एस. पी. सक्सेना/बोकारो। नेता केवल अपने हित की चिंता करता है। संत मानव हित की चिंता करते हैं। संत और नेता में यही फर्क है। उक्त बातें रामानंद संम्प्रदाय के जगत गुरु स्वामी श्रीराम भद्राचार्य के अनन्य शिष्य उज्जवल शांडिल्य जी महाराज ने एक फरवरी को बोकारो जिला के हद में सीसीएल के कथारा अतिथि भवन सभागार में पत्रकार वार्ता में कही। वे कथारा चार नंबर में आयोजित श्रीलक्ष्मी नारायण महायज्ञ में राम कथा वाचन के लिए यहां पधारे हैं।
उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस ग्रंथ को लेकर उत्तर प्रदेश के विधायक स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा दिए गये विपरीत बयानों पर प्रतिक्रिया करते हुए कहा कि मौर्य पूर्व में भाजपा से विधायक थे। तब उन्होंने इस प्रकार की बातें क्यों नहीं कही थी। उन्होंने कहा कि नेता और संत में बहुत बड़ा अंतर है।
वर्तमान में अधिकांश नेता केवल अपने हित की सोंचते है। कम ही नेता राष्ट्रहित की सोंचते है। जबकि जो संत होते है वह संपूर्ण मानव समाज के हित की बात सोंचते है। उन्होंने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस ग्रंथ की अनेक प्रतियाँ है। अर्थातरण न्यास के तहत उक्त चौपाई लिखा गया है। उन्होंने कहा कि रामचरित मानस ग्रंथ की रचना मुगलकाल में किया गया था।
शांडिल्य जी महाराज ने कहा कि जहां देवता की पूजा होती है, जहां दान होता है, जहां सतसंग होता है वह यज्ञ है। उन्होंने कहा कि मंगलवार को प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था। गाँधी जी के जन गण में भी श्रीराम की महिमा का बखान किया गया है। सात बार जय हे का तात्पर्य है सात समुन्दर पार भी श्रीराम का मंगल गान होना।
उन्होंने कहा कि हरि कथा के साथ सत्संग होना भी जरूरी है। सत्संग से बड़े से बड़ा समस्या का समाधान संभव है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र प्रथम है, इसलिए हमें आपस में कितना भी विभेद हो राष्ट्र के प्रति एक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जाति धर्म से उपर इंसानियत बड़ा है, लेकिन इंसानियत का मुल धर्म है। सबसे पुराना ग्रन्थ वेद है। इससे पुराना कोई ग्रन्थ नहीं है।
उन्होंने कहा कि समाज में आज धर्म के नाम पर कट्टरता फैल रही है। यह अच्छा नहीं है। सनातनी मानते है कि ईश्वर विभिन्न रूपों में है। संम्प्रदाय अलग अलग है, लेकिन सभी का श्रोत एक है। प्रेस वार्ता में कथारा चार नंबर यज्ञ समिति के चंद्रशेखर प्रसाद व् वेदव्यास चौबे उपस्थित थे।
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