर्थात मलमास के पुरुषोत्तम मास बनने की बड़ी ही रोचक कथा है। उस कथा के अनुसार बारह महीनों के अलग-अलग स्वामी हैं। पर स्वामीविहीन होने के कारण अधिमास को मलमास कहने से उसकी बड़ी निंदा होने लगी। इस बात से दु:खी होकर मलमास श्रीहरि विष्णु के पास गया और उनसे अपना दुःख रोया। भक्त वत्सल श्रीहरि उसे लेकर गो-लोक पहुंचे। वहाँ श्रीकृष्ण विराजमान थे।
करुणा सिंधु भगवान श्रीकृष्ण ने मलमास की व्यथा जानकर उसे वरदान दिया कि अब से मैं तुम्हारा स्वामी हूँ। इससे मेरे सभी दिव्य गुण तुम में समाविष्ट हो जाएंगे। मैं पुरुषोत्तम के नाम से विख्यात हूँ। मैं तुम्हें अपना यही नाम दे रहा हूँ। आज से तुम मलमास के स्थान पर पुरुषोत्तम मास के नाम से जाने जाओगे।
हर तीन साल पर होती है सर्वोत्तम पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति
स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार हर तीसरे साल सर्वोत्तम अर्थात पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति होती है। इस मास के समय जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। इस मास में श्रीकृष्ण, श्रीमद्भागवत कथा, श्रीराम कथा वाचन और विष्णु भगवान की उपासना की जाती है। इस माह उपासना करने का अपना अलग ही महत्व है। इस माह में तुलसी अर्चना करने का विशेष महत्व बताया गया है।
पुरुषोत्तम मास में भगवत कथा पढने, सुनने से भी बहुत लाभ प्राप्त होता है। इस मास में धरती पर शयन तथा एक ही समय भोजन करने से अनंत फल प्राप्त होते हैं। सूर्य की बारह संक्रान्ति के आधार पर ही वर्ष में 12 माह होते हैं। प्रत्येक तीन वर्ष के बाद पुरुषोत्तम माह आता है। स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने आगे कहा कि दान, धर्म, पूजन का महत्व शास्त्रों में बताया गया है कि यह माह व्रत-उपवास, दान-पूजा, यज्ञ-हवन और ध्यान करने से मनुष्य के सारे पाप कर्मों का क्षय होकर उन्हें कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है।
इस माह आपके द्वारा दान दिया गया एक रुपया भी आपको सौ गुना फल देता है। इसलिए अधि मास के महत्व को ध्यान में रखकर इस माह दान-पुण्य देने का बहुत महत्व है। इस माह भागवत कथा, श्रीराम कथा श्रवण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। धार्मिक तीर्थ स्थलों पर स्नान करने से आपको मोक्ष की प्राप्ति और अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। पुरुषोत्तम मास का अर्थ यह कि जिस माह में सूर्य संक्रान्ति नहीं होती। इनमें विशेष रूप से सर्व मांगलिक कार्य वर्जित माने गए हैं, लेकिन यह माह धर्म-कर्म के कार्य करने में बहुत फलदायी है।
ये निभायेंगे यज्ञ के आयोजन एवं संचालन की जिम्मेवारी
उक्त बैठक में मुख्य यजमान, श्रद्धालु भक्तों के लिए महाप्रसाद आदि एवं सेवा प्रभार पर विचार किया गया। मुख्य यजमान के लिए दिलीप झा, महिला समाजसेवक फूल झा, रतन कुमार कर्ण, निलीमा द्वारा महाप्रसाद आदि की व्यवस्था एवं पूजन विधि विशेष व्यवस्था गोपाल झा एवं सेवा प्रभार समाजसेवी लाल बाबू पटेल सह मन्दिर प्रबंधक नन्द कुमार बाबा को सौंपा गया। बैठक के समापन पर मन्दिर ट्रस्ट सदस्य अधिवक्ता विश्वनाथ सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया। उपस्थित दर्जनों गणमान्य जनों ने हर्षोल्लास के साथ प्रसाद ग्रहण किया।
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