बुजुर्गों की बात न मान राजा परीक्षित की एक गलती से कलियुग का प्रवेश-महाराज

प्रहरी संवाददाता/पेटरवार (बोकारो)। पेटरवार प्रखंड (Peterwar block) के हद में अंगवाली के सार्वजनिक धर्मस्थल पर आयोजित श्रीमद भागवत कथा ज्ञान सप्ताह के चतुर्थ रात्रि प्रवचन के दौरान बृंदावन से पधारे परमानंद ठाकुरजी महराज ने भक्त वत्सल भगवान श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर, सुभद्रा, द्रोपदी, कुंती आदि अनेकों हस्तियों द्वारा वरदान मांगे जाने संबंधी प्रसंग का बेवाक विश्लेषण किया।

उक्त प्रसंग का विश्लेषण करते हुए उन्होंने अर्जुन के पौत्र एवं अभिमन्यु के प्रतापी पुत्र राजा परीक्षित के शासन काल में कलियुग के आगमन एवं प्रवेश तथा राजा सहित राज्य को प्रभावित करने वाली कथा को विस्तार से बताया। उन्होंने धर्म के चार पहिए सत्य, तप, यज्ञ व दान की महत्ता पर भी प्रकाश डाला।

श्रद्धेय महराज ने कहा कि राजा परीक्षित ने अपने बुजुर्गो की बात न मानकर अर्से से बंद पड़ा बक्से को खोलने का आदेश मंत्रियों को दी। उसी बक्से से मानव रूप में कलियुग का आगमन हुआ था।

कलियुग ने बड़ी चतुराई से राजा से राज्य में रहने का स्थान मांग लिया, जिसे राजा ने स्वर्ण में निवास करने की अनुमति भी दे दी। बस राजा की यही एक गलती से कलियुग को व्यभिचार, अधर्म का साम्राज्य कायम करने का अवसर मिल गया।

महाराज जी ने कहा कि अपने दादाश्री भीम द्वारा मारा गया जरासंध की स्वर्ण मुकुट को सिर में धारण कर राजा परीक्षित आखेट पर निकल पड़े। वन में प्यास से तड़पते मुनि के आश्रम में पहुंचे। श्रृंगी ऋषि के ध्यान मग्न पिता से पानी मांगा।

नही सुनने पर मरा हुआ सर्प उनके गले में डाल दिया। ध्यान मग्न पिता के साथ यह दुष्टता देख ऋषि श्रृंषि क्रोधित होकर राजा को श्राप दिया कि यह सर्प जीवित होकर सात दिन के भीतर डसेगा व मृत्यु हो जाएगी।

बता दें कि, कलियुग द्वारा राजा के स्वर्ण मुकुट में बसने के कारण उसी के प्रभाव से यह दृष्टता राजा से हुई थी। सुखदेव जी ने राजा परीक्षित को भागवत की कई कथाएं सुनाई। बताया कि राजा अपनी गलती स्वीकार की।

उन्हें ब्यास मुनि पुत्र सुखदेव जी सहित प्रायः सभी ऋषि, मुनि उनके समक्ष आए और भागवत महापुराण कथा श्रवण कर उन्हे मोक्ष की प्राप्ति हुई। मंच पर बैठे शिष्या ममता पुरुषोत्तम सहित श्रोता दीर्घा, यज्ञ समिति के पदाधिकारी व्यवस्था को बनाए रखा। मौके पर मास्टर संजय मिश्रा के नेतृत्व में आकर्षक झांकी भी निकाली गई। जबकि डॉ रतनलाल मांझी देर रात यहां पहुंचकर ब्यास मंच पर नतमस्तक हुए।

 451 total views,  1 views today

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *