अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में हरिहरक्षेत्र सोनपुर स्थित श्रीगजेन्द्र मोक्ष देवस्थानम् दिव्य देश पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने 19 जुलाई को कहा कि भक्ति एक ऐसा उत्तम निवेश है, जो जीवन में परेशानियों का उत्तम समाधान देती है। साथ ही जीवन के बाद मोक्ष भी सुनिश्चित करती है।
स्वामी लक्ष्मणाचार्य सोनपुर के नारायणी नदी तट पर गजेन्द्र मोक्ष देवस्थानम में पुरुषोत्तम मास के अवसर पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन भक्तों को संबोधित कर रहे थे।
इस अवसर पर उन्होंने मुझे लगी श्याम संग प्रीत कि दुनिया क्या जाने…. मैं तो गाउं खुशी के गीत कि दुनिया क्या जाने भजन गायन का रसास्वादन श्रद्धालु भक्तों को कराया।उन्होंने कहा कि शरीर चला जाता है और कर्म हीं जगत में रहते हैं। कीर्ति यस्य स जीवति। उन्होंने कहा कि जो दुराचार नहीं करेंगे, संसार उसके नाम को अमरत्व रुप में यादगार बना रखेंगे।
कर्दम एवं देवहूति के गृहस्थाश्रम विवाह प्रसंग का भक्तों ने किया श्रवण
प्रवचन के क्रम में स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने कहा कि चारों आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थ और संन्यास में गृहस्थाश्रम ही श्रेष्ठ है। गृहस्थाश्रम हीं अन्य आश्रमों का भरण पोषण करता है। उन्होंने कर्दम ऋषि का उदाहरण देते हुए कहा कि कर्दम ऋषि ने सरस्वती नदी के तट पर ग्यारह हजार बर्ष तक तपस्या की। भगवान श्रीमन्नारायण ने स्वयं उन्हें गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने की अनुमति दे दी और कहा मैं तुम्हारे लिए शीलवती कन्या की व्यवस्था कर आया हूं।
परसों स्वायंभुव मनु आयेंगे अपनी कन्या को लेकर। उनकी कन्या देवहूति व् शीलवती है जो तुम्हारे गृहस्थ व सन्यास दोनों आश्रमों में सहयोग करेगी। उन्होंने कहा कि भगवान ने जब उनको यह वरदान दिया तो उनको भी कर्दम ऋषि पर इस कारण करुणा आ गई कि ग्यारह हजार वर्ष तप करने के बाद वरदान भी मांगा तो अपने विवाह का।
उन्होंने सोंचा कि मेरा भक्त गृहस्थाश्रम में जा रहा है, सुख कम, दुःख ज्यादा हैं। भगवान की आखों से उसी समय अश्रुपात होने लगा। इतना अश्रुपात हुआ की उन अश्रुओं से एक सरोवर बन गया। आज भी गुजरात में बिंदु सरोवर नाम की एक जगह है, वहीं पर यह संवाद हुआ।
लक्ष्मणाचार्य ने कहा कि कर्दम का अर्थ इन्द्रियों को दमन करने वाला होता है। शास्त्रों में वर्णित है कि यदि प्रारंभ से ही भगवान के प्रति प्रेम है तो गृहस्थाश्रम में जाने की जरुरत नहीं है। अगर दुनिया से प्रेम है तो चाव से जाओ। फिर क्या होगा? दुनिया की सच्चाई पता लग जायेगी। थोड़े बहुत धक्के पड़ेंगे, फिर वापस भगवान की ओर आ जाओगे।
पहले जाओ या बाद में, भगवान के पास ही आना पड़ेगा। दूसरी बात भगवान ने कही कि कर्दम जी तुम मेरा इतना भजन करके विवाह करने ही जा रहे हो तो अपनी तरफ से एक वरदान और देता हूं। वहां मैं तुम्हारा पुत्र बनकर आऊंगा और तुम्हारा कल्याण करूंगा। इस प्रकार भगवान कपिल ने माता देवहूति के गर्भ से जन्म लिया।
स्वामी लक्ष्मणाचार्य जी बताते हैं कि कपिल भगवान ने माता देवहूति से कहा कि ये आशक्ति ही सुख- दुख का कारण है। यदि संसार में ये आशक्ति है, तो दु:ख का कारण बन जाती है। यही आशक्ति भगवान और उनके भक्ति में हो जाए तो मोक्ष का द्वार खुल जाता है।
