पत्रकारिता के स्तंभ राधाकृष्णा विश्वकर्मा, ‘उद्भ्रांत’ की प्रतिबिंब-2 बाजार में

एस.पी.सक्सेना/रांची (झारखंड)। झारखंड में पत्रकारिता का स्तंभ माने जानेवाले राधाकृष्णा विश्वकर्मा, ‘उद्भ्रांत’ ने तीस वर्षों के लंबे अंतराल के बाद अपनी तीसरी नवीन रचना प्रतिबिंब-२ (कविता संग्रह) बाजार में लाकर साहित्य जगत को एक नया आयाम देने का प्रयास किया है।

यह काव्य संग्रह वर्तमान परिवेश को ध्यान में रखकर ही लिखा गया है। प्रतिबिंब-२ में आज के राजनैतिक-सामाजिक, सांस्कृतिक विरासतो का खुबसूरती से वर्णन किया गया है।

मूलरूप से बिहार राज्य के औरंगाबाद निवासी उदभ्रांत का प्रारंभिक जीवन झारखंड के बोकारो जिला के हद में बेरमो कोयलांचल में बिता है। यहीं उन्होंने शिक्षा प्राप्ति के पश्चात विज्ञान शिक्षक के तौर पर समाज में अपनी पहचान बनाना शुरु किया था, कि उनमे पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने का शगल समा गया।

ऐन-केन-प्रकारेण उन्होंने वर्ष 1978 में पटना से प्रकाशित विवेकानंद संदेश पत्रिका में कविता लेखन प्रारंभ किया। वहीं वर्ष 1981 में वे अमृत वर्षा अखबार से जुड़ गये। इसके बाद जनमत धनबाद, आवाज, नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान, जनशक्ति, आज, दैनिक जागरण, रांची एक्सप्रेस में बतौर पत्रकार समाचार संकलन व स्तंभकार कार्य किया।

इस दौरान उदभ्रांत ने वर्ष 1994 के फरवरी में अपना एक हिन्दी साप्ताहिक युद्ध चक्र बोकारो जिला के हद में बेरमो कोयलांचल के फुसरो बाजार से प्रकाशन प्रारंभ किया। लगभग एक दशक तक उक्त अखब़ार का इन्होंने प्रकाशन किया। बाद में आर्थिक तंगी के कारण उक्त अखब़ार को बंद करना पड़ा।

इस दौरान इनकी रचना प्रतिबिंब एक के प्रकाशन पर इन्हें दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में वर्ष 1992 में पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की उपस्थिति में केंद्रिय कृषि मंत्री द्वारा लोकार्पण एवं अंबेदकर फेलोशिप से सम्मानित किया गया।

वर्तमान में उदभ्रांत झारखंड की राजधानी रांची के कांके प्रखंड के हद में बोड़िया जयप्रकाश नगर में रह रहे हैं। ध्यान देने योग्य बात है कि जगत प्रहरी के बिहार-झारखंड प्रमुख ने भी इन्ही के संरक्षण में पत्रकारिता की शुरुआत की थी। बाद में इन्हें उदभ्रांत ने युद्ध चक्र का ब्यूरो प्रमुख बना दिया था।

ज्ञातव्य है कि पहली बार वर्ष 1991 में प्रतिबिंब भाग-1 तो दूसरी बार 1993 में कहानी संग्रह – ‘यह सच नहीं है’ का प्रकाशन इनके द्वारा किया गया था। उदभ्रांत के तब मैं बोकारो जिला के बेरमो कोयलांचल से पत्रकारितारत था । फिलहाल वर्ष 2000 से रांची जिले के अरसंडे, कांके प्रखंड में रहता हूं।

उनके अनुसार ऐसा नहीं कि इस अंतराल में मैं लेखन से कभी दूर रहा। परंतु पारिवारिक जिम्मेदारियां – बाल-बच्चों की पढ़ाई, शादी ब्याह, पत्नी की आकस्मिक निधन सहित कई संघर्षों में व्यस्त रहा। इस कारण रचनाओं का प्रकाशन नहीं कर सका।

उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में कोयलांचल से इतर विभिन्न सामाजिक कुरीतियों, संबंधित रचनाएं – यथा मुझे मत मारो, चेहरे पर चेहरा, लूटता बचपन, किशोर अपराधी जैसी कविताएं हैं। वही नारी संबंधी – नारी अस्मिता, कुंवारापन और कैरियर, शादी ब्याह की असलियत, स्वाबलंबी बेटियां, गोरी-काली बीवी आदि से जुड़ा विषय समाहित है।

इसमें राजनीति से संबद्ध – राजनितिक वंशवाद, चुनाव वाले बाबू , नोटबंदी आदि है, तो सीनियर सिटीजन एवं प्रौढ़ा- बुजुर्गों से संबंधित – अब बन गया हूं सीनियर-सिटीजन, वृद्ध-चौपाल, आश्रय की तलाश आदि है। इसमें देशभक्ति सहित पत्रकारिता, मानव अंतरवेदना संबंधित अनुभव पर आधारित कई कविताएं हैं।

उन्होंने बताया कि वर्ष 2016-17 में मैं अमेरिका गया था। इस प्रवास के दौरान मैंने वहां की सामाजिक, राजनीतिक एवं प्रशासन संबंधि कई पहलुओं पर बारीकी से अध्ययन किया।

इन अनुभवों को मैंने अपनी कविता ‘अमेरिका जैसा देखा’ के माध्यम से चित्रित करने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि जो पाठक अमेरिका नहीं जा पाए हैं उन्हें इससे विशेष जानकारी मिल सकती है।

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