मेले में सरजूपारी, तोतापारी व् अजमेरी बकरियों की बिक्री में उछाल

अधिकतम 90 हजार तथा न्यूनतम 4500 रहा बकरियों का मुल्य

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। देश और दुनिया में गरीबों की गाय के नाम से मशहूर बकरियों ने सारण जिला के हद में हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने में इसबार सफलता हासिल की है। मेले में उन्नत नस्ल की सरजूपारी – जमुनापारी आदि बकरियों की मांग बढ़ी है। आधा दर्जन से अधिक दुकानों पर खरीददारों की भीड़ और बकरी खरीद कर ले जाते बकरी पालक इसके साक्षात् सबूत हैं।

बकरियों की अधिकतम मूल्य 90 हजार रुपए एवं न्यूनतम मूल्य 4500 रुपए बताया जा रहा है। विदित हो कि, बिहार के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बकरी के दूध की किल्लत की वजह से यूपी के इन बकरी व्यवसायियों की चांदी है। डेंगू जैसी बीमारियों ने बकरी के दूध की अहमियत बढ़ा दी है। ऐसे में मेले में आये राजस्थानी-अजमेरी, तोतापारी एवं जमुनापारी बकरियों की पौ बारह है। देशी बकरियों का बाजार यहां नहीं सजता या यूं कहिए कि किसी व्यवसायी ने उस ओर आज तक ध्यान नहीं दिया।

सोनपुर और उसके आसपास के गांव – देहात में आज भी देहाती बकरियों की ही बहुतायत है। पर, उनकी संख्या भी कम होती जा रही है। उनके स्थान पर धीरे-धीरे ही सही राजस्थानी अजमेरी आदि राज्य के बाहर के नस्ल की बकरियों की पैठ बढ़ रही है।

अभी भी मेले में 320बकरियों की है उपस्थिति व् बिक्रेता को हो रही है आमद

पशुपालन विभाग के 19 नवंबर के दैनिक प्रतिवेदन पर नजर डालें तो अभी तक सोनपुर मेले के विभिन्न बकरी बाजारों में कुल 320 भेड़-बकरियों की उपस्थिति सर्वे में पायी गयी। जिसमें 36 की बिक्री हुई थी। जबकि इसी तिथि के गत दिवस 132 बकरियों की बिक्री हुई थी। यानी 168 बकरी इस अवधि में बिके। बिक्री की गई बकरियों की अधिकतम मूल्य 90 हजार रुपए एवं न्यूनतम मूल्य 4500 रुपए रही।

दूध एवं मांस उत्पादन के लिए बढ़ी बकरियों की मांग

हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले में बकरियों के व्यवसाय फलने और फूलने की वजह यह भी है कि दूध उत्पादन, रोग नियंत्रण एवं मांस उत्पादन के लिए इसे उपयोगी माना गया है। सदियों से बकरियां ज्यादातर निर्बल, भूमिहीन, खेतिहर मजदूर, आर्थिक रूप से पिछड़े व सीमांत किसानों के लिए बहुत उपयोगी रही हैं। बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है, जिसे बड़ा, मध्यम, छोटा व भूमिहीन किसान कम लागत और कम जगह में आसानी से कर लेता है।

सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से इनके महत्व को देखते हुए ग्रामीण इलाकों में आज भी दूध और मांस के लिए इनका पालन किया जा रहा है। इन बकरियों को गरीबों की गाय के रुप में देश में मान्यता प्राप्त है। बकरी की अनेक नस्लों का एक से अधिक बच्चे की क्षमता रखने, बकरी की व्याने के उपरांत अन्य पशु प्रजातियों की तुलना में पुन: जनन के लिए जल्दी तैयार होने के कारण इसकी उपयोगिता कम नहीं हुई है। इसके अलावा बकरी मांस का उपयोग किया जाना भी इसका एक कारक है।

वैसे तो अपने देश में बकरी की 20 नस्लें उपलब्ध हैं। एक और सबसे बड़ा कारण यह है कि बकरियां अन्य पालतू पशुओं की अपेक्षा स्वयं को विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में अपने को ढालने की क्षमता रखती हैं। इसी गुण के कारण बकरियां देश के विभिन्न भौगोलिक भू-भागों में पाई जाती हैं। इसकी प्रमुख प्रजातियों में जमुनापारी, सिरोही, तोतापारी आदि ही मेले में लाए जाते हैं।

मेले में लायी गयी इन नस्ल की बकरियां बड़े आकार की हैं। इनका माथा उठा और चौड़ा है।इनके कान लम्बे लटके हुए एवं चौड़े हैं। इनका मुंह लम्बा, नाक रोमन तथा सींग छोटे एवं चपटे हैं। इनके शरीर का रंग एक जैसा नहीं है। परन्तु प्रायः सफेद शरीर जिस पर भूरे, काले या चमड़े कलर के धब्बे दिख रहे हैं। इनकी टांगें लम्बी तथा पिछली टांगों पर लम्बे बाल हैं।

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