ज्ञान वापी के अकाट्य शास्त्रीय प्रमाण-पं. निर्मल शुक्ल

एस. पी. सक्सेना/रांची (झारखंड)। वेद पुराण के ज्ञाता धर्म मर्मज्ञ पंडित निर्मल शुक्ल के अनुसार भारत के महानगरों से लेकर देहातों और दो-चार घरों के खेड़ों तक में काशी स्थित ज्ञानवापी और ज्ञानवापी मस्जिद ज्वलंत विषय बने हुए है।

सारे टीवी चैनल लगभग आधा समय इस विषय पर लगा ही रहे हैं। तर्क कुतर्क प्रस्तुत किए जा रहे हैं, किन्तु धार्मिक मामलों में तो।।तस्मात्शाश्त्रं प्रमाणम् ते कार्याकार्यौ व्यवस्थितौ। शाश्त्र ही परम प्रमाण हैं।

पं शुक्ल के अनुसार कुछ दिनों पहले मैंने ऐतिहासिक प्रमाणों द्वारा सिद्ध करने का प्रयास किया था कि ज्ञानवापी पूर्णतः हिंदू तीर्थ है और भारत वर्ष की कुछ पवित्र नदियों, कूपों, बावड़ियों और सरोवरों के समान ही पावन है ज्ञानवापी। सनातन धर्म में पंचदेवोपासना ही प्रधान है, जिनमें गणेश, विष्णु, शिव, दुर्गा और सूर्य की अपनी अपनी अभिरुचि और संप्रदायानुसार सनातनी लोग आराधना करते हैं।

एकैश्वर वादी अज्ञान वश भले ही उपहास करते रहें, किंतु मूल में यहां भी एकैश्वर वाद ही दृष्टिगोचर होता है। एकैव शक्तिः परमेश्वरस्य भिन्ना चतुर्धा व्यवहार काले। रचना काल में उसी परम सत्ता को ब्रह्मा किं वा, हिरण्यगर्भ पालन काल में विष्णु, संहार काल में शिव, भोग प्रदानार्थ भवानी, विवेक बुद्धि हेतु गणेश और जीवन संचालनार्थ सूर्य संज्ञा से जाना जाता है।

पं. शुक्ल ने बताया कि पुराणों के अनुसार इसी आनंद वन काशी में भगवान भूत-भावन ने स्वयं ज्ञान जल से परिप्लुत ज्ञान वापी की रचना किया। जैसा कि पद्म पुराण में एक ब्राह्मण और राक्षसियों का वार्तालाप वर्णित है। उन ब्राह्मण से वे पूछती है कि आपने किन किन तीर्थों का भ्रमण स्नान की तो विप्र बताते हैं।

ततः काशी में प्राप्तो राजधानीमुमापते।नत्वा विश्वेश्वरं देवं विन्दु माधव मेव च। स्नातं मणिकर्णिकायां ज्ञानवाप्यांचभक्तितः। त्रिरात्रिमुषितस्तत्र प्रयागं पुनरागमम्। हे राक्षसियों नाना तीर्थों में भ्रमण करता हुआ मैं काशी पुरी आया। वहां उमापति महादेव की राजधानी में विश्वनाथ और विन्दुमाधव का दर्शन कर मैने ज्ञानवापी के पवित्र जल में तथा मणिकर्णिका में स्नान कर तीन रातों तक भक्ति पूर्वक निवास कर पुनः प्रयाग आ गया।

उन्होंने कहा कि प्रमाण प्रमाण खेलने वाले महानुभावों को सूचित कर दूं, कि सारे पुराण 5000 वर्ष के पहले रचित हुए थे। सबसे अंत में भागवत पुराण की रचना हुई, वो भी 5000 वर्ष से अधिक प्राचीन है।

अब आइए आपको स्कंद पुराण में वर्णित काशी गौरी यात्रा के कुछ प्रमाण दें। ज्येष्ठा वाप्यां नरः स्नात्वा ज्येष्ठा गौरीं समर्चयेत। सौभाग्य गौरीं संपूज्या ज्ञानवाप्यां कृतोदकैः।। ततः श्रंगार गौरींच छत्रैव च कृतोदकैः।स्नात्वा विशाल गंगायां विशालाक्षीं न तो व्रजेत्। सुस्नातो ललितातीर्थेललितामर्चयेत्ततऽ।

