श्रीराम-केवट संवाद के भावनात्मक प्रसंग सुन दर्शकों की भर आई आंखें
अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में विश्व प्रसिद्ध हरिहरक्षेत्र मेला में बाबा हरिहरनाथ मंदिर के समीप आयोजित उत्तरप्रदेश के सलेमपुर सांस्कृतिक संगम की प्रस्तुति रामायण मंचन के चौथे दिन श्रीराम-केवट संवाद ने दर्शक एवं श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।
प्रस्तुत रामायण नाटक के अनुसार जब श्रीराम नाव उतराई केवट को देते हैं, तो केवट बड़ी विनम्रता से उतराई लेने से मना कर देता है। प्रति उत्तर में उसका संवाद दर्शकों के हृदय में उतर जाता है। केवट कहता है कि प्रभु जैसे मैंने आपको नदी पार कराई है। उसी तरह जब मैं आप के घाट आऊंगा तब आप मुझे भव-सागर से पार करा दिजीएगा। मेरी उतराई मुझे मिल जाएगी।
इसी कड़ी में कहानी आगे बढ़ती है और मंच पर मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार की कथा प्रस्तुत होती है। युवा दशरथ एक बार आखेट खेलने जंगल गए हैं। भूलवस उनके शब्द भेधी वाण से श्रवण कुमार की हत्या हो जाती है। श्रवण के माता-पिता दशरथ को श्राप देते हैं कि जिस तरह पुत्र वियोग में हम अपने प्राण त्याग रहे हैं।
उसी तरह तुम भी पुत्र वियोग में तड़प -तड़प कर मरोगे। कालांतर में राजा दशरथ के साथ वही घटना घटती है। राम का वियोग उनकी मृत्यु का कारण बनता है।
भरत का आचरण समाज व् घर-परिवार को जोड़ने का महामंत्र
प्रस्तुत नाटक के अनुसार भरत-कैकेई संवाद प्रकरण में राम के प्रति भरत के अगाध प्रेम और श्रद्धा की एक मिसाल प्रस्तुत होती है। भरत भाई के रूप में आदर्श का प्रतिमान बन जाते हैं। जग में आज भी उदाहरण स्वरूप भरत जैसे भाई होने की उपमा दी जाती है। भरत का आचरण समाज को तथा घर व् परिवार को जोड़ने का महामंत्र है।
जब भरत जी श्रीराम से मिलने चित्रकूट जाते हैं, वहां से श्रीराम की चरण -पादुका को सिर पर उठा कर लाते हैं। उसी पादुका को सिंहासन पर रख कर तपस्वी भेष में चौदह वर्ष तक राज्य का संचालन करते हैं। वर्तमान समय में यह प्रसंग कितनी बड़ी सीख देती है। आज कोर्ट -कचहरी में सबसे ज्यादा मुकदमा भाई -भाई के बीच का ही देखने को मिलेगा। ऐसे समय, काल में भरत का आचरण समाज को तथा घर-परिवार को जोड़ने का महामंत्र है।
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