जगह-जगह सीसीटीवी के बाबजूद धंधेबाज बच जाता या बचाये जाते हैं?

अंधेरे का लाभ हमेशा शराब धंधेबाजों को मिलता है, पुलिस को क्यों नहीं-सुरेंद्र

एस. पी. सक्सेना/समस्तीपुर (बिहार)। अंधेरा का लाभ हमेशा ही शराब धंधेबाजों को क्यों मिलता है। कभी पुलिस को भी तो मिलना चाहिए। क्या यह रटा- रटाया जुमला के साथ ही शराब धंधेबाजों को बचाने की पुलिस की करतूत नहीं है?

जिले के करीब सभी टोले- मुहल्ले में धड़ल्ले से चल रहे शराब के कारोबार पर दिखावे के लगाम लगाने के लिए शराब का खेप पकड़ने की जानकारी मिलती रहती है, लेकिन अंधेरे का लाभ लेकर धंधेबाजों को बच निकलने की जानकारी भी दी जाती है।

उदाहरणस्वरूप बीते माह 3 अप्रैल को समस्तीपुर जिला के हद में ताजपुर थाने की पुलिस ने थाना क्षेत्र के रामापुर महेशपुर चौर से 151 कार्टून यानि 1350 लीटर अवैध विदेशी शराब बरामद किया। बावजूद इसके पुलिस अभीतक मुख्य धंधेबाज तक नहीं पहुंच पाई।

अगर सही से जांच- पड़ताल हो तो पुलिस आसानी से मुख्य धंधेबाज तक पहुंच सकती है। ऐसा खेल सिर्फ ताजपुर में ही नहीं बल्कि संपूर्ण जिला में बेरोकटोक जारी है। जबकि सच्चाई इससे कोशों दूर है।
ध्यान देने योग्य है कि शराब के अवैध धंधेबाज बच निकलते नहीं बल्कि बड़ी डील के जरिये धंधेबाजों को भगा दिया जाता है।

लगभग सभी महत्वपूर्ण सड़क किनारे की दुकान आदि पर सीसीटीवी कैमरा लगा है। पुलिस चाहे तो धंधेबाजों को आसानी से पकड़ सकती है, लेकिन पहले से तय रहता है, उसे पकड़ना नहीं है। चाहे टाईगर मोबाइल हो, चौकीदार हो या फिर अन्य पुलिस टीम। धंधेबाजों से उनका संबंध जगजाहिर है।

अगर पुलिस चाह लें तो तमाम धंधेबाज पुलिस गिरफ्त में होगा और गांव- टोला- समाज को धंधेबाजों के काले करतूत से मुक्ति मिल जाएगी। इसमें पुलिस के साथ सामाजिक एवं राजनीतिक सरोकारों से जुड़े व्यक्ति को भी आगे आना होगा।

अवैध शराब के बढ़ते धंधे, आमजनों की परेशानी, नौनिहालों को धंधे में शामिल होने और इससे समाज की बदतर हो रही स्थिति पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भाकपा माले जिला स्थाई समिति सदस्य सुरेंद्र प्रसाद सिंह ने 4 मई को उक्त बातें कही।

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