ममता सिन्हा/तेनुघाट (बोकारो)। बोकारो जिला (Bokaro district) के हद में तेनुघाट, उलगडा, चांपी, घरवाटांड़, सरहचिया आदि क्षेत्र में करम पर्व बड़े ही धूमधाम, हर्षोल्लास और उमंगपूर्वक मनाया गया।
इस अवसर पर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं सहित युवतियां करमा वृक्ष का डाल गाड़ कर करम वृक्ष और जावा को पूजा अर्चना करने के बाद रात भर झूमर नाचती है। इन क्षेत्रों में भी अब करम पर्व सिर चढ़कर बोलने लगा है।
लगातार दो वर्ष कोरोना महामारी के प्रकोप ने सभी को थोड़ा उदास जरूर किया है, परंतु प्रकृति से जुड़ा करम पर्व पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है। झारखंड की माटी में रची बसी है करम संस्कृति।
कृषि, पर्यावरण संरक्षण, आपसी भाईचारा, प्रकृति की अनुपम छटा नदी, झरने, पहाड़, जल, जंगल, खेत, खलिहान आदि को बड़े ही सुंदर तरीके से समाहित करता है करम पर्व।
इस संबंध में तेनुघाट निवासी बालेश्वर ठाकुर ने 18 सितंबर को बताया कि करम पर्व 7 दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन गांव की सभी करमईत लड़कियां स्नान कर जावा डाली (डलिया) को सजा कर उसमें बालू भरकर मूंग, कुरथी, जौ, चना, मकई आदि के बीज बुनती हैं।
लगातार सात दिनों तक जावा को गीत गा कर जगाती है। एकादशी के रात्रि में समर्पित भक्ति भाव से पूजा अर्चना करते हैं। ठाकुर के अनुसार सुबह शाम इसकी करम गीतों से आराधना की जाती है। इन सात दिनों में जावा डाली में बीजो से अंकुर निकल कर पौधे का रूप तैयार हो जाता है।
इस दौरान सभी करमईत अपनी साफ-सफाई एवं निरामिष भोजन का पूरा ध्यान रखती हैं। एकादशी के दिन निर्जला उपवास रखकर रात में करम पेड़ की डाली एवं जावा की पूजा की जाती है। अपने भाइयों के सुख समृद्धि की कामना करती है। इसलिए यह भाई-बहन के अटूट और निश्चल प्रेम का भी परव कहा जाता है।
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