श्रीमान यह है स्कंद पुराण, जो लगभग 7000 वर्षों से भी प्राचीन है। इसमें ज्येष्ठा वापी, ज्येष्ठा गौरी, ज्ञान वापी, सौभाग्य गौरी, श्रृंगार गौरी, विशाल गंगा, विशालाक्षी, विंदु तीर्थ, ललिता तीर्थ, ललिता देवी, विंदु माधव मणिकर्णिका आदि की विधिवत व्याख्या है।

विस्तार भय से सारे श्लोक और उनके अर्थ संभव नहीं है। मात्र संकेत कर रहा हूं। चलिए स्कन्द पुराण से ही ज्ञानवापी के कुछ और प्रमाण। यथा आकाशात्तारकालिंगं ज्योतीरूपमिहागतम्।

ज्ञानवाप्याः पुरो भागे, तल्लिंगं तारकेश्वरं। तारकं ज्ञानमाप्येत तल्लिंगस्य समर्चनात्।ज्ञानवाप्यां नरः स्नात्वा तारकेशं विलोक्य च। मुच्यन्ते सर्व पापेभ्यःपुण्यं प्राप्नोति शाश्वतम्। प्रान्ते च तारकों ज्ञानं यस्मात्ज्ञानाद्विमुच्यते।।

यहां आकाश से आए हुए तारकेश्वर लिंग की चर्चा है, जो स्वर्ग से उतर कर ज्ञानवापी के पूर्व भाग में स्थित हो गया। ज्ञानवापी स्नान तारकेश्वर दर्शन से मुक्ति सुलभ होती है। ऐसा स्कंद पुराण काशी खंड श्लोक 53/54 अध्याय 69 में वर्णित है।

आइए और देखें। कृत्यकल्पतरु के अनुसार तदन्धोः पूर्वतो लिंगं पुण्यं विश्वेश्वराह्वयम्।विश्वेश्वरस्य पूर्वेण वृद्ध कालेश्वरो हरः। तस्य पूर्वेण कूपस्तु तिष्ठते से महान प्रिये।तस्मिन्कूपे जलं स्पृस्य पूतो भवति मानवः।।

इस प्रकार ज्ञान वापी के चारों दिशाओं में दंडपाणि तारकेश्वर, नंदीश्वर, महाकालेश्वर का निवास वर्णित है। इस प्रकार ज्ञान मंडप, ज्ञान वापी और काशी में स्थित अनेकों तीर्थों का वर्णन शिव पुराण, स्कन्द पुराण, पद्य पुराण, लिंग पुराण व आगम ग्रंथों तथा शिव संबंधी अनेकों पौराणिक प्रसंगों में दृष्टव्य हैं। उन्होंने कहा कि इस्लाम का उदय ही 1400 वर्ष पूर्व हुआ।

जिन जिन देशों में आज इनकी सत्ता है सब तलवार के बल पर ही स्थापित हुई। 1400 वर्षों जिसमें अनेकों मंदिर चैत्य चर्च विखंडन हुआ। बामियान में विशाल बुद्ध प्रतिमा हम लोगों के समय ही क्रूरता पूर्वक चूर चूर कर दी गई।

बाबर नामा, अकबर नामा तथा औरंगजेब, शाहजहां, जहांगीर आदि के दरबारियों ने स्पष्ट रूप से काशी-विश्वनाथ मंदिर के विखंडन की बात स्वीकार किया है। वर्तमान के इतिहास कारों में इरफान हबीब, रोमिला थापर यहां तक कि कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने भी औरंगजेब के इस कृत्य का वर्णन किया है। अनेकों अंग्रेज़ इतिहासकार भी स्वीकार कर चुके हैं।

पं. शुक्ल के अनुसार अंग्रेजी हुकूमत काल में इसका फैसला भी हिंदू पक्ष में आ चुका है। ज्ञानवापी से निकला हुआ विशाल शिवलिंग और ठीक इसके सामने शताब्दियों से बैठे नंदी महाराज गवाही दे रहे हैं इस बात का कि यहां भीषण रक्तपात कर सनातन धर्मावलंबियों के सर्वाधिक महत्वपूर्ण देवता के साथ कैसा अपमान जनक व्यवहार चलता रहा। साढ़े तीन सौ साल तक।

