त्रिदंडी स्वामी की स्मृति उनके अनुयायियों के दिलों में आज भी जीवित-लक्ष्मणाचार्य
अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में विश्व विख्यात हरिहर क्षेत्र सोनपुर के श्रीगजेन्द्रमोक्ष देवस्थान नौलखा मन्दिर परिसर में 16 अप्रैल को जगदाचार्य श्रीमद्विष्वक्सेनाचार्य श्रीत्रिदण्डी स्वामीजी महाराज का जन्मोत्सव मनाया गया।
इस अवसर पर देवस्थानम में सायंकाल 4 बजे से विशेष पूजा -अर्चना, अभिषेक एवं आरती किया गया। हरिहरक्षेत्र पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य महाराज ने श्रीत्रिदण्डी स्वामी के अवतरण दिवस पर विशेष रूप से प्रकाश डाला।
स्वामी लक्ष्मणाचार्य महाराज ने कहा कि वामनाश्रम (बक्सर) से 18 किलोमीटर दक्षिण तथा ऐतिहासिक युद्ध भूमि चौसा से लगभग 8 किलोमीटर पूरब हेठुआ राजपुर थाना क्षेत्र के सिसराढ़ गांव में सन् 1870 के दशक में श्रीत्रिदण्डी स्वामी का अवतरण हुआ था। इनकी माता इंदिरा चतुर्वेदी और पिता श्रीनारायण चतुर्वेदी थे। इनके बचपन का नाम बैजनाथ चतुर्वेदी था।
स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने बताया कि भृगु क्षेत्र महात्म्य के अनुसार, त्रिदंडी स्वामी का जन्म वैशाख कृष्ण द्वितीया को रात्रि 11:24 बजे हुआ था। बाल्यावस्था में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया, जिसके बाद उनके दादाजी पं. जोधन चौबे ने उनका पालन-पोषण किया। उन्होंने कहा कि उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके अग्रज महर्षि श्याम नारायण चतुर्वेदी के द्वारा की गयी थी। यहां से पढ़ाई के बाद बक्सर में पंडित भोलाजी से शिक्षा – दीक्षा हुई।
फिर लक्ष्मी नारायण मंदिर बक्सर में अध्ययन के बाद उच्च शिक्षा वाराणसी, अयोध्या से प्राप्त किया और कांची पीठाधीश्वर अनन्ताचार्य स्वामी से त्रिदंडी संन्यासी की दीक्षा ग्रहण की। इसके बाद उन्होंने कई लौकिक और अलौकिक चमत्कार किए, साथ ही सैकड़ों यज्ञ भी कराए। देश में उनके लाखों शिष्य बने और उनके द्वारा स्थापित स्मृति मंदिर ‘त्रिदंडिदेव धाम’ नगवां गांव में स्थित है।
कहा जाता है कि जो भी यहां आता है, उसकी मुरादें पूरी होती हैं।आज भी त्रिदंडी स्वामी की स्मृति उनके अनुयायियों के दिलों में जीवित है और विश्व में उनका नाम आदर और श्रद्धा से लिया जाता है।
108 दिव्य देशों का किया भव्य यात्रा दर्शन, कराया 350 से अधिक लक्ष्मी नारायण महायज्ञ
जगदाचार्य श्रीमद्विष्वक्सेनाचार्य श्रीत्रिदण्डी स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने कहा कि जगदाचार्य श्रीत्रिदण्डी स्वामीजी महाराज ने 108 दिव्य देशों का भव्य यात्रा दर्शन किया। यात्रा से लौटने के बाद वे पुन: बक्सर पधारे। उन्होंने विभिन्न प्रकार के 350 से अधिक लक्ष्मी नारायण महायज्ञ कराया। 250 ग्रंथों का दूसरे भाषाओं में रचना की, जिसे आज तक किसी संत ने नहीं किया। वे बक्सर की तपोभूमि पर अलौकिक शक्ति के अवतार के रूप में जाने जाते थे। बताया जाता है कि जन्म से ही इनके जिह्वा पर सरस्वती का वास था। इनकी ख्याति को देखकर विदेशी भी आते थे और अनुसरण करते थे। इनके प्रवचन के समय में भगवान विष्णु, हनुमानजी एवं शेषनाग विराजमान होते थे।
वे प्रतिदिन काली देशी गाय का दूध का सेवन नारियल की खोपड़ी में करते थे। इनके पीठ अयोध्या में 350 मठ मंदिर एवं विश्वविद्यालय हैं, जहां आज भी देश – विदेश के छात्र वेद, वेदान्त ग्रहण करते है। 133 वर्ष की उम्र में 3 दिसंबर को जीते जी उन्होंने बक्सर में समाधि ले ली थी।
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