उन्होंने श्रीमद्भागवत की अमर कथा एवं शुकदेव के जन्म का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि कैसे श्रीकृष्ण ने शुकदेव महाराज को धरती पर भेजा। भागवत कथा गायन करने को, ताकि कलियुग में सबका कल्याण हो सके। शुकदेव जी के जन्म के बारे में यह कहा जाता है कि ये महर्षि वेद व्यास के अयोनिज पुत्र थे। वे बारह वर्ष तक माता के गर्भ में रहे।
भगवान शिव, पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे। पार्वती जी को कथा सुनते-सुनते नींद आ गयी और उनकी जगह पर वहां बैठे शुकदेव जी ने हुंकारी भरना प्रारम्भ कर दिया। जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई, तब उन्होंने शुकदेव को मारने के लिये दौड़े। उनके पीछे अपना त्रिशूल छोड़ा। शुकदेव जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागते रहे। भागते-भागते वह व्यास जी के आश्रम में आये और सूक्ष्मरूप बनाकर उनकी पत्नी के मुख में समा गए।
वह उनके गर्भ में रह गए। ऐसा कहा जाता है कि वे बारह वर्ष तक गर्भ के बाहर ही नहीं निकले। जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तभी वे गर्भ से बाहर निकले और व्यासजी के पुत्र कहलाये। गर्भ में ही इन्हें वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान हो गया था।
जन्म लेते ही ये बाल्य अवस्था में ही तप हेतु वन की ओर भागे, ऐसी उनकी संसार से विरक्त भावनाएं थी। परंतु वात्सल्य भाव से रोते हुए व्यास भी उनके पीछे भागे। मार्ग में एक जलाशय में कुछ कन्याएं स्नान कर रही थीं। उन्होंने जब शुकदेव को देखा तो अपनी अवस्था का ध्यान न रख कर शुकदेव का आशीर्वाद लिया। लेकिन जब शुकदेव के पीछे मोह में पड़े व्यास वहां पहुंचे तो सारी कन्याएं छुप गयीं। ऐसी सांसारिक विरक्ति से शुकदेव महाराज ने तप प्रारम्भ किया।
गलती होने पर सुधार और प्रायश्चित जरूरी
स्वामी लक्ष्मणाचार्य महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा सुनाते हुए कहा कि मनुष्य से गलती हो जाना बड़ी बात नहीं। लेकिन ऐसा होने पर समय रहते सुधार और प्रायश्चित जरूरी है। ऐसा नहीं हुआ तो गलती पाप की श्रेणी में आ जाती है। कथा व्यास ने पांडवों के जीवन में होने वाली श्रीकृष्ण की कृपा को बड़े ही सुंदर ढंग से दर्शाया। कहा कि परीक्षित कलयुग के प्रभाव के कारण ऋषि से श्रापित हो जाते हैं।
उसी के पश्चाताप में वह शुकदेव जी के पास जाते हैं। भक्ति एक ऐसा उत्तम निवेश है, जो जीवन में परेशानियों का उत्तम समाधान देती है। साथ ही जीवन के बाद मोक्ष भी सुनिश्चित करती है। कथा व्यास ने कहा कि द्वापर युग में धर्मराज युधिष्ठिर ने सूर्यदेव की उपासना कर अक्षय पात्र की प्राप्ति किया। हमारे पूर्वजों ने सदैव पृथ्वी का पूजन व रक्षण किया। इसके बदले प्रकृति ने मानव का रक्षण किया। भागवत के श्रोता के अंदर जिज्ञासा और श्रद्धा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि परमात्मा दिखाई नहीं देता है वह हर किसी में बसता है।
उपर्युक्त अवसर पर बड़ी ही मनोरम झांकी भी दिखाई गई। सैकड़ों श्रद्धालुओं की सेवा में मन्दिर प्रबंधक नन्द कुमार राय, समाजसेवी सह मन्दिर मीडिया प्रभारी लाल बाबू पटेल, दिलीप झा, भोला सिंह, इंजीनियर अजय कुमार, धनंजय सिंह, नरेशु सिंह, अमरनाथ सिंह आदि तन मन से लगे रहे। कथा विश्राम पर गोपाल झा द्वारा उपस्थित श्रद्धालुओं के बीच महाप्रसाद का वितरण किया गया।
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