अंधे को भी स्पर्श मात्र से समझ में आ जाय एक ही पाषाण शिला से निर्मित ठोस शिवलिंग। उसके शीर्षभाग से छेड़छाड़ हुई, यह प्रत्यक्ष दिख रहा है। काशी के अनेकों मुस्लिम भाइयों ने भी यह स्वीकार किया कि यहां इतिहास में कभी भी फव्वारा नहीं चला और बुजुर्ग मुस्लिम भाइयों ने मुक्त कंठ यह भी स्वीकार किया कि मंदिर तोड़ कर बनाई गई इस मस्जिद की नमाज़ ख़ुदा को कतई क़ुबूल नहीं होगी।

समय की मांग है कि आज के इस सुशिक्षित समाज में सैकड़ों साल की कबीलाई बर्बरता का परिमार्जन किया जाय। काशी मुसलमानों का कोई तीर्थ नहीं है, केवल राजनीतिक लोगों के षड्यंत्र के शिकार हो रहे हैं।अब एक नया फैशन चल पड़ा है कि 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का पालन होना चाहिए।

वह एक्ट ही सारी कायनात से बड़ा है। बड़ा अच्छा लगता है सुन कर कि लोग कानून की इतनी इज्जत करने लगे। क्यों जी अगर पूजा स्थल अधिनियम 1991 संसद द्वारा पारित कानून हैं और उसकी मर्यादा पालन बहुत आवश्यक है तो सीएए, धारा 370, तीन तलाक़ कानून, 37 ए जैसे सारे कानून कहां पास हुए।

अरे भाई कल ही मदनी महोदय ने कहा मुसलमान सरिया कानून के हिसाब से चले। वाह वाह आप केवल सरिया कानून का पालन करें। संसद में पास कानून केवल हिंदू पालें। जमाना बदल गया साहब। हिंदुओं के ग्रंथों में भी बहुत कुछ लिखा है।

हिंदुओं ने सहर्ष समयानुसार उनमें परिवर्तन किया, और इतना परिवर्तन किया कि गिनाने के लिए स्वतंत्र ग्रंथ चाहिए। अपने धर्म का पालन बिना दूसरों को तिरस्कृत किए भी हो सकता हैं। आत्मनः प्रतिकूलानि परेशां न समाचरेत्।

जो व्यवहार या बर्ताव आपको अच्छा नहीं लगता वह व्यवहार दूसरों से न करें। याने जो स्वयं को अच्छा लगता है वहीं व्यवहार दूसरों से भी करें। सारी समस्याओं का समाधान स्वतः हो जाएगा। हिंदू समाज को भी भविष्य में मुसलमानों के साथ ही व्यतीत करना है। ऐसा समझ कर अपने धर्म और स्वाभिमान की रक्षा करते हुए भी अधिक जल्दबाजी और बेतुके बयानों से बचें।

सरिया के अनुसार विवादित या छीनी हुई जमीन पर मस्जिद न बनाई जाय। हदीस के अनुसार तो बाजार भाव से अधिक मूल्य देकर जमीन का उपयोग किया जाय। काशी, अयोध्या, मथुरा आदि सनातन धर्मावलंबियों के स्थान हैं। हजारों वर्ष से यहां इनका ही आधिपत्य रहा है, इसलिए औरंगजेब ने कब किससे रजिस्ट्री कराया ए सब खोज बीन करना बहुत भारी पड़ेगा।

आक्रांताओं ने आक्रमण द्वारा जो विध्वंस किया। अब देश स्वतंत्र हो जाने के बाद चूंकि मुसलमान भी इस देश के स्वतंत्र नागरिक हैं। इस देश का मान सम्मान उतना ही उनका है, जितना हिंदुओं का।

आक्रमणकारियों के कुकृत्य के संशोधन के लिए उन्हें स्वयं आगे आकर भारतीय मान विंदुओं का सम्मान करना चाहिए और गंगा जमुनी तहजीब मात्र भाषण में नहीं प्रत्यक्ष व्यवहार में भी उतारना चाहिए।

काशी में ज्ञानवापी परिसर के हर कदम पर धरती के ऊपर, नीचे और ग्रंथों में प्रत्यक्ष में प्रमाणों की झड़ी लगी है कि यह औघडदानी भोले की राजधानी थी, है और रहेगी। इस दिव्य नगरी का उसके सम्मान के अनुसार ही हिन्दू मुस्लिम दोनों पक्ष सम्मान करके देश को शान्ति सौहार्द का उपहार दें